अक्षय तृतीया : भगवान परशुराम प्राकट्य दिवस एक स्वयंसिद्ध तिथि, पढ़ें महत्व, मंत्र, करें विशेष उपाय

पूजा-पाठ, दान, कोई कार्य सभी शुभ फलदायी  

धर्म नगरी / DN News
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सनातन धर्म में जिन आठ अवतारों को अजर-अमर माना जाता है, उनमें परशुराम भी हैं। इस तिथि (दिन) को अक्षय तृतीया, अर्थात जो क्षय न हो कहते हैं, जो स्वयं-सिद्ध तिथि भी होती है। अर्थात इस तिथि को बिना मुहूर्त पूजा-पाठ, दान, विवाह सहित कोई भी शुभ कार्य करना अत्यंत शुभ होता है, फलदायी होता हैं। 

इस वर्ष भगवान परशुराम का प्राकट्य उत्सव वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि (10 मई 2023) या आखा तीज को मनाई जाएगी, क्योंकि इसी तिथि को भगवान परशुराम ने पृथ्वी पर जन्म लिया था। तृतीया तिथि 10 मई 2024 प्रातः 4:17 बजे लगेगी और अगले दिन (11 मई) ब्रह्ममुहूर्त से पहले 2:50 बजे समाप्त होगी। परशुराम जयंती पर उनके मन्दिरों सहित जगह-जगह भगवान परशुराम के नाम पर भजन, कीर्तन और पाठ का आयोजन होगा।  

सनातन हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, परशुरामजी विष्णु जी के छठें अवतार हैं। हनुमानजी की ही तरह इन्हें भी चिरंजीव होने का आशीर्वाद प्राप्त है। मान्यता है, इसी तिथि को त्रेता युग का आरंभ हुआ। इस तिथि को "युगादि" भी कहते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है। परशुराम जयन्ती होने के कारण इस तिथि में भगवान परशुराम के आविर्भाव की कथा भी सुनी जाती है। इस दिन परशुरामजी की पूजा करके उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना गया है।  

माना जाता है कि च‍िरंजीव‍ी परशुराम जी को अस्‍त्रों-शस्‍त्रों का संपूर्ण ज्ञान है और उन्‍होंने भीष्‍म प‍ितामाह, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे श‍िष्‍य सम्मिलित थे। ब्रह्रावैवर्त पुराण के अनुसार, परशुराम वह पुत्र थे, ज‍िन्‍होंने अपनी ही मां का स‍िर काट दिया था। आश्‍चर्य की बात ये, कि परशुराम माता-प‍िता के परम भक्‍त थे। श्रीमद भागवद में वर्ण‍ित कथा के अनुसार, ऋषि जमदग्‍न‍ि के हवन के ल‍िए उनकी पत्‍न‍ी और परशुराम की माता रेणुका, प्रतिदिन नदी से जल लेने जाया करती थीं। एक द‍िन जब वह गईं, तो उन्‍होंने देखा कि नदी के पास गंदर्वराज च‍ित्ररथ कुछ अप्‍सराओं के साथ व‍िहार कर रहे हैं। ये सब देख वह आसक्‍त हो गईं और वहीं रुककर सब देखने लगीं। इस कारण उन्‍हें जल ले जाने में देरी हो गई और हवनकाल निकल गया। इस पर महर्ष‍ि क्रोध‍ित हो गए। उन्‍होंने जब माता रेणुका से देरी का कारण पूछा तो उन्‍होंने सही बात नहीं बताई, परन्तु ऋषि जमदग्‍नि के पास द‍िव्‍य दृष्‍ट‍ि थी और उन्‍हें असली बात पता थी। 

पत्‍नी रेणुका के इस झूठ से वह बहुत क्रोध‍ित हो गए। उन्‍होंने कहा, कि पराए पुरुष के व‍िहार को देख तुमने पतिव्रता नारी की मर्यादा को भंग क‍िया है। तुम्‍हें इस अपराध के ल‍िए मृत्‍यू दंड देता हूं। क्रोध‍ित महर्ष‍ि ने अपने सबसे बड़े पुत्र रूमणवान को बुलाया और अपनी मां का दंड स्‍वरूप वध करने का कहा। ये सुनते ही वह कांप गया, कि ज‍िस मां ने जन्‍म द‍िया, उसकी हत्‍या कैसे करूं ? बड़े पुत्र के मना करने पर ऋषि ने अपने सभी पुत्रों को बुलाया और यही करने का कहा। सभी पुत्रों ने मना कर द‍िया, लेकिन परशुराम ने प‍िता की आज्ञा का पालन क‍िया। उन्‍होंने प‍िता की आज्ञा का पालन करते हुए अपनी माता और अपने चारों भाइयों का वध कर द‍िया। 

परशुरामजी की अपने प्रति ये भक्‍ति और आज्ञा का पालन देख उनके प‍िता ऋषि जमदग्‍न‍ि प्रसन्न हो गए और उन्‍होंने परशुराम को वरदान मांगने का कहा। परशुराम ने तीन वरदान मांगे जिसमें पहला वरदान था कि वह अपनी मां को पुनः जीवित देखना चाहते हैं। 
भाइयों को जीवनदान देने और इस वध से जुड़ी उनकी सारी स्‍मृति हट जाए। तीसरे वरदान में उन्होने मांगा कि उन्हे कभी पराजय का सामना न करना पड़े और उनको लंबी आयु प्राप्त हो। ये सुनते ही जमदग्‍नि बहुत प्रसन्न हो गए और उन्‍होंने अपनी पत्‍नी और चारों पुत्रों को जीवनदान दे द‍िया। इस तरह परशुराम जी ने अपने प‍िता की आज्ञा का पालन भी क‍िया और अपनी माता और भाइयों को जीवनदान भी द‍िया। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी का जन्म धरती पर हो रहे अन्याय, अधर्म और पाप कर्मों का विनाश करने एवं मानव कल्याण के लिए धरती पर जन्म लिए थे। इस दिन विधि-विधान के साथ परशुराम जी की अराधना कर के उनसे बल, बुद्धि, सुख-समृद्धि और ज्ञान का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। प्रत्येक वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को परशुराम जनमोत्स्व के साथ अक्षय तृतीया का पर्व भी मनाते।  हैं  

भगवान शिव द्वारा प्रदत्त परशु धारण किए रहने के कारण वे परशुराम कहलाये। तृतीया तिथि के प्रदोष काल में यानी सूर्यास्त होने के तुरंत बाद परशुरामजी की प्रतिमा की पूजा की जाती है। भारत के दक्षिणी हिस्से में इसे विशेष रूप से मनाया जाता है। इस तिथि को परशुराम गायत्री मंत्र जप करने मात्र से ही समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती है। मंत्र है-
 ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नोपरशुराम: प्रचोदयात्

अक्षय तृतीया स्वयं-सिद्ध तिथि होती है, अतः इस तिथि बिना मुहूर्त पूजा-पाठ, दान, विवाह सहित कोई भी शुभ कार्य करना शुभ होता है, फलदायी होता हैं। इस दिन आप इन मंत्रों का जाप कर सकते हैं- 
ॐ ब्रह्मक्षत्राय विद्महे क्षत्रियान्ताय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्।।
ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नोपरशुराम: प्रचोदयात्।।


तिथि का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, धरती पर हो रहे अधर्म और पापों को नाश करने के लिए हुआ था। भृगु श्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा संपन्ना पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न होकर देवराज इंद्र ने उन्हें वरदान दिया था। तब जाकर माता रेणुका के गर्भ से भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। परशुराम जी महादेव भोलेनाथ के परम भक्त थे। उन्होंने शिवजी की कठोर तपस्या की थी तब शंकर जी ने प्रसन्न होकर उन्हें दिव्य अस्त्र परशु यानी फरसा दिया था। परशु को धारण करने के बाद ही वह परशुराम कहलाए। आपको बता दें कि जो भी व्यक्ति भगवान परशुराम की पूजा अर्चना करता है उसकी हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है।


धार्मिक ग्रंथों में भगवान परशुराम को राम जामदग्नाय, राम भार्गव और वीरराम भी कहा जाता है। सनातन के अनुसार, भगवान परशुराम अभी भी पृथ्वी पर रहते है। दक्षिण भारत में, उडुपी के पास पजका के पवित्र स्थान पर, एक बड़ा मंदिर है, जो परशुराम का स्मरण करता है। भारत के पश्चिमी तट पर कई मंदिर हैं जो भगवान परशुराम को समर्पित हैं। भगवान परशुराम जी की पूजा करने से साहस में वृद्धि होती है, किसी भी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है। इनका जन्म पुत्रेष्टि यज्ञ से हुआ था और इन्हें भगवान शिव ने परशु दिया था। इसी कारण इन्हें परशुराम के नाम से जाना जाता है।

अमर हैं भगवान परशुराम
अश्वत्थामा  बलिव्यासो हनुमांश्च विभीषण:।
कृप:  परशुरामश्च  सप्त  एतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं  सोपि  सर्व व्याधि विवर्जित।।
पुराणों में 8 महापुरुषों का वर्णन है जिन्हें अजर-अमर माना जाता है, इनमें हनुमान जी, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, भगवान परशुराम, ऋषि मार्कण्डेय, राजा बलि, महर्षि वेदव्यास और विभीषण सम्मिलित हैं। 

अक्षय तृतीया पूजा विधि
अक्षय तृतीया सर्वसिद्ध मुहूर्तों में से एक मुहूर्त है। इस दिन भक्त भगवान विष्णु, उनके अवतार भगवान परशुराम की पूजा-आराधना करते हैं। महिलाएं अपने और परिवार की समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन-
- ब्रह्म मुहूर्त में गंगाजी या निकट की नदी में (अथवा स्नान के जल में दो बूंद गंगाजल/नर्मदाजल  डालकर) स्नान करके श्री विष्णुजी और मां लक्ष्मी की प्रतिमा पर अक्षत चढ़ाना चाहिए।
- शांत चित्त से उनकी श्वेत कमल के पुष्प या श्वेत गुलाब, धुप-अगरबत्ती एवं चन्दन इत्यादि से पूजा अर्चना करनी चाहिए। 
- नैवेद्य के रूप में जौ, गेंहू, या सत्तू, ककड़ी, चने की दाल आदि का चढ़ावा करें।
- ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। साथ ही फल-फूल, बर्तन, वस्त्र, गौ, भूमि, जल से भरे घड़े, कुल्हड़, पंखे, खड़ाऊं, चावल, नमक, घी, खरबूजा, चीनी, साग, आदि दान फलित होता है।
- इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद कमल अथवा सफेद गुलाब या पीले गुलाब से करना चाहिए।

ज्योतिषीय दृष्टि से आज (अक्षय तृतीया) का दिन
अक्षय तृतीया पर आज (10 मई) गजकेसरी योग बन रहा है, जो धन और समृद्धि के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। गजकेसरी योग में बृहस्पति और चंद्रमा गजकेसरी राशि में विराजमान रहेंगे। 
आज कुछ विशेष उपाय करके आप देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। सोने या तांबे के लोटे में गंगाजल भरकर मां लक्ष्मी की पूजा करें. लाल या पीले रंग के फूल और फल अर्पित करें। घर को दीपक जलाएं और गाय को गुड़ और चने खिलाएं. दीन-दुखियों की मदद करें। 
ज्योतिर्विदों के  अनुसार,आज का दिन एवं गजकेसरी योग (के शुभ योग का सकारात्मक प्रभाव पड़नेविशेष रूप से निम्न चार राशियों के लिए शुभ फलदायी होगी-  

वृषभ- आपको नई नौकरी मिलने एवं अचानक धन लाभ 
के योग हैं।  बोनस मिल सकता है। आपको नई दायित्व / जिम्मेदारियां मिल सकती हैं अथवा आपकी पदोन्नति हो सकती है। 

मिथुन- नई परियोजनाएं शुरू करने के अच्छे अवसर मिल सकते हैं, जो आपके लिए लाभदायक होंगे।
व्यवसाय करते हैं, तो उसमे बिक्री में वृद्धि होगी। विदेश यात्रा का योग बन रहा है जो आपके व्यवसाय के लिए नए अवसर खोल सकता है। 

कर्क- आपके प्रदर्शन के लिए सराहा जा सकता है और आपकी पदोन्नति हो सकती है. व्यवसाय में नए अवसर आ सकते हैं जो आपके लिए लाभदायक होंगे। नए लोगों से मिलने का अवसर मिलेगा, जो आपके लिए सहायक हो सकते हैं। 

सिंह- समाज में सम्मान मिलेगा और आपके प्रभाव में वृद्धि होगी। 
रुके हुए काम पूरे होंगे जो काम लंबे समय से रुके हुए थे, अब पूरे होने के योग हैं। नई संपत्ति, जैसे घर या गाड़ी खरीद सकते हैं। 

मीन- अचानक धन प्राप्ति हो सकती है, जैसे विरासत या उपहार। नए लोगों से मिलने का अवसर मिलेगा, जो आपके लिए लाभप्रद हो सकते हैं। 
विदेश यात्रा पर जा सकते हैं जो आपके लिए नए अवसर खोल सकती है। 

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भगवान परशुराम से जुड़ी बातें
सनातन धर्म में आठ महापुरुषों के बारे में बताया गया है, जिन्हें अजर-अमर माना जाता है। इनमें एक भगवान विष्णु के सभी दस अवतारों में छठें अवतार माने गए भगवान परशुराम भी हैं।
कहते हैं, पिता की आज्ञा को मानते हुए भगवान परशुराम ने अपनी ही माता का वध कर दिया था, परन्तु बाद में पिता से ही वरदान मांगकर उन्होंने अपनी माता को फिर से जीवित कर लिया था।
- भगवान परशुराम ने पृथ्वी से 21 बार अधर्मी राजाओं (क्षत्रियों) का अंत किया। वहीं यह भी मान्यता है, उन्होंने क्षत्रियों के कुल हैहय वंश का समूल विनाश किया था।
- पुराणों के अनुसार, जब एक बार भगवान परशुराम शिवजी के दर्शन करने कैलाश पहुंचे थे तो भोलेबाबा ध्यान में थे। उस समय श्री गणेश ने परशुराम जी को भगवान शंकर से मिलने से मना कर दिया। इस कारण परशुरामजी क्रोधित हो गए और उन्होंने फरसे से वार कर दिया जिससे भगवान गणेश का एक दांत टूट गया।


परशुराम नाम कैसे हुआ 
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि थे। ऋषि जमदग्नि ने चंद्रवंशी राजा की पुत्री रेणुका से विवाह किया था। ऋषि जमदग्नि और रेणुका ने पुत्र की प्राप्ति के लिए एक महान यज्ञ किया। इस यज्ञ से प्रसन्न होकर इंद्रदेव ने उन्हें तेजस्वी पुत्र का वरदान दिया और अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जी ने जन्म लिया। ऋषि ने अपने पुत्र का नाम राम रखा था। राम ने शस्त्र का ज्ञान भगवान शिव से प्राप्त किया और शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें अपना फरसा अर्थात परशु प्रदान किया। इसके बाद वह परशुराम कहलाए। उन्हें चिरंजीवी रहने का वरदान मिला था। उनका वर्णन रामायण और महाभारत दोनों काल में होता है। उन्होंने ही श्री कृष्ण को सुदर्शन चक्र उपलब्ध करवाया था और महाभारत काल में भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान दिया था।

आठ चिरंजीवी में परशुराम 
परशुराम जी भगवान विष्णु के दशावतारों में एक हैं, जिन्होंने पृथ्वी से 21 बार अधर्मियों का अंत किया था। परशुरामजी सहित आठ लोगों को चिरंजीवी रहने का वरदान। उनमें अन्य हैं-  
हनुमान जी- त्रेता युग में श्रीराम के परम भक्त हनुमान जी को माता सीता ने अजर-अमर होने का वरदान दिया था। इस कारण वह चिरंजीवी माने जाते हैं। 
ऋषि मार्कंडेय- भगवान शिव के परमभक्त ऋषि मार्कंडेय अल्पायु थे. लेकिन, उन्होंने महामृत्युंजय मंत्र सिद्ध किया और वे चिरंजीवी बन गए।  
वेद व्यास- वेद व्यास चारों वेदों ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद व यजुर्वेद का संपादन और 18 पुराणों के रचनाकार हैं। 
अश्वत्थामा- गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वथामा भी चिरंजीवी है. शास्त्रों में अश्वत्थामा को भी अमर है। 
विभीषण- रावण के छोटे भाई और श्रीराम के भक्त विभीषण भी चिरंजीवी हैं। 
कृपाचार्य- महाभारत काल में युद्ध नीति में कुशल होने के साथ ही परम तपस्वी ऋषि है। कृपाचार्य कौरवों और पांडवों के गुरु है। 
राजा बलि- भक्त प्रहलाद के वंशज एवं भगवान विष्णु के परम भक्त राजा बलि ने भगवान वामन को अपना सबकुछ दान कर महादानी के रूप में प्रसिद्ध हुए। इनकी दानशीलता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने इनका द्वारपाल बनना स्वीकार किया और वह चिरंजीवी हुए। 
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अक्षय तृतीया को दान
आज (अक्षय तृतीया) को किया जाने वाला दान-पुण्य कभी क्षय नहीं होता। वहीं, आज किए गए जप तप भी नाश नहीं होता। शास्त्रानुसार, अक्षय तृतीया के दिन ही महर्षि वेदव्यास ने महाभारत लिखना आरम्भ किया था। युधिष्ठिर को अक्षय पात्र भी आज के दिन ही मिला था। मान्यताओं के अनुसार, इस पात्र का भोजन कभी समाप्त नहीं होता । 
जलपात्र दान
अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे पात्र का दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। उसके लिए आप बर्तन या कलश दान कर सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि दान करते समय पात्र खाली नहीं होना चाहिए। उस बर्तन में पानी और थोड़ी शक्कर डालकर दान करें। इस दिन पशु-पक्षियों को जल देना भी लाभकारी माना जाता है। ऐसी मान्यता है, कि अक्षय तृतीया के दिन पानी से भरे बर्तन का दान करने से आपकी कुंडली में चंद्रमा की स्थिति में सुधार होता है और आपको परलोक में प्यासा नहीं रहना पड़ता है। साथ ही आपको जीवन में किसी चीज की कमी का अनुभव नहीं होता।   

सिंदूर का दान
अक्षय तृतीया पर सिंदूर का दान पवित्र माना जाता है। इस दिन आप सिंदूर के साथ-साथ सुहागिन महिलाओं को श्रृंगार से जुड़ी अन्य चीजें भी दान कर सकते हैं। ऐसा करने से आपके वैवाहिक जीवन में आनंद आएगा एवं सुख-समृद्धि की कभी कमी नहीं होगी। इस दिन शाम में मां लक्ष्मी की पूजा करें और उन्हें सिंदूर चढ़ाएं।

चंदन की लकड़ी का दान
अक्षय तृतीया के दिन चंदन का दान भी बेहद शुभ माना जाता है। मान्यता है इस दिन चंदन का दान करने से आप अचानक होने वाली घटनाओं से बचे सकेंगे और आपको अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होगी। ज्योतिष शास्त्र अनुसार लाल और सफेद चंदन का दान करने से कुंडली में राहु और केतु की स्थिति भी सुधरती है।

पितरों के लिए दान
ऐसा माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन पूर्वजों के नाम पर किया गया दान सबसे शुभ होता है। इस दिन आप अपने पूर्वजों के पसंदीदा भोजन या अन्य दैनिक वस्तुओं का दान कर सकते हैं। इस दिन को पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन पूर्वजों के नाम पर ब्राह्मणों को भोजन कराना भी बहुत शुभ माना जाता है।

निर्धनों को अन्नदान
अक्षय तृतीया के दिन जरूरतमंद लोगों को अन्न दान करें। शास्त्रों के अनुसार, अक्षय तृतीया पर अन्नदान करने से नवग्रह शांत होते हैं और उनकी स्थिति में सुधार होता है। साथ ही अन्नदान करने से आपके इष्ट देवता भी तृप्त होते हैं। श्रीमद भगवद गीता में अन्नदान को सबसे बड़ा दान माना गया है। किसी भूखे को भोजन कराने से बड़ा कोई पुण्य नहीं है। 

वस्त्रदान
अक्षय तृतीया के दिन वस्त्र दान करना भी बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन जरूरतमंद व्यक्तियों को वस्त्र दान करने से आपकी कुंडली में शुक्र की स्थिति में सुधार होता है। इससे घर में सुख-समृद्धि भी आती है। यह आपके जीवन में भौतिक सुख-सुविधाओं को बढ़ाता है और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए भी सहायक है। चूंकि शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी को समर्पित है, इसलिए इस दिन घर की महिलाओं को उपहार जरूर दें। ऐसा करने से आपके घर में साल भर सुख-समृद्धि बनी रहेगी।

पुस्तकों का दान
अक्षय तृतीया के दिन पुस्तकों या अध्ययन से संबंधित वस्तुओं का दान करना बहुत लाभकारी माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन धार्मिक कार्यों में रुचि रखने वाले लोगों के लिए पंचांग का दान करना बहुत शुभ होता है। ऐसे लोगों को धार्मिक पुस्तकें भी उपहार स्वरूप दी जा सकती हैं।

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अक्षय तृतीया या आखा तीज के दिन का महत्व
🚩इस दिन भगवान नर-नारायण सहित परशुराम और हयग्रीव का अवतार हुआ,  
🚩इसी दिन ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का जन्म भी हुआ,   
🚩इस दिन यक्षराज कुबेर को खजाना मिला, 
🚩एक मान्यता के अनुसार इसी दिन मां गंगा का अवतरण भी हुआ, 
🚩इसी दिन सुदामा भगवान कृष्ण से मिलने द्वारिका पहुंचे थे, 
🚩 इसी दिन सतयुग त्रेता युग आरंभ हुआ। द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ,
🚩अक्षय तृतीया के दिन से ही वेद व्यास और भगवान गणेश ने महाभारत ग्रंथ लिखना आरंभ किया,
🚩आदि शंकराचार्य (लगभग 5200 वर्ष पूर्व) ने "कनकधारा स्तोत्र" की रचना की, 
🚩मान्यतानुसार इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ, 
🚩माँ अन्नपूर्णा का आविर्भाव जन्म हुआ, 
🚩सूर्य भगवान ने पांडवों को अक्षय पात्र दिया।
🚩प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री बद्री नारायण धाम का कपाट खोले जाते है,
🚩वृंदावन के बाँके बिहारी मंदिर में श्री कृष्ण चरण के दर्शन होते है,
🚩जगन्नाथ भगवान के सभी रथों को बनाना प्रारम्भ किया जाता है,🚩प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभदेवजी भगवान के 13 महीने का कठिन उपवास का पारणा इक्षु (गन्ने) के रस से किया था।

अक्षय तृतीया अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है, कोई भी शुभ कार्य का प्रारम्भ किया जा सकता है!
आप सबको अक्षय तृतीया की शुभकामनाएं...
🛕📿🪔🛕📿🌻🪔
धर्म की जय हो,
अधर्मियों का नाश हो,
गौ-हत्या बंद हो,
प्राणियों में सद्भावना हो.
विश्व का कल्याण हो।
भारतवर्ष अखण्ड हो
वंदेभारत... 
आज का अति विशेष दिन आपको शुभ हो ! 
🇮🇳 

प्रत्येक  ब्राह्मण परिवार, बच्चे को पता होना चाहिए...  
सर्वप्रथम घर में भगवान परशुराम का चित्र अवश्य लगाएं / हो।  
1- परशुराम जी के माता पिता का नाम बताइए ?
उत्तर- रेणुका और जमदग्नि।

2- परशुरामजी ने पृथ्वी को कितनी बार आततायी  विहीन कर दिया था?
उत्तर- इक्कीस बार।

3- भगवान् परशुराम जी की गति किसके समान बताई गई है?
उत्तर- मन और वायु के समान।

4- परशुराम जी के गुरु कौन थे?
उत्तर- शंकर भगवान्।

5-परशुरामजी के प्रमुख शिष्यों के नाम बताएं।
उत्तर- भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, दानवीर कर्ण।

6- परशुरामजी का अवतार कौन से युग में हुआ था ?
उत्तर- त्रेता युग में।

7- परशुराम जी किसके अवतार थे तथा कौन से अवतार थे ?
उत्तर- भगवान विष्णु के छठे अवतार थे।

8- परशुराम जी के पिता सप्तर्षियों के मंडल में कौन से ऋषि हुए ?
उत्तर- सातवें ऋषि

9- कैलाश पर्वत पर परशुराम जी का किसके साथ युद्ध हुआ और उसका क्या परिणाम रहा?
उत्तर- गणेश जी के साथ और उस युद्ध के परिणामस्वरूप गणेशजी का एक दांत टूट गया और वो एकदंत कहलाये।

10- परशुराम जी किसके वंशज  थे ?
उत्तर- ब्रह्माजी के मानस पुत्र भृगु ऋषि के वंशज।

11- परशुराम जी ने किस राजा का वध किया ?
उत्तर- कार्तवीर्यार्जुन / सहस्त्रबाहु।

12- परशुरामजी के दादा जी और दादी जी का नाम बताइए ?
उत्तर- सत्यवती और ऋचीक मुनि।

13- भागवत महापुराण के अनुसार आज भी परशुराम जी कौन से पर्वत पर निवास कर रहे हैं?
उत्तर- महेन्द्र पर्वत पर।

14- पृथ्वी पर कौनसे वंश का अन्त करने के लिए स्वयं भगवान् ने परशुराम के रूप में अंशावतार ग्रहण किया था?

उत्तर- हैहयवंश का।

15-  बाल्यावस्था में परशुराम जी ने भगवान्  की तपस्या कौनसे स्थान पर की थी ?
उत्तर- परम पवित्र चक्रतीर्थ।

16- परशुरामजी का सहस्त्रबाहु से युद्ध  किस स्थल पर हुआ था ?
उत्तर- नर्मदाजी के तट पर।

17- शंकरजी ने परशुरामजी को कौनसा दुर्लभ मंत्र दिया था ?
उत्तर- त्रेलोक्य विजय कवच।

18- परशुरामजी की माता ने किस प्रकार देह त्याग की ?
उत्तर- ऋषि जमदग्नि की हत्या के पश्चात् शोकमग्न होकर सती हो गई।

19- जमदग्नि ऋषि की सन्तान में परशुरामजी का कौनसा स्थान था ?
उत्तर- परशुरामजी सबसे छोटे पुत्र थे।

20- ब्रह्मा जी की कौन सी पीढ़ी में परशुरामजी अवतरित हुए ?
उत्तर- पाॅंचवी पीढ़ी में (ब्रह्मा जी के भृगु ऋषि, भृगु ऋषि के ऋचिक, ऋचिक के जमदग्नि, जमदग्नि के परशुरामजी)।

21- मत्स्यराज से कवच मांगने के लिए परशुरामजी ने कौन सा रूप धारण किया ?
उत्तर- शृंगधारी संन्यासी का।
 #जय_परशुराम।

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