#Social_Media : धर्मांतरण गिरोहो से पंजाब में परेशान हिन्दू जैन बौद्ध सिक्ख, फिर भी अकाल...

...तख्त और खालिस्तानी क्यों हैं चुप ?  
- कांग्रेस का 62 साल पहले हिन्दू विरोध और “विवेकानन्द रॉक” : बात निकलेगी तो नेहरु तक जायेगी
- काफिरों की सरकार के मुफ़्त के पैसों की लालच में कुरान की कर रहे तौहीन 
- मोदी और मोसादेग : ईरान 1951 और भारत 2024 समानताएँ

#Social_Media : आज के चुनिंदा पोस्ट्स, ट्वीट्स, वीडियो, कमेंट्स...20240602
धर्म नगरी / DN News 
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बात निकलेगी तो फिर नेहरु तक जायेगी!
अब चूँकि प्रधानमंत्री मोदी के कन्याकुमारी में “विवेकानन्द रॉक” पर ध्यान करने पर विवाद शुरू हुआ, तो इसका इतिहास भी निकल ही आएगा। इस विवाद की जड़ें भी नेहरु तक ही पहुँच जाती हैं...

हुआ यूँ कि 1962 में विवेकानन्द जन्मशती के अवसर पर कन्याकुमारी में लोगों ने एक समिति बनाई और तय किया कि एक पैदल ब्रिज उस चट्टान तक बनवाया जाए, जिसे स्वामी विवेकानन्द के कन्याकुमारी निश्चय के लिए जाना जाता है। स्वामी विवेकानन्द 24 दिसम्बर 1892 को कन्याकुमारी पहुंचे थे और दर्जनों पुस्तकें उनके तैरकर इस चट्टान पर जाने और ध्यान लगाने की गवाही देती हैं। इस चट्टान पर एक छोटा सा स्मारक बनाने की योजना भी थी। करीब-करीब इसी समय मद्रास के रामकृष्ण मिशन आश्रम ने भी ऐसे ही स्मारक की योजना बनाई।

आपको पता ही होगा, कि 1962 नेहरु का दौर था। स्थानीय आबादी में एक बड़ी संख्या कैथोलिक मछुआरों की थी। चट्टान तक उस दौर में केवल तैरकर या नाव से पहुंचा जा सकता था। इन कैथोलिक समूहों ने चट्टान को सैंट ज़ेवियर रॉक बुलाना शुरू कर दिया और एक बड़ा सा क्रॉस बनाकर उस चट्टान पर लगा दिया। क्रॉस इतना बड़ा था कि अगली सुबह किनारे से ही नजर आने लगा तो फौरन हिन्दुओं ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। राज्य की सरकार बहादुर (जो कांग्रेस की ही थी) न्यायिक जांच के आदेश दिए। जुडिशल प्रोब में कहा गया कि ये विवेकानन्द रॉक ही है इसलिए वहाँ क्रॉस लगा देना तो घुसपैठ हुई। हंगामा चल ही रहा था, कि एक रात फ्रांसिस ज़ेवियर भाग गए, मतलब क्रॉस अचानक गायब हो गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वामी विवेकानंद रॉक मेमोरियल की डायरी में लिखे स्वयं के संस्मरण

अबतक स्थिति विस्फोटक हो चुकी थी इसलिए विवेकानन्द रॉक को प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित करके कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. भक्तवत्सलम ने वहाँ हथियारबंद सिपाहियों का पहरा लगा दिया। मामला केंद्र की (कांग्रेस) सरकार पर फेंककर राज्य सरकार निश्चिन्त हो गयी। केंद्र में उस समय संस्कृति मंत्री थे हुमांयू कबीर। जाहिर सी बात है कि कौम के प्रति वफादारी निभाते हुए उन्होंने मामले को अटकाया। अबतक इस मामले में एकनाथ रानाडे जी का प्रवेश हो चुका था। उन्हें विवेकानन्द मेमोरियल रॉक मिशन का प्रमुख भी बना दिया गया था। 

एकनाथ जी को पता था कि हुमांयू कबीर का चुनावी क्षेत्र कोलकाता (तब कलकत्ता) का है। एकनाथ जी ने उनके क्षेत्र में ही खबर फैला दी, कि नेता जी तो बंगाल के सबसे विख्यात सुपुत्र का स्मारक नहीं बनने दे रहे! बंगाल में हुमांयू कबीर को व्यापक विरोध के सामने झुकना पड़ा। अब हुंमायूं कबीर ने बहाना बनाया कि विवेकानन्द रॉक पर निर्माण से तो चट्टान की शोभा चली जाएगी, इसलिए उन्होंने स्मारक के नाम पर एक स्टोन टेबलेट लगाने की बात की।

इस तरह 17 जनवरी 1963 तक वहाँ केवल एक स्टोन स्लैब लग पाया। एकनाथ रानाडे इस बीच लाल बहादुर शास्त्री जी के संपर्क में थे और दोनों नेताओं ने समझ लिया था कि नेहरु के आदेश के बिना काम नहीं होगा। तीन दिन तक एकनाथ रानाडे दिल्ली में ही रुके और विवेकानंद मेमोरियल रॉक पर स्मारक के समर्थन में उन्होंने सांसदों के हस्ताक्षर इकठ्ठा करने शुरू किये। तीन दिन के अन्दर जब वो 323 सांसदों का समर्थन जुटा लाये तब कहीं जाकर कांग्रेसी सरकार थोड़ी ढीली पड़ी। इतने के बाद भी काम पूरा नहीं हुआ था। 

कांग्रेसी मुख्यमंत्री एम. भक्तवत्सलम ने इसके बाद भी केवल पंद्रह फीट बाय पंद्रह फीट का स्मारक बनाने की आज्ञा दी। एकनाथ को पता था कि इतने से काम नहीं हो सकता तो वो कांची कामकोटी पीठ के 68वें शंकराचार्य जगद्गुरु श्री चंद्रशेखर सरस्वती महास्वमिंगल के पास जा पहुंचे। कांची पीठ के शंकराचार्य महापेरियावर ने जो 130 फीट डेढ़ इंच बाय छप्पन फीट का नक्शा सुझाया उसपर मजबूरन एम. भक्तवत्सलम माने।

इतने के बाद सवाल था कि ये स्मारक बनाने के लिए पैसे कहाँ से आयेंगे? एकनाथ रानाडे ने विश्व भर के हिन्दुओं को एक-एक रुपये का चंदा करने के लिए आमंत्रित किया और जैसे अभी राम जन्मभूमि मंदिर हिन्दुओं के दान से बना है वैसे ही विवेकानन्द रॉक पर स्मारक बना। स्वामी विवेकानन्द की 108वीं जयंती (हिन्दू पंचांग के हिसाब से) 7 जनवरी 1972 को थी और इस दिन ॐ लिखा भगवा ध्वज यहाँ फहराकर विवेकानन्द केंद्र की स्थापना की घोषणा हुई। हमें विश्वास है कि आज के कई लोग इस संघर्ष की गाथा से भी अपरिचित होंगे। स्वतंत्र भारत में भी स्वतंत्रता हिन्दुओं ने एक-डेढ़ इंच लड़-लड़ कर पायी है। विवाद हमारी आने वाली पीढ़ियों को हमारे पूर्वजों के संघर्ष की गाथाएँ सुनने के लिए अच्छा अवसर है, सुनाना भूलियेगा मत !
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सोशल मीडिया में अपील : मक्कार "फर्जीवाल" की सुनिए...
दो जून के बाद इसका और कांग्रेस का ठगबंधन खत्म होना तय है, ये केवल दिल्ली में सांसदिय क्षेत्रों में सीट पाने के लिए कांग्रेस से गठजोड़ किया है, जबकि पंजाब में अलग लड़ रहा है,
जनता को बेवकूफ समझ रहा है ये धूर्त फर्जीवाल❓कांग्रेसी दल्ला पत्रकार राजदीप सरदेसाई से बातचीत के दौरान खुली इसकी पोल 😃
सुनें- 
 
केजरीवाल का नया पंजाब...👿 
पूरे पंजाब में कहीं भी आप जाएं... 
जैन / बौद्ध / सिक्ख / हिंदुओं का जीना मुहाल कर रखा है धर्मांतरण गिरोहो ने...😠
अकाल तख्त और खालिस्तखनियों का रवैया है आश्चर्यजनक 

खुलेआम बसों में, स्कूलों में, गांवों में, ट्रेनों में जैनों / बौद्धों / सिक्खों / हिंदुओं को इसी प्रकार प्रताड़ित करते और बरगलाते मिल जाते हैं ये धर्मांतरण गिरोह...🤬
मगर न अकाल तख्त को कोई दिक्कत है और न ही खालिस्तखनियों को... क्यों ?

पजांब के सरेआम हो रहे ईसाईकरण पर किसी के मुंह से एक शब्द भी नहीं फूट रहा...🤨
खुलेआम धर्मांतरण की आजादी का सौदा करके तो पंजाब कि सत्ता हथियाने में कामयाब हुआ है !
जहां-जहां विदेशी मिशनरी दलाल सत्ता हथियाने में कामयाब रहे, वहां वहां यही प्रताड़ना का माहौल है...🧟‍♂️
New Punjab, thanks to Aam Aadmi Party these christian church people can be seen in buses harassing people...
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Disclaimer : अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत हमारा संविधान हमे अपनी बात या पक्ष कहने की अनुमति देता है. इस कॉलम (आज के चुनिंदा पोस्ट्स, ट्वीट्स, कमेंट्स...) में सभी पोस्ट SOCIAL MEDIA से ली गई है, यह जरूरी नहीं की सभी पोस्ट अक्षरशः सत्य हों, हम यथासम्भव हर पोस्ट की सत्यता परख कर इस कॉलम में लेते हैं, फिर भी हम सभी पोस्ट एवं उनकी सभी तथ्यों से पूर्ण सहमत नहीं हैं -सम्पादक 
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ध्रुव राठी गाता था AAP के लिए गाना, 
फेमस होकर डिलीट किए वीडियोज
एल्विश यादव की वीडियो में कई खुलासे, CAA दंगों से भी राठी का निकाला कनेक्शन

प्रोपेगेंडा वीडियो बनाने वाले यूट्यूबर ध्रुव राठी की पोल एल्विश यादव ने खोल दी है। ध्रुव राठी के आम आदमी पार्टी से जुड़ाव समेत उसके द्वारा चलाए गए दुष्प्रचार की भी सच्चाई एल्विश यादव ने सामने रखी है। इसमें बताया गया है कि कैसे ध्रुव राठी ने लगातार झूठ पर आधारित वीडियो बनाए और उसके कहाँ कहाँ लिंक हैं।

ध्रुव राठी के निष्पक्ष होने के दावे को लेकर एल्विश यादव ने सबूतों के साथ बताया है कि ध्रुव राठी आम आदमी पार्टी के आईटी सेल के लिए काम करते थे। वह आम आमदी पार्टी के लिए बनाए गए गाने फेसबुक पर डाला करते थे। वह इस टीम के एक सक्रिय सदस्य थे। एल्विश ने यह भी बताया कि ध्रुव राठी AAP का घोषणा पत्र बनाने वाली टीम का हिस्सा रहे हैं, इसी पुष्टि AAP पदाधिकारियों ने भी की थी।

एल्विश ने खुलासा किया कि ध्रुव राठी ने दिसम्बर 2014 में अरविन्द केजरीवाल के लिए एक गाना भी बनाया था और इसके अलावा 2015 में भी एक गाना AAP कार्यकर्ताओं पर बनाया था। AAP के लिए बनाई गई कई वीडियो ध्रुव राठी ने बाद में डिलीट भी की हैं, इनसे उनके लिंक का खुलासा हो रहा था।

इसी तरह की एक वीडियो में राठी ने दिल्ली की ऑड इवन स्कीम को लेकर बात की थी, इसे बाद में डिलीट कर दिया गया था। निष्पक्षता का दावा करने वाले ध्रुव राठी भाजपा के खिलाफ फर्जी दावे भी करते आए हैं। एक वीडियो में ध्रुव राठी ने AAP नेताओं के अपराधों को छुपा कर भाजपा नेताओं को अपराध में संलिप्त बताया था।

एल्विश यादव ने ध्रुव राठी के अन्य ऐसे ही लोगों से लिंक के खुलासे भी किए जो लगातार भारत विरोधी प्रोपेगेंडा में लगे रहे हैं। एल्विश ने खुलासा किया कि ध्रुव राठी का एक साथी आदिल अमन लगातार पीएम मोदी और अमित शाह की मौत की बात कर रहा था। वह ब्राम्हणों और महिलाओं को लेकर भी जहर उगल रहा था। ध्रुव राठी के एक प्रदर्शन में वामपंथी छात्र संगठन के सदस्य भी शामिल हुए थे।

ध्रुव राठी से जुड़े आदिल अमन का जुड़ाव हर्ष मांदर से है। हर्ष मांदर CAA विरोधी दंगों के दौरान भड़काऊ भाषण दे रहे थे। वह पूर्व IAS हैं और भाजपा और पीएम का विरोध करते रहते हैं। आदिल अमन, हर्ष मांदर भी ध्रुव राठी के बाद जर्मनी भाग चुके हैं। हर्ष मांदर दंगा विरोधी बिल भी लाया था, जिसके जरिए हिन्दुओं की प्रताड़ना की साजिश रची जा रही थी। वह जॉर्ज सोरोस के नेटवर्क से जुड़ा हुआ है।

एल्विश ने हर्ष मांदर और ध्रुव राठी के वीडियो के बीच के लिंक को भी सामने रखा। हर्ष मांदर जिन मुद्दों को उठाते हैं, उन पर ध्रुव राठी वीडियो बनाते हैं। इनमें कई बार वह झूठ बोलते हैंध्रुव राठी के एक वीडियो के पीछे हर्ष मांदर का एक लेख था जो कि वीडियो से दो दिन ही पहले लिखा गया था।

एल्विश ने बताया कि ध्रुव राठी की अधिकांश वीडियो हर्ष मांदर के लेख के बाद आती हैं। इसके अलावा ध्रुव राठी के तार इरफ़ान मेहराज से जुड़े हैं, जो कि भारत विरोधी लेख और वीडियो सामग्री बनाता रहा है, उसे NIA ने भी गिरफ्तार किया था, यह जानकारी भी एल्विश यादव ने दी है।

ध्रुव राठी ने जहाँ एक तरफ पीएम मोदी को तानाशाह बताया वहीं वह स्वयं आलोचना नहीं सुनते। ध्रुव राठी अपने विरोध में बनने वाली हर एक वीडियो को रिपोर्ट करवाते हैं, उनके समर्थक उस पर उलटे सीधे कमेन्ट करते हैं। यहाँ तक कि लोगों पर हमला भी करवाया जाता है। एल्विश ने बताया कि जर्मनी के भीतर एक यूट्यूबर पर राठी समर्थकों ने हमला किया था। ध्रुव राठी पर एल्विश का यह वीडियो आप नीचे लगे लिंक पर सकते हैं।
प्रोपेगेंडा वीडियो बनाने वाले यूट्यूबर ध्रुव राठी की पोल एल्विश यादव ने खोल दी है। ध्रुव राठी के आम आदमी पार्टी से जुड़ाव समेत उसके द्वारा चलाए गए दुष्प्रचार की भी सच्चाई एल्विश यादव ने सामने रखी है। इसमें बताया गया है कि कैसे ध्रुव राठी ने लगातार झूठ पर आधारित वीडियो बनाए और उसके कहाँ कहाँ लिंक हैं।

ध्रुव राठी के निष्पक्ष होने के दावे को लेकर एल्विश यादव ने सबूतों के साथ बताया है कि ध्रुव राठी आम आदमी पार्टी के आईटी सेल के लिए काम करते थे। वह आम आमदी पार्टी के लिए बनाए गए गाने फेसबुक पर डाला करते थे। वह इस टीम के एक सक्रिय सदस्य थे। एल्विश ने यह भी बताया कि ध्रुव राठी AAP का घोषणा पत्र बनाने वाली टीम का हिस्सा रहे हैं, इसी पुष्टि AAP पदाधिकारियों ने भी की थी।

एल्विश ने खुलासा किया कि ध्रुव राठी ने दिसम्बर 2014 में अरविन्द केजरीवाल के लिए एक गाना भी बनाया था और इसके अलावा 2015 में भी एक गाना AAP कार्यकर्ताओं पर बनाया था। AAP के लिए बनाई गई कई वीडियो ध्रुव राठी ने बाद में डिलीट भी की हैं, इनसे उनके लिंक का खुलासा हो रहा था।

इसी तरह की एक वीडियो में राठी ने दिल्ली की ऑड इवन स्कीम को लेकर बात की थी, इसे बाद में डिलीट कर दिया गया था। निष्पक्षता का दावा करने वाले ध्रुव राठी भाजपा के खिलाफ फर्जी दावे भी करते आए हैं। एक वीडियो में ध्रुव राठी ने AAP नेताओं के अपराधों को छुपा कर भाजपा नेताओं को अपराध में संलिप्त बताया था।

एल्विश यादव ने ध्रुव राठी के अन्य ऐसे ही लोगों से लिंक के खुलासे भी किए जो लगातार भारत विरोधी प्रोपेगेंडा में लगे रहे हैं। एल्विश ने खुलासा किया कि ध्रुव राठी का एक साथी आदिल अमन लगातार पीएम मोदी और अमित शाह की मौत की बात कर रहा था। वह ब्राम्हणों और महिलाओं को लेकर भी जहर उगल रहा था। ध्रुव राठी के एक प्रदर्शन में वामपंथी छात्र संगठन के सदस्य भी शामिल हुए थे।

ध्रुव राठी से जुड़े आदिल अमन का जुड़ाव हर्ष मांदर से है। हर्ष मांदर CAA विरोधी दंगों के दौरान भड़काऊ भाषण दे रहे थे। वह पूर्व IAS हैं और भाजपा और पीएम का विरोध करते रहते हैं। आदिल अमन, हर्ष मांदर भी ध्रुव राठी के बाद जर्मनी भाग चुके हैं। हर्ष मांदर दंगा विरोधी बिल भी लाया था, जिसके जरिए हिन्दुओं की प्रताड़ना की साजिश रची जा रही थी। वह जॉर्ज सोरोस के नेटवर्क से जुड़ा हुआ है।

एल्विश ने हर्ष मांदर और ध्रुव राठी के वीडियो के बीच के लिंक को भी सामने रखा। हर्ष मांदर जिन मुद्दों को उठाते हैं, उन पर ध्रुव राठी वीडियो बनाते हैं। इनमें कई बार वह झूठ बोलते हैंध्रुव राठी के एक वीडियो के पीछे हर्ष मांदर का एक लेख था जो कि वीडियो से दो दिन ही पहले लिखा गया था।

एल्विश ने बताया कि ध्रुव राठी की अधिकांश वीडियो हर्ष मांदर के लेख के बाद आती हैं। इसके अलावा ध्रुव राठी के तार इरफ़ान मेहराज से जुड़े हैं, जो कि भारत विरोधी लेख और वीडियो सामग्री बनाता रहा है, उसे NIA ने भी गिरफ्तार किया था, यह जानकारी भी एल्विश यादव ने दी है।

ध्रुव राठी ने जहाँ एक तरफ पीएम मोदी को तानाशाह बताया वहीं वह स्वयं आलोचना नहीं सुनते। ध्रुव राठी अपने विरोध में बनने वाली हर एक वीडियो को रिपोर्ट करवाते हैं, उनके समर्थक उस पर उलटे सीधे कमेन्ट करते हैं। यहाँ तक कि लोगों पर हमला भी करवाया जाता है। एल्विश ने बताया कि जर्मनी के भीतर एक यूट्यूबर पर राठी समर्थकों ने हमला किया था। ध्रुव राठी पर एल्विश का यह वीडियो आप नीचे लगे लिंक पर सकते हैं।

ध्रुव राठी छत्रपति शिवाजी पर भी झूठ फैलाता रहा है। उसने अपने हिसाब से तथ्य बताए और अपने नैरेटिव को साधने का प्रयास किया। एल्विश ने खुलासा किया कि ध्रुव राठी की वीडियो को एक और सहयोगी विजेता दहिया लिखती हैं, इसकी टीम के तीन और सदस्य वीडियो से जुड़े बाकी काम करते हैं। ध्रुव राठी ने एक क्रिप्टोकरेंसी को भी बढ़ावा दिया था, इसमें लोगों के पैसे डूबे थे। इसके अलावा ध्रुव राठी लगातर हिन्दुओं को अपने वीडियो में आतंकी बताता रहा है।

गौरतलब है कि ध्रुव राठी को लगातार लिबरल और वामपंथी गैंग प्रमोट करता आया है, वह ध्रुव राठी को एक बुद्धिजीवी बताते हैं और सच सामने रखने वाला पत्रकार बताते हैं, असल में जबकि वह हिन्दुओं से घृणा करने वाला एक्टिविस्ट है। उसके काले कारनामों का अब धीमे धीमे खुलासा होने लगा है। एल्विश का यह वीडियो ध्रुव राठी पर और सच्चाई को सामने लाता है।
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काफिरों के पैसों की लालच में कर रहे कुरान की तौहीन 
काफिरों की बेंक में खाता खुलवाना शरिया में कुफ्र माना गया है,
नजिस मुनाफकिन नाजायज़ औलादें भीड़तंत्र बनकर काफिरों की सरकार के मुफ़्त के पैसों की लालच में मुसलमान कुरआन के कहे की सरेआम तौहीन कर रहे हैं..

कुरआन की नाफरमानी के लिए ईन सभी को दोजख और जहन्नुम में जगह मिलेगी.. 
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मोदी और मोसादेग
ईरान 1951 और भारत 2024 : समानताएँ   

क्या आपने कभी सोचा कि "ईरान के लोग अमेरिका को "शैतान की भूमि" क्यों कहते हैं ?

ब्रिटिशों ने ईरान के तेल व्यापार पर अपना दबदबा कायम कर लिया था, ईरान के तेल उत्पादन का 84% हिस्सा इंग्लैंड को जाता था और केवल 16% ईरान को।

1951 में, एक कट्टर देशभक्त मोहम्मद मोसादेग प्रधानमंत्री बने।

उन्हें ईरान के तेल व्यापार में विदेशी कंपनियों का दबदबा पसंद नहीं था।

15 मार्च, 1951 को उन्होंने संसद में ईरान के तेल उद्योग के राष्ट्रीयकरण के लिए एक विधेयक पेश किया, जिसे बहुमत से पारित कर दिया गया।

इस विधेयक के पारित होने के बाद, ईरानियों को खुशी के सपने आने लगे, कि अब उनकी गरीबी दूर हो जाएगी! टाइम्स पत्रिका ने 1951 में मोसादेग को "मैन ऑफ द ईयर" कहा! 

लेकिन इन घटनाक्रमों के कारण, अंग्रेजों को बहुत कुछ खोना पड़ा! अंग्रेजों ने मोसादेग को हटाने के लिए कई छोटे-बड़े प्रयास किए, मोसादेग को रिश्वत देने की कोशिश की, मोसादेग की हत्या करने की कोशिश की, सैन्य तख्तापलट की कोशिश की, लेकिन मोसादेग बहुत अनुभवी और बुद्धिमान था, इसलिए अंग्रेजों की हत्या, रिश्वतखोरी की साजिशें विफल हो गईं। मोसादेग ईरानी लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय था।

 लोकप्रिय होने के कारण, सैन्य तख्तापलट भी संभव नहीं था।
अंत में अंग्रेजों ने अमेरिका से मदद मांगी।

अमेरिका की CIA ने मोसादेग को हटाने के लिए 1 मिलियन डॉलर का फंड मंजूर किया। 1 मिलियन डॉलर 4250 करोड़ रियाल (ईरानी मुद्रा) के बराबर है!

 अमेरिका की योजना मोसादेग के खिलाफ असंतोष पैदा करने और उसके प्रति लोगों के समर्थन को खत्म करने की थी, फिर भ्रष्ट सांसदों की मदद से उसकी सरकार को उखाड़ फेंकना था।

अमेरिका ने बड़ी संख्या में ईरानी पत्रकारों, संपादकों, मुस्लिम मौलवियों को 631 करोड़ रियाल का भुगतान किया। बदले में उन पत्रकारों, संपादकों और मुस्लिम मौलवियों को सिर्फ एक ही काम करना था, वह था लोगों को मोसादेग के खिलाफ भड़काना।

हजारों ईरानियों को झूठे विरोध में भाग लेने के लिए भुगतान किया गया। उन्होंने संसद पर मार्च करना शुरू कर दिया। दुनिया भर के बड़े मीडिया ने भी अमेरिका का समर्थन करना शुरू कर दिया।

"द न्यूयॉर्क टाइम्स" में मोसादेग को "तानाशाह" के रूप में संदर्भित किया जाने लगा। यही हाल मोदी का भी किया जाता है। टाइम पत्रिका नें मोदी को "डिवाइडर इन चीफ" कहा था। तानाशाह तो आज भी कहा ही जा रहा है।

मोसादेग का विरोध बहुत ही निचले स्तर पर शुरू हुआ, जिसमें कार्टूनों में उन्हें समलैंगिक के रूप में दर्शाया गया। उसी प्रकार जैसे मोदीजी के दाम्पत्य जीवन को निशाना बनाया जाता है।

यह महसूस करते हुए कि उनकी सरकार भ्रष्ट सांसदों द्वारा उखाड़ फेंकी जाने वाली है, मोसादेग ने संसद को भंग कर दिया। अमेरिका ने ईरानी सम्राट को मोसादेग को प्रधानमंत्री के पद से हटाने के लिए मजबूर किया। अंत में, 210 मिलियन रियाल की रिश्वत देकर, अमेरिका ने भाड़े के सैनिकों की मदद से ईरान की राजधानी में फर्जी दंगे भड़काए।

सम्राट के ईरान लौटने के बाद, मोसादेग ने आत्मसमर्पण कर दिया। उस पर मुकदमा चलाया गया, उसे कैद किया गया और फिर उसकी मृत्यु तक उसे घर में ही नजरबंद रखा गया।  (मोसादेग की मृत्यु 85 वर्ष की आयु में हिरासत में हुई।)

उसके बाद, अमेरिका और इंग्लैंड ने ईरानी तेल का 40-40% हिस्सा साझा किया और शेष 20% अन्य यूरोपीय कंपनियों को दे दिया गया।

दशकों तक ईरानी लोगों को शाह की तानाशाही के अधीन रहना पड़ा। एक क्रांति ने राजशाही को समाप्त कर दिया; लेकिन फिर कट्टरपंथी खोमैनी सत्ता में आए और ईरानी लोगों की स्थिति और भी खराब हो गई।

मोसादेग का अपराध क्या था..?

"देश के क्षेत्रों में विदेशी कंपनियों के बजाय स्वदेशी कंपनियों का वर्चस्व होना चाहिए!" यह नीति उनका अपराध थी..?

मोसादेग के नेतृत्व में, ईरान 1955 से पहले एक पूर्ण लोकतांत्रिक देश बन सकता था, और इसके तेल उत्पादन से केवल ईरान को ही लाभ हो सकता था।

> लेकिन ईरान के भ्रष्ट सांसदों, पत्रकारों, संपादकों, प्रदर्शनकारियों ने ईरान के समृद्ध भविष्य को मात्र दस लाख डॉलर में बेच दिया।

दमन के इस दौर में ईरानी लोगों को यह एहसास होने लगा कि मोसादेग की सरकार को उखाड़ फेंकने में अमेरिका का हाथ था।

इसलिए ईरानी अमेरिका को "शैतान का देश" कहते हैं! 

अब विचार करें कि ईरान के लिए असली खलनायक कौन थे..? वे अमेरिका के हाथों बिके हुए  पत्रकार थे, संपादक थे, सांसद थे कार्यकर्ता थे । 

❓❓❓❓❓❓❓❓

> अगर ये लोग नहीं बिकते और लोग मोसादेग के पीछे खड़े होते, तो अमेरिका कतई  सफल न होता। लेकिन चार पैसे के लिए देशभक्त नेता को "कुमशाह" कहा गया और देखते ही देखते पूरा देश बर्बाद हो गया! 

> हमारा देश 'भारत' भी आज उसी राह पर है।  यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि आम नागरिक चल रही साजिशों को तब तक नहीं देख पाते, जब तक कि उन्हें अंतहीन अत्याचारों का सामना न करना पड़े।

> फ़र्ज़ी मुद्दे, फ़र्ज़ी किसान आंदोलन, फ़र्ज़ी आंकड़े, तुष्टिकरण, अल्पसंख्यक समुदाय को उकसाना, कम्युनिस्ट लॉबी द्वारा राष्ट्रविरोधी ताकतों को साथ देना, ये सब वे राष्ट्रघाती क़दम हैं जो आजकल भारत में जोरों पर हैं ताकि विदेशी अनिष्ट कारक ताकतों का भारत पर आर्थिक सामाजिक और प्रशासनिक नियंत्रण हो जाये ।

समय रहते सचेत हो जाना और इस भ्रष्ट मीडिया दुष्प्रचार का शिकार न बनना ही समझदारी है। अपने देशभक्त वर्तमान भारतीय नेतृत्व पर भरोसा रखें और मोदी के पीछे मजबूती से खड़े रहें। अन्यथा ईरान जैसी आपदा अवश्यंभावी है.....

बड़े पूंजीवादी देशों की खुफिया एजेंसियां भारत के कई राजनेताओं को अपने एजेंट के रूप में काम करवाने के लिए दिन-रात काम कर रही हैं, जिसका एकमात्र उद्देश्य देश के वर्तमान नेतृत्व (मोदी) को हटाना है।

 कहते हैं कि हमारा भाग्य हमारे अपने हाथों में है। बस हमें इसे ठीक से समझने की जरूरत है।
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"Allah, Allah, Who the Fu*k is Allah"
"ब्रिटेन हमारी जमीन है, इसपर मुसलमानों का कब्जा नहीं होंगे देंगे।"
ब्रिटिश पार्लियामेंट के बाहर 5 लाख लोगों ने इस्लाम के खिलाफ किया प्रदर्शन।
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