नए आपराधिक कानून आज से लागू, IPC, CRPC & IEA Act समाप्त, जाने क्या हैं नए कानूनों में प्रावधान
आपराधिक मामलों में मुकदमा पूरा होने के 45 दिन में आएगा निर्णय
- मर्डर अब '302' नहीं, '103'... IPC खत्म
- महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों पर एक नया अध्याय
➤ इंडियन पीनल कोड IPC अब ✔भारतीय न्याय संहिता (BNS)
➤ कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर CrPC अब ✔भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS)
➤इंडियन एविडेंस एक्ट IEA अब ✔भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA)
धर्म नगरी / DN News
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- राजेश पाठक
तीन नये आपराधिक कानून- भारतीय न्याय संहिता-2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता-2023, और भारतीय साक्ष्य अधिनियम-2023 आज से लागू हो गये हैं। ये नये आपराधिक कानून जांच, सुनवाई और अदालती प्रक्रियाओं में प्रौद्योगिकी के उपयोग पर बल देते हैं। इसे देखते हुए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने वर्तमान अपराध और अपराध ट्रैकिंग नेटवर्क और प्रणालियों में 23 संशोधन किये हैं। ब्यूरो राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों को इस बारे में आवश्यक तकनीकी सहयोग भी दे रहा है।
वे मामले जो एक जुलाई से पहले दर्ज हुए हैं, उनकी जांच और ट्रायल पर नए कानून का कोई असर नहीं होगा। एक जुलाई से सारे अपराध नए कानून के तहत दर्ज होंगे। तीनों नए आपराधिक कानून- भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS)और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) के आज (1 जुलाई) से देशभर में लागू होने के साथ भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में व्यापक बदलाव होंगे। औपनिवेशिक काल के कानूनों का अंत हो जाएगा। भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, तीनों कानून ब्रिटिश काल के क्रमशः भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम का स्थान लेंगे।
नए कानूनों के अंतर्गत अब कोई भी व्यक्ति पुलिस थाना गए बिना इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यम से घटनाओं की रपट दर्ज करा सकता है। इससे मामला दर्ज कराना आसान और तेज हो जाएगा तथा पुलिस द्वारा त्वरित कार्रवाई की जा सकेगी। शून्य प्राथमिकी से अब कोई भी व्यक्ति किसी भी पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज करा सकता है, भले ही अपराध उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं। हुआ हो। इससे कानूनी कार्यवाही शुरू करने में होने वाली देरी खत्म होगी और मामला तुरंत दर्ज किया जा सकेगा।
नए कानून में जुड़ा एक रोचक पक्ष यह भी है, कि गिरफ्तारी की दशा में व्यक्ति को अपनी पसंद के किसी व्यक्ति को अपनी स्थिति के बारे में सूचित करने का अधिकार दिया है। इससे गिरफ्तार व्यक्ति को तुरंत सहयोग मिल सकेगा। इसके अतिरिक्त, गिरफ्तारी विवरण पुलिस थानों और जिला मुख्यालयों में प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाएगा, जिससे गिरफ्तार व्यक्ति के परिवार और मित्र महत्त्वपूर्ण सूचना आसानी से पा सकेंगे। महिलाओं व बच्चों के विरुद्ध अपराधों की जांच को प्राथमिकता दी गई है, जिससे मामले दर्ज किए जाने के दो महीने के भीतर जांच पूरी की जाएगी।
नए कानूनों के तहत आरोपी तथा पीड़ित दोनों को अब प्राथमिकी, पुलिस रपट, आरोपपत्र, बयान, स्वीकारोक्ति और अन्य दस्तावेज 14 दिन के भीतर पाने का अधिकार होगा। अदालतें समय रहते न्याय देने के लिए मामले की सुनवाई में अनावश्यक विलंब से बचने के वास्ते अधिकतम दो बार मुकदमे की सुनवाई स्थगित कर सकती हैं। इसमें सभी राज्य सरकारों के लिए गवाह सुरक्षा योजना लागू करना अनिवार्य है ताकि गवाहों की सुरक्षा व सहयोग सुनिश्चित किया जाए और कानूनी प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता व प्रभाव बढ़ाया जाए। अब 'लैंगिकता' की परिभाषा में ट्रांसजेंडर भी शामिल हैं जिससे समावेशिता और समानता को बढ़ावा मिलता है।
पीड़ित को अधिक सुरक्षा देने तथा दुष्कर्म के किसी अपराध के संबंध में जांच में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए पीड़िता का बयान पुलिस द्वारा दृश्य-श्रव्य माध्यम के जरिए दर्ज किया जाएगा। इतना ही नहीं नए कानूनों के तहत महिलाओं, 15 वर्ष की आयु से कम उम्र के लोगों, 60 वर्ष की आयु से अधिक के लोगों तथा दिव्यांग या गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों को पुलिस थाने आने से छूट दी जाएगी और वे अपने निवास स्थान पर ही पुलिस सहायता प्राप्त कर सकते हैं।
कानून को लागू करना राज्यों पर निर्भर
विधि विशेषज्ञों के अनुसार, चूँकि कानून बनाने का मामला समवर्ती सूची (Concurrent List) का है, तो केंद्र सरकार कानून बना सकती है, लेकिन राज्य सरकारों को इसे लागू करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। यह राज्यों निर्भर है, कि वे कानून को लागू करेंगे या नहीं। कानून पास होने के बाद देशभर में "हिट एंड रन" केस के प्रावधान को लेकर ड्राइवरों ने हड़ताल की थी। तब सरकार ने इससे जुड़े प्रावधानों को होल्ड कर दिया था। यह विवाद अब भी बना हुआ है।
हत्या- मॉब लिंचिंग को भी अपराध के अंतर्गत लाया गया है। इन मामलों में 7 साल की कैद, आजीवन कारावास या फांसी का प्रावधान किया गया है। चोट पहुंचाने के अपराधों को धारा-100 से धारा-146 तक में परिभाषित किया गया है। हत्या के मामले में सजा धारा-103 में स्पष्ट की गई है। संगठित अपराधों के मामलों में धारा-111 में सजा का प्रावधान है। आंतकवाद के मामलों में टेरर एक्ट को धारा-113 में परिभाषित किया गया है।
वैवाहिक बलात्कार- इन मामलों में यदि पत्नी 18 साल से अधिक उम्र की है, तो उससे जबरन संबंध बनाना रेप (मैराइटल रेप ) नहीं माना जाएगा। यदि कोई शादी का वादा करके संबंध बनाता है और फिर वादा पूरा नहीं करता है, तो इसमें अधिकतम 10 साल की सजा का प्रावधान है।
राजद्रोह- BNS में राजद्रोह के मामले में अलग से धारा नहीं है, जबकि आईपीसी में राजद्रोह कानून है। BNS में ऐसे मामलों को धारा 147-158 में परिभाषित किया गया है। इसमें दोषी व्यक्ति को उम्रकैद या फांसी का प्रावधान है।
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BNS में किए गए परिवर्तन
IPC में जहां 511 धाराएं थीं, वहीं भारतीय नागरिक सुरक्षा BNS में 357 धाराएं हैं। BNSS में महत्वपूर्ण परिवर्तन
➽ भारतीय दंड संहिता CrPC में 484 धाराएं थीं, जबकि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में 531 धाराएं हैं। इसमें इलेक्ट्रॉनिक तरीके से ऑडियो-वीडियो के जरिए साक्ष्य जुटाने को महत्व दिया है,
➽ नए कानून में किसी भी अपराध के लिए अधिकतम सजा काट चुके कैदियों को प्राइवेट बॉन्ड पर रिहा करने की व्यवस्था है,
➽ कोई भी नागरिक अपराध होने पर किसी भी थाने में जीरो एफआईआर दर्ज करा सकेगा। इसे 15 दिन के अंदर मूल जूरिडिक्शन, यानी जहां अपराध हुआ है, वाले क्षेत्र में भेजना होगा,
➽ सरकारी अधिकारी या पुलिस अधिकारी के विरुद्ध मुकदमा चलाने के लिए संबंधित अथॉरिटी 120 दिनों के अंदर अनुमति देगी। यदि अनुमति / इजाजत नहीं दी गई, तो उसे भी सेक्शन माना जाएगा,
➽ एफआईआर दर्ज होने के 90 दिनों के अंदर आरोप पत्र दायर करना होगा। चार्जशीट दाखिल होने के बाद 60 दिन के अंदर अदालत को आरोप तय करने होंगे,
➽ केस की सुनवाई पूरी होने के 30 दिन के अंदर अदालत को निर्णय देना होगा। इसके बाद सात दिनों में निर्णय की कॉपी उपलब्ध करानी होगी,
➽ हिरासत में लिए गए व्यक्ति के बारे में पुलिस को उसके परिवार को ऑनलाइन, ऑफलाइन सूचना देने के साथ-साथ लिखित जानकारी भी देनी होगी,
➽ महिलाओं के मामलों में पुलिस को थाने में यदि कोई महिला सिपाही है तो उसकी मौजूदगी में पीड़ित महिला का बयान दर्ज करना होगा,
➽ भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में कुल 531 धाराएं हैं। इसके 177 प्रावधानों में संशोधन किया गया है। इसके अलावा 14 धाराएं खत्म हटा दी गई हैं। इसमें 9 नई धाराएं और कुल 39 उप धाराएं जोड़ी गई हैं। अब इसके अंतर्गत ट्रायल के दौरान गवाहों के बयान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम दर्ज हो सकेंगे। सन 2027 से पहले देश के सारे कोर्ट कम्प्यूरीकृत कर दिए जाएंगे।
BSA में महत्वपूर्ण परिवर्तन
➯ भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) में कुल 170 धाराएं हैं
➯ अब तक इंडियन एविडेंस एक्ट में कुल 167 धाराएं थीं
➯ नए कानून में 6 धाराओं को निरस्त किया गया है। इस अधिनियम में दो नई धाराएं और 6 उप धाराएं जोड़ी गई हैं। इसमें गवाहों की सुरक्षा के लिए भी प्रावधान है
➯ दस्तावेजों की तरह विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य भी कागजी रिकॉर्ड की तरह ही कोर्ट में मान्य होंगे।
इसमें ईमेल, सर्वर लॉग, मोबाइल फोन, इंटरनेट और वॉइस मेल जैसे रिकॉर्ड भी सम्मिलित हैं
➯ भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) पहले कुल 170 धाराएं थीं, 167 निरस्त किया गया 06
2 नई धाराएं और 6 उप- धाराओं को जोड़ा गया है।
मुकदमा पूरा होने के 45 दिन में आएगा निर्णय
आपराधिक मामलों में निर्णय मुकदमा पूरा होने के 45 दिन के भीतर आएगा और पहली सुनवाई के 60 दिन के भीतर आरोप तय किए जाएंगे। बलात्कार पीड़िताओं का बयान कोई महिला पुलिस अधिकारी उसके अभिभावक या रिश्तेदार की उपस्थिति में दर्ज करेगी और मेडिकल रपट सात दिन के भीतर देनी होगी। नए कानूनों में संगठित अपराधों और आतंकवाद के कृत्यों को परिभाषित किया गया है, राजद्रोह की जगह देशद्रोह लाया गया है और सभी तलाशी तथा जब्ती की कार्रवाई की वीडियोग्राफी कराना अनिवार्य कर दिया गया है।महिलाओं व बच्चों को लेकर एक नया अध्याय
महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों पर एक नया अध्याय जोड़ा गया है, किसी बच्चे को खरीदना और बेचना जघन्य अपराध बनाया गया है और किसी अवयस्क (नाबालिग) से सामूहिक दुष्कर्म के लिए मृत्युदंड या आजीवन कारावास का प्रावधान जोड़ा गया है। 'ओवरलैप' धाराओं का आपस में विलय कर दिया गया तथा उन्हें सरलीकृत किया गया है और भारतीय दंड संहिता की 511 धाराओं की तुलना में इसमें केवल 358 धाराएं होंगी। शादी का झूठा वादा करने, नाबालिग से बलात्कार, भीड़ द्वारा पीटकर हत्या करने, झपटमारी आदि मामले दर्ज किए जाते हैं, लेकिन वर्तमान भारतीय दंड संहिता में ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं थे। भारतीय न्याय संहिता में इनसे निपटने के लिए प्रावधान किए गए हैं। ये तीनों कानून न्याय, पारदर्शिता और निष्पक्षता पर आधारित हैं।
महिलाओं और बच्चों से जुड़े अपराध
इन मामलों को धारा 63 से 99 तक रखा गया है,
अब बलात्कार या रेप के लिए धारा-63 होगी,
दुष्कृत्य की सजा धारा-64 में स्पष्ट की गई है,
सामूहिक बलात्कार या गैंगरेप के लिए धारा-70 है,
यौन उत्पीड़न को धारा-74 में परिभाषित किया है,
नाबालिग से रेप या गैंगरेप के मामले में अधिकतम सजा में फांसी का प्रावधान है,
दहेज हत्या और दहेज प्रताड़ना को क्रमश: धारा-79 और 84 में परिभाषित किया है,
शादी का वादा करके यौन संबंध बनाने के अपराध को रेप से अलग रखा गया है। यह अलग अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है.
हत्या- मॉब लिंचिंग को भी अपराध के अंतर्गत लाया गया है। इन मामलों में 7 साल की कैद, आजीवन कारावास या फांसी का प्रावधान किया गया है। चोट पहुंचाने के अपराधों को धारा-100 से धारा-146 तक में परिभाषित किया गया है। हत्या के मामले में सजा धारा-103 में स्पष्ट की गई है। संगठित अपराधों के मामलों में धारा-111 में सजा का प्रावधान है। आंतकवाद के मामलों में टेरर एक्ट को धारा-113 में परिभाषित किया गया है।
वैवाहिक बलात्कार- इन मामलों में यदि पत्नी 18 साल से अधिक उम्र की है, तो उससे जबरन संबंध बनाना रेप (मैराइटल रेप ) नहीं माना जाएगा। यदि कोई शादी का वादा करके संबंध बनाता है और फिर वादा पूरा नहीं करता है, तो इसमें अधिकतम 10 साल की सजा का प्रावधान है।
राजद्रोह- BNS में राजद्रोह के मामले में अलग से धारा नहीं है, जबकि आईपीसी में राजद्रोह कानून है। BNS में ऐसे मामलों को धारा 147-158 में परिभाषित किया गया है। इसमें दोषी व्यक्ति को उम्रकैद या फांसी का प्रावधान है।
मानसिक स्वास्थ्य- मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने को क्रूरता माना गया है। इसमें दोषी को 3 साल की सजा का प्रावधान है।
चुनावी अपराध- चुनाव से जुड़े अपराधों को धारा 169 से 177 तक रखा गया है।
चुनावी अपराध- चुनाव से जुड़े अपराधों को धारा 169 से 177 तक रखा गया है।
पिछले शीतकालीन सत्र में पारित हुए
विधेयक पिछले साल शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में पारित किये गये थे। नए आपराधिक कानून भारतीय नागरिकों को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं। इन कानूनों का लक्ष्य सभी के लिए अधिक सुलभ, सहायक और कुशल न्याय प्रणाली बनाना है। नए आपराधिक कानूनों के प्रमुख प्रावधानों में घटनाओं की ऑनलाइन रिपोर्टिंग, किसी भी पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करना और साथ ही पीड़ितों को एफआईआर की मुफ्त प्रति मिलना शामिल है। इसके अलावा, गिरफ्तारी की स्थिति में व्यक्ति को इच्छानुसार किसी व्यक्ति को अपनी स्थिति के बारे में सूचित करने का अधिकार है। नए कानूनों में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों की जांच को भी प्राथमिकता दी गई है। 'न्याय' प्रदान करने पर जोर
तीन नए कानूनों के संबंध में मुम्बई में संपन्न एक सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा- नए कानून विभिन्न पक्षों के साथ व्यापक परामर्श के बाद बनाए गए हैं। नए आपराधिक कानूनों में औपनिवेशिक कानूनों के विपरीत 'न्याय' प्रदान करने पर जोर दिया गया है, जबकि औपनिवेशिक कानूनों में 'सजा' पर अधिक ध्यान दिया जाता था।
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