हिन्दू नववर्ष : विक्रम संवत-2081 के राजा मंगल, मंत्री शनि होने, 10 में सात विभाग क्रूर ग्रहों को मिलने से यह...

...वर्ष बहुत उथल-पुथल वाला रहेगा, शासन में कड़ा अनुशासन दिखेगा

नववर्ष में शुभ योग- इस दिन अमृत सिद्धि-योग, सर्वार्थ-सिद्धि योग और शश-राजयोग का संयोग बन रहा है। रेवती और अश्विनी नक्षत्र का भी संयोग बन रहा है। इस दिन चंद्रमा गुरु की राशि मीन में होंगे। शनि देव स्वयं की राशि कुंभ में विराजमान होकर शश राजयोग का भी निर्माण होगा।
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विक्रम संवत-2081
संवत्सर का नाम- क्रोधी 
राजा- मंगल, मंत्री- शनि
ग्रहों के दशाधिकार- 7 विभाग क्रूर ग्रहों को और 3 विभाग शुभ ग्रहों को मिले हैं
• प्रभाव- मंगल के राजा और शनि के मंत्री होने से यह वर्ष बहुत ही उथल पुथल वाला रहेगा। शासन में कड़ा अनुशासन देखने को मिलेगा।

मंगलवार (9 अप्रैल) का शुभ समय
ब्रह्म मुहूर्त- प्रातः 3.56 से प्रातः 4.44 तक प्रातः संध्या- 4.20 से प्रातः 5.32 तक
अभिजीत मुहूर्त- 11.06 पूर्वाह्न से 11.54 पूर्वाह्न तक

हिन्दू नव वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। शास्त्रों में कुल 60 संवत्सर बताए गए हैं। 
हिन्दू नववर्ष को विक्रम संवत, संवत्सर, गुड़ी पड़वा, युगादि नाम से भी जाना जाता है। इस त्यौहार को भारत के हर राज्य में अलग-अलग नाम से जाना जाता है- सिंधी समुदाय के लोग इस दिन को चेती चंद के नाम से जानते हैं, महाराष्ट्र में इस दिन को गुड़ी पड़वा, कर्नाटक में युगादि, आंध्र प्रदेश में उगादी, गोवा और केरल में संवत्सर के नाम से जाना जाता है।
 
हिन्दू नववर्ष को नव संवत्सर, विक्रम संवत, उगादि, गुड़ी पड़वा आदि नामों से जाना जाता है। विक्रम संवत-2081 मंगलवार नौ अप्रैल 2023 से आरंभ हो जाएगा। नव संवत्सर-2081 को 'क्रोधी' नाम से जाना जाएगा। इस संवत के राजा मंगल ग्रहों के सेनापति और पराक्रम, साहस, सेना प्रशासन, सिद्धांत के कारक हैं। इसलिए हिंदू नव वर्ष में अग्रेसिव घटनाएं घट सकती हैं। इसके चलते नया साल काफी उथल-पुथल वाला रहेगा और कड़ा प्रशासन देखने को मिलेगा। साथ ही देश दुनिया में हैरान करने वाली घटनाएं होंगी।

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विक्रम संवत कैलेंडर का हिंदू नव वर्ष के उत्सव के साथ गहरा महत्व और संबंध है। कहते हैं, 57 ईसा पूर्व, प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य ने शकों पर अपनी जीत के उपलक्ष्य में इस संवत (कैलेंडर प्रणाली) की स्थापना की थी। तब से विक्रम संवत कैलेंडर को हिंदू नववर्ष सहित महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों की गणना से जोड़ा गया है। यह ऐतिहासिक जुड़ाव इस महत्वपूर्ण अवसर को चिह्नित करने में कैलेंडर की भूमिका में श्रद्धा और प्रामाणिकता की भावना जोड़ता है।

विक्रम संवत-2081 न केवल हिंदू नव वर्ष की तिथि निर्धारित करता है, बल्कि प्राचीन इतिहास, ज्ञान और विरासत के संरक्षक के रूप में भी कार्य करता है। अपनी अनूठी चंद्र-सौर संरचना के माध्यम से, जो चंद्रमा और सूर्य के चक्रों को जोड़ती है। यह प्राचीन ऋषियों द्वारा रखे गए खगोलीय सिद्धांतों की गहरी समझ को दर्शाता है। नव संवत हिंदू नव वर्ष से जुड़ी परंपराओं, सांस्कृतिक प्रथाओं, अनुष्ठानों और तिथियों की सुरक्षा करती है, जिससे पीढ़ियों तक उनका संरक्षण और प्रसारण सुनिश्चित होता है और हमें हमारी गौरवशाली विरासत से जोड़ा जाता है।

ज्योतिष गणना के अनुसार, हिन्दू नव वर्ष का पहला दिन जिस भी दिवस पर पड़ता है पूरा साल उस ग्रह का स्वामित्व माना जाता है। विक्रम संवत 2081 के राजा मंगल, शनि के मंत्री होने से यह साल उथल-पुथल वाला रहेगा। भारत में अल्प वृद्धि के योग होंगे। नया रोग या कोई नई महामार के आने के योग बन रहे हैं। राहु, मंगल, सूर्य और शनि के कारण प्राकृति प्रकोप बढ़ सकता है, तूफान, भूकंप और बाढ़ से जानमाल की हानि की अधिक आशंका है। राजनीतिक पार्टियों में शत्रुता की भावना बढ़ेगी। भारत में आंतरिक संघर्ष बढ़ने की संभावना है। देश की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा।

ग्रहों का पदभार बदलने से बदलाव व प्रभाव हर नए साल पर ब्रह्मांड में नए मंत्रिमंडल का गठन होता है और राजसत्ता का निर्धारण होता हैं। हिन्दू नववर्ष का आगमन सोमवार (8 अप्रैल 2024) रात्रि 11.55 पर धनु लग्न में हो रहा है। नववर्ष का आगमन रात्रि में होने के कारण (उदया तिथि के अनुसार) दूसरे दिन 9 अप्रैल (मंगलवार) को प्रतिपदा तिथि में राजा का पद मंगल को प्राप्त होगा। 

इसी प्रकार प्रधानमंत्री का पद शनि को प्राप्त होगा। जिस प्रकार देश में लोकतांत्रिक चुनाव में नियुक्त पदाधिकारियों द्वारा सरकार चलाई जाती है, उसी प्रकार से आकाश मंडल में भी निर्वाचन प्रक्रिया होती है। वर्ष प्रतिपदा के दिन राजा का चयन किया जाता है। इसी के साथ वर्ष के दस अधिकारियों (दशाधिकारों) के विभागों का बंटवारा हो जाता है।

इस वर्ष राजा-मंगल, मंत्री-शनि, पूर्व धान्येश का पद मंगल, पश्चिम धान्येश चंद्रमा को प्राप्त है। मेघेश अर्थात सिंचाई का प्रभार शनि को मिला है। रशेष या रसों का प्रभार गुरु को प्राप्त है। सुरक्षा का प्रभार दुर्गेश शनि के पास है, जबकि नीरेशेष सूखी वस्तुओं का प्रभार मंगल के पास है। फलों का स्वामी फलेष शुक्र को बनाया गया है। वित्त विभाग धनेश मंगल के पास रहेगा।

इस वर्ष दशाधिकारों में सात विभाग क्रूर ग्रहों को तथा 3 विभाग शुभ ग्रहों को प्राप्त हैं। मंगल और शनि दोनों में नैसर्गिक शत्रुता है। अतः शासकों के मध्य सामंजस्य की कमी हो सकती है। मंगल और शनि कड़े और क्रूर ग्रह हैं। इस कारण शासन में कड़ाई भी देखने को मिलेगी। वर्ष कुंडली में राजा मंगल शनि के घर तृतीय भाव पराक्रम में शनि के साथ ही बैठा है। जिससे कानून व्यवस्था में इस वर्ष एकरूपता आएगी। लग्नेश गुरु पंचम भाव में सूर्य के साथ बैठा है, जिस पर शनि की तीसरी दृष्टि है। अतः संगीत, कला, जादू के क्षेत्र में विशेष लाभ मिलेगा। 

मंगल के प्रभाव से युद्ध कर रहे राष्ट्र संघर्ष से बाहर निकल सकते हैं। कोरोना महामारी नए रूप में मानव जाति को प्रभावित कर सकती है। वर्ष के प्रारंभ में पिंगल नामक संवत्सर का प्रारंभ होगा। 27 अप्रैल को ग्रह योग प्रभाववश काल युक्त एवं सिद्धार्थ नामक उप-संवत्सर प्रारंभ होंगे, परन्तु वर्षभर संकल्प, विनियोग आदि के समय में पिंगल नाम के संवत्सर का उच्चारण किया जाएगा।
इस वर्ष 22 जून का आर्द्रा प्रवेश होगा एवं वर्ष प्रारंभ होगी। वरुण नामक मेघ वर्षा कराएगा। वासुकी नामक मेघ पर सवार होकर वर्षा का प्रवेश वायु वेग के साथ होगा। रोहिणी का वास तट पर होने से शुभ वर्षा होगी। मध्य क्षेत्र में प्रबल वर्षा से जन-धन की हानि हो सकती है।
ग्रह स्थिति के अनुसार विन्शोषक इस प्रकार है- वर्षा 5 विश्वा, धान्य-11, शीत-13, वायु 13, वृद्धि-15, छय-15, विग्रह-11, निद्रा-15, आलस्य-15, उद्यम 13, शांति-15, क्रोध-13, लोभ-3, मैथुन-15, रस-9, फल-13, उत्साह-11, उग्र-15, पाप-3, पुण्य-11, आचार-3, अनाचार-5, जन्म 7 मृत्यु 3 विश्वा रहेगी।

संवत्सर फल 
इस वर्ष राजा मंगल होने से सैन्य शक्ति में कसावट एवं वृद्धि होगी, मंत्री शनि होने से न्याय व्यवस्था में कसावट आएगी। कई बड़े राजनेता न्यायालय के कटघरे में खड़े दिखाई देंगे। रवि की फसल भी मंगल के पास होने से वर्षा के साथ बिजली गिरने की घटनाएं अधिक होंगी। रक्षा का प्रभार शनि के पास होने से तटीय क्षेत्रों में विशेष सुरक्षा व्यवस्था की स्थिति में वृद्धि होगी। धनेश मंगल का प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था में वृद्धि करेगा। रस पदार्थों में गुरु के प्रभाव से वृद्धि होगी। सूखी वस्तुए मावा आदि मंगल के प्रभाव से बढ़ेंगे। फलों का उत्पादन शुक्र के प्रभाव से अधिक होगा। वर्षा का प्रभार शनि के पास होने से विरल वर्षा होगी। कहीं-कहीं अधिक तो कहीं-कहीं अत्यधिक वर्षा से हानि होगी।

राजा एवं मंत्री के प्रभाव से विश्व में युद्धरत देशों में संघर्ष विराम की स्थिति बनेगी। पाकिस्तान में आपदा से हानि हो सकती है। अमेरिका आदि पश्चिमी देशों में संघर्ष की स्थिति निर्मित होगी, परन्तु अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत भी ग्रह दे रहे हैं। नेपाल के संबंध भारत से अच्छे बनेंगे परन्तु अमेरिका से बिगड़ने की संभावना है। चीन में काफी विरोध का सामना करना पड़ सकता है। इजरायल आतंकवाद को समाप्त करने कड़े कदम उठा सकता है। रूस-यूक्रेन के युद्ध में परमाणु हथियार का सहारा लेकर रूस अपनी रणनीति में बदलाव कर सकता है। अमेरिका, जर्मनी, यूरोप आदि देशों से यूक्रेन को सहायता मिलती रहेगी। तिब्बत में चीन का नियंत्रण बढ़ेगा। ब्रिटेन शनि सातवें भाव में कई देशों के साथ साझेदारी के शुभ संकेत देता है। नए प्रधानमंत्री के लिए अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का इस वर्ष का यह वर्ष है।

अढैया शनि एवं साढ़े साती इस वर्ष शनि का विचरण पूरे वर्षभर कुंभ राशि में रहेगा। अतः पूर्व वर्ष की भांति इस वर्ष भी शनि की साढ़ेसाती एवं अढैया शनि के प्रभाव में कोई बदलाव नहीं होगा। 

इस वर्ष मकर, कुंभ, मीन राशि वालों को साढ़े साती प्रभाव वर्षभर रहेगा। कर्क व वृश्चिक राशि वाले अढैया शनि के प्रभाव से प्रभावित रहेंगे। 

शनि जिस राशि में भ्रमणरत होते हैं, उस राशि के आगे-पीछे की राशि वालों को शुभ-अशुभ प्रभाव देते हैं। शनि के अशुभ स्थिति में होने से व्यापार-व्यवसाय में रुकावटें आती हैं। हानि के साथ निकट पारिवारिक संबंधियों से वाद-विवाद न्यायालयीन परेशानी, तनाव एवं समस्यायें होती है, परन्तु शनि अनुकूल होने की स्थिति में रंक से राजा बनाने की क्षमता रखते हैं। पत्रिका में शनि शुभ होने पर सर्वसुख, आर्थिक लाभ, मान सम्मान में वृद्धि करा देते हैं। शनि को अनुकूल बनाने के लिए शनिवार का व्रत, लोहा, नीलम, काला हकीक आदि का दान, "शनि स्त्रोत" का पाठ शनिवार को शनि को तेल अर्पण करना एवं मंगलवार को हनुमानजी को सिंदूर अर्पण करने से शनिकृत पीड़ा से मुक्ति मिलती है।

इन राशियों के लिए नया वर्ष शुभ
मेष-
आपकी राशि का स्वामी मंगल है। मंगल इस वर्ष का राजा है। इस राशि के जातकों के लिए भी नया संवत लाभकारी और फलदायी रहने वाला है। यह नया वर्ष शुभ फलदायी रहेगा, क्योंकि गुरु की शुभ स्थिति है। अटके कार्य पूर्ण होंगे।

वृषभ- आपकी राशि के स्वामी शुक्र है। शुक्र शनि की मित्रता है। शनि इस वर्ष का मंत्री है। आपके लिए यह नया संवत्सर लाभदायक होगा, क्योंकि आपकी राशि में गुरु का गोचर होने वाला है। ऐसे में नया संवत आपको उन्नति दिलाने वाला रहेगा, कार्य में सफलता मिलेगी। नौकरी और स्वयं का व्यवसाय करने वालों को लाभ होगा। नया बिजनेस भी आरंभ कर सकते हैं, धर्म-कर्म के काम में मन लगेगा, शुभ कार्य भी आपके घर में होंगे एवं इस वर्ष किसी तीर्थयात्रा पर जा सकते हैं। 

नया वर्ष आपके बच्चों के लिए भी शुभ रहेगा, उनकी शिक्षा के प्रति रुचि बढ़ेगी। वृश्चिक राशि वालों की भौतिक सुख सुविधा भी बढ़ेगी। निवेश से वृश्चिक राशि वालों को अच्छा लाभ होगा। जो लोग खुद का बिजनेस शुरू करना चाहते हैं, उन्हें सफलता मिलेगी। प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे युवा मन को एकाग्र कर लक्ष्य पाने में सफल होंगे। नवविवाहित व्यक्तियों को संतान सुख मिलेगा। परिवार में किसी सदस्य के लिए विवाह के योग बनेंगे।

कर्क- प्रतिपदा तिथि की सोमवार से प्रारंभ हो रही है और आपकी राशि के स्वामी चंद्रमा है। कर्क राशि पर शनि की ढैय्या का प्रभाव है। नववर्ष में इस प्रभाव से आपको ढैय्या के प्रभाव में कुछ कमी आएगी, आपको अनुकूलता मिलेगा। आपको आपके परिश्रम का फल, विशेष रूप से वर्ष के अंत में मिलेगा। आपको हर काम में सफलता मिलेगी। व्यापार में भाइयों का सहयोग मिलेगा, आय बढ़ेगी। नौकरी-पेशा लोगों के लिए भी यह साल बहुत शुभ है, करियर में उन्नति के योग बनेंगे। इस वर्ष कर्क राशि वालों की विशेष लोगों से भेंट होगी, जिसका लाभ होगा। आपको कई अच्छे अवसर मिलेंगे। संवत 2081 कर्क राशि वालों के स्वास्थ्य की दृष्टि से अनुकूल रहेगा, मानसिक रूप से शांत, संतुष्ट रहेंगे। हर काम में आपकी सकारात्मकता दिखेगी। पारिवारिक जीवन सुख-शांति वाला रहेगा।

कुंभ- आपकी राशि के स्वामी शनि है और शनि इस वर्ष के मंत्री है। इस राशि के जातकों के लिए मंगल का राजा होना और शनि का मंत्री होना लाभकारी रहेगा।

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