फ्रांस चुनाव : "लेफ्ट-लिबरल’ कितना विरोधाभासी" Vs राहुल गाँधी का बयान


फ्रांस चुनाव में मुस्लिम विरोधियों का सपना हुआ चूर
12वीं सदी का फ्रांस में चर्च जिसे दंगाइयों ने आग लगा दिया #SocialMedia   

फ्रांस में 30 जून को पहले चरण का चुनाव हुआ था, जिसमें मरीन ले पेन की ‘नेशनल रैली’ ने बढ़त बनाई थी। ‘नेशनल रैली’ का नस्लवाद और यहूदी-विरोधी भावना से पुराना संबंध है और यह फ्रांस के मुस्लिम समुदाय की भी विरोधी मानी जाती है। ऐसे दूसरे राउंड के चुनाव के इन परिणामों को उसके (मुस्लिम विरोधियों) लिए बड़े झटके की तरह देखा जा रहा है.

दिल्ली ब्यूरो (धर्म नगरी / DN News) 
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‘लैफ्ट -लिबरल’ कितना विरोधाभासी है, उसका प्रत्यक्ष उदाहरण फ्रांस में हुए संसदीय चुनाव में देखने को मिल गया। जब पहले चरण के चुनाव में दक्षिणपंथी ‘नैशनल रैली’ गठबंधन ने वामपंथी दलों के ऊपर निर्णायक बढ़त बनाई और उसकी प्रचंड जीत की संभावना बनने लगी, तब इसी ‘लैफ्ट-लिबरल’ गिरोह के चेहरे से ‘लिबरल’ मुखौटा एकाएक उतर गया। वास्तव में, ‘लैफ्ट-लिबरल’ संज्ञा किसी फरेब से कम नहीं। यह दो अलग शब्दों को मिलाकर बना है, जिनका रिश्ता पानी-तेल के मिलन जैसा है। ऐसा इसलिए क्योंकि जहां वामपंथ होता है, वहां उसके वैचारिक चरित्र के मुताबिक हिंसा, असहमति का दमन, मानवाधिकारों का हनन और अराजक व्यवस्था की भरमार होती है।

चुनाव परिणमों के बाद फ्रांस की सड़कों पर हिंसा भड़क उठी। दर्जनों परेशान करने वाले वीडियो सामने आए हैं, जिसमें कई नकाबपोश प्रदर्शनकारियों को सड़कों पर उत्पात मचाते, फ्रांस के कुछ हिस्सों में आग लगाते हुए देखा गया। "डेली मेल "की रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारियों ने राजनीतिक तनाव बढ़ने की आशंका के चलते पूरे देश में 30,000 दंगा पुलिस तैनात कर दिया।  

ठीक इसी तरह वामपंथ और एकेश्वरवादी दर्शन का गठजोड़ भी छलावा है। ऐसे में एक ‘लैफ्ट’ का ‘लिबरल’ होना असंभव है। इस पृष्ठभूमि में फ्रांस का घटनाक्रम महत्वपूर्ण हो जाता है। फ्रांसीसी संसदीय चुनाव के पहले चरण में लैफ्ट पार्टियों के ‘न्यू पॉपुलर फ्रंट’ के पिछडऩे के बाद लेफ्ट ने ‘एंटीफा’ (वामपंथी समूह) और जेहादियों के साथ मिलकर हिंसक प्रदर्शन शुरू कर दिया। वे अपने खिलाफ आए इस जनादेश को मानने को तैयार नहीं हुए। उन्होंने सड़कों पर कब्जा करके कई निजी-सार्वजनिक संपत्तियों को पैट्रोल-बम के इस्तेमाल से राख कर दिया, तो सुरक्षा में तैनात सैंकड़ों पुलिसकर्मियों पर टूट पड़े। इस दौरान दंगाइयों ने कई दुकानों को भी लूट लिया, उनमें तोडफ़ोड़ की और स्थानीय भवनों को बदरंग कर दिया।

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अधिकतर फ्रांसीसी राजनीतिक विश्लेषक इस परिणाम पर पहुंच चुके थे, कि राष्ट्रवादी दल की नेता मरीन ले पेन के नेतृत्व में ‘नेशनल रैली’ और उसके सहयोगी 250-300 सीट जीत सकते हैं। उनका यह अनुमान इसलिए भी ठीक लग रहा था, क्योंकि इसी वर्ष हुए यूरोपीय चुनाव में भी मरीन नेतृत्व ने शानदार प्रदर्शन किया था। लेकिन ‘नैशनल रैली’ को किसी भी सूरत में रोकने के लिए पहले चरण  में अलग-अलग चुनाव लड़ने वाले फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों नीत मध्यमार्गी ‘इनसैंबल’ और वामपंथी ‘न्यू पॉपुलर फ्रंट’ ने दूसरे चरण के अंतिम समय में गठबंधन (रिपब्लिकन फ्रंट) कर लिया। इसके तहत दोनों ने मिलकर अंतिम समय में अपने कुल 217 उम्मीदवारों को मैदान से हटा लिया, ताकि दक्षिणपंथ विरोधी वोट एकजुट रहे। परिणामस्वरूप, नाटकीय मोड़ के साथ ‘नेशनल रैली’ ऐसी पिछड़ी, कि वह पहले से सीधे तीसरे स्थान पर खिसक गई।

भले ही दक्षिणपंथी ‘नैशनल रैली’ चुनाव हार गई, परंतु उसे सर्वाधिक 37.1 प्रतिशत वोट प्राप्त हुआ, तो उसके विरोधी लेफ्ट गठजोड़ और मैक्रों नीत ‘इनसैंबल’ का मत प्रतिशत क्रमश: 26.3% और 24.7% ही रहा। फ्रांस की 577 सदस्यीय नैशनल असेंबली (संसद) में तीनों प्रमुख गठबंधनों में से किसी को भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। फ्रांसीसी गृह मंत्रालय द्वारा जारी परिणाम के अनुसार-
वामपंथी ‘न्यू पॉपुलर फ्रंट’ सबसे ज्यादा 188 सीट
मध्यमार्गी ‘इनसैंबल’ को 161 सीट 
दक्षिणपंथी ‘नैशनल रैली’ 142 सीट जीतने में सफल रही है। 

भारत में भी ‘लैफ्ट-लिबरल’ का पाखंड फ्रांस से अलग नहीं है। यहां कांग्रेस के शीर्ष नेता और लोकसभा में नेता-प्रतिपक्ष राहुल गांधी को इसी श्रेणी में रखना, गलत नहीं होगा। वे विशुद्ध वामपंथी की तरह ‘जितनी आबादी, उतना हक’ नारा लगाते हुए ‘हिन्दुस्तान के धन’ को पुर्नवतरित करने की बात चुके हैं

इस संबंध में 31 मार्च 2024 को दिल्ली के रामलीला मैदान में विपक्षी दलों की ‘लोकतंत्र-संविधान बचाओ’ रैली में राहुल गाँधी के उस वक्तव्य को याद करना स्वाभाविक हो जाता है, जिसमें उन्होंने देश को ङ्क्षहसा की आग में झोंकने का ऐलान किया था। तब उन्होंने कहा था- ‘‘मेरी बात आप अच्छी तरह सुन लो... अगर हिन्दुस्तान में मैच फिक्सिंग कर चुनाव भाजपा जीती और उसके बाद संविधान को उन्होंने बदला, तो इस पूरे देश में आग लगने जा रही है। जो मैंने कहा, याद रखो... ये देश नहीं बचेगा।’’ 

दोबारा फ्रांसीसी चुनाव की ओर लौटते हैं। फ्रांस में मरीन ले पेन को उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों द्वारा यहूदी विरोधी और मुस्लिम विरोधी के रूप में पेश किया जाता है। मरीन फ्रांसीसी सैकुलर मूल्यों और राष्ट्रीय पहचान की रक्षा के लिए आप्रवासियों द्वारा बढ़ते अपराध के खिलाफ आक्रामक रही है। इसमें अक्तूबर 2020 में प्रवासी मुस्लिम द्वारा फ्रांसीसी शिक्षक का ‘सिर तन से जुदा’ करने की घटना भी शामिल है। अब जो वाम-जिहादी समूह पहले चरण के फ्रांसीसी चुनाव में हारने पर हिंसक हो गया था, वे दूसरे चरण के चुनाव में बढ़त बनाने के बाद हाथों में फिलिस्तीनी झंडा लेकर सड़कों पर उतरे और अराजकता फैलाने लगे।

स्थानीय मीडिया के अनुसार, वामपंथी गठजोड़ द्वारा आयोजित कई ‘विजय समारोहों’ में फ्रांसीसी ध्वजों-झंडों की तुलना में फिलिस्तीनी झंडे फहराते और ‘गाजा-गाजा’ नारे लगाते देखे गए थे। वर्ष 1991 में वामपंथ नीत सोवियत संघ के विघटन के बाद विश्व में अमरीका और यूरोप सहित सत्ता के कई केंद्र बन चुके हैं, जिसमें एक अत्यंत शक्तिशाली ‘राज्यहीन’ और ‘बिना उत्तरदायित्व’ वाला समूह भी शामिल है। किसी उपयुक्त संज्ञा के अभाव में इस वर्ग को ‘वोक’ कह सकते हैं।

यह समूह छोटा, अति-मुखर और आक्रामक है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुनी सरकारों को उसके उन घोषित एजैंडे को लागू करने से रोकने और व्यवस्था को पंगु करने का प्रयास करता है। स्वघोषित ‘लैफ्ट-लिबरल’ और ‘वोक’ मानकर चलते हैं कि शेष समाज निर्णय लेने में गैर-काबिल है, इसलिए उन्हें ही उनका भला करने का दैवीय अधिकार प्राप्त है। पूरे विश्व में लोकतंत्र और बहुलतावादी संस्कृति को खतरा है, तो वह दोहरे चरित्र वाले ‘लैफ्ट-लिबरल’ से है। कोई हैरानी नहीं, कि दुनिया में जहां-जहां ‘लैफ्ट’ की सरकार बनी, वहां की उदारवादी व्यवस्था पर आघात हुआ और अंततोगत्वा वह समाज में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के हनन के प्रतीक बन गया। भारत की कालजयी उदारवादी परंपराओं को इसी ‘लैफ्ट-लिबरल’ और ‘वोक’ से भी सर्वाधिक खतरा है।

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जागो हिन्दुओं जागो ✊
हिन्दू विरोधी कांग्रेसियों का चेहरा और चरित्र पहचानो ।
राहुल गांधी सहित पूरी Congress पार्टी हिन्दूओं को अग्निवीर योजना पर भ्रमित कर रही है।
वहीं दूसरी ओर जुम्मे के दिन मस्जिदों से ऐलान हो रहा है कि मुस्लिम अधिक से अधिक अग्निवीर में भर्ती हों ।
अग्निवीर  बनकर आप  4 साल में Defence सीख सकते हैं, राज्य सरकारों में दूसरी नौकरी ले सकते हैं।
आपके पास पैसा होगा उससे स्वरोजगार कर सकते हैं।
यह लोग तुम्हें भड़काते हुए तुमसे ही विरोध करवाते हैं, फिर तुम्हारे ही रोजगार पर कब्जा करते हैं।
पहले तुमने अपना सेलून, पंचर, कबाड़ी, ऑटोमोबाइल, फल फूल सब्जी जैसे तमाम व्यापार को खोया और अब रोजगार भी खोने जा रहे हो। -@Akhand_Bharat_S

Wake up Hindus wake up
Recognize the face and character of anti-Hindu Congressmen.
The entire Congress party including Rahul Gandhi is misleading Hindus on the Agniveer scheme.
On the other hand, on Friday, announcements are being made from mosques that more and more Muslims should join Agniveer.
By becoming Agniveer, you can learn Defence in 4 years and get another job in state governments.
You will have money, you can do self-employment with that.
These people provoke you and make you protest and then take away your employment.
First you lost your entire business like salon, puncture, junk, automobile, fruits, flowers and vegetables and now you are going to lose your job also.
Hindus should join Agniveer in max numbers.
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