रक्षाबंधन पर कब तक है भद्रा का साया, राशि अनुरूप बांधें राखी, करने योग्य विशेष उपाय, रक्षाबंधन की वो फर्जी कहानी और...


..."कर्णावती द्वारा हुमायूँ को राखी भेजने की झूठी घटना"
- शुभ मुहूर्त में बांधें भाइयों की कलाई पर राखी
- राशि के अनुसार कैसे राखी बांधे
- रक्षाबंधन के दिन पड़ेगा सावन का आखिरी सोमवारी व्रत
धर्म नगरी / 
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रक्षाबंधन पर इस बार भद्राकाल के समय को लेकर प्रायः भ्रम (confusion) की स्थिति बनी रहती है। इस भ्रम को सोशल मीडिया एक प्रकार से बढ़ाने का काम करते हैं। इस रक्षाबंधन पर भद्राकाल को लेकर बहुत ही कंफ्यूजन बना हुआ है। भद्राकाल का विचार हर शुभ कार्य में किया जाता है। किसी भी मांगलिक कार्य में भद्रा का योग अशुभ माना जाता है। इसलिए इसका विशेष ध्यान रखा जाता है, कि शुभ कार्य के समय भद्रा का साया न हो। किंवदन्ति के अनुसार, सर्वप्रथम सूर्पणखा ने अपने भाई रावण को भद्राकाल में राखी बांधी थी, जिसके कारण रावण का पतन हुआ। इस बार रक्षाबंधन पर भी भद्रा का साया दिख आ रहा है, जिसे लेकर अलग-अलग मत बने हुए हैं।  

रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त 
भाई-बहन के अटूट प्रेम और विश्वास का बंधन रक्षाबंधन का पवित्र पर्व 19 अगस्त को है। प्रमुख पंचांगों की गणनानुसार, सोमवार (19 अगस्त 2024) दोपहर 1:34 बजे तक भद्रा रहेगी, जिसका निवास पाताल में है। पञ्चाङ्गों के अनुसार, 19 अगस्त को दोपहर 1:34 बजे के बाद रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त रहेगा या बहन द्वारा भाइयों की कलाई पर राखी बांधना सर्वोत्तम होगा। शुभ मुहूर्त दोपहर 1:34 बजे से रात 9:07 बजे तक रहेगा। यानी बहनों को भाइयों के हाथ में राखी बांधने के लिए 7:30 घंटे से ज्यादा का समय मिलने वाला है। इसके अलावा इस दिन राखी बांधने का प्रदोष काल का मुहूर्त- शाम 6:56 बजे से रात 9:07 बजे तक एवं रात 8:24 बजे से 9:50 बजे तक अमृत काल रहने वाला है।

भद्रा का विशेष विचार रक्षाबंधन में किया जाता है। शास्त्रानुसार, भद्रा शनिदेव की बहन हैं, जिस कारण से उनका स्वभाव भी शनि की तरह क्रूर है। रक्षाबंधन की सुबह 5:32 बजे भद्राकाल लगेगा, जब चंद्रमा मकर राशि में गोचर करेंगे और शाम 7 बजे तक मकर राशि में ही रहेंगे। इसके मध्य में भद्रा यानी विष्टि करण दिन में 1:31 बजे समाप्त हो जाएगा। चूंकि भद्रा का वास इस अवधि में (सुबह 5:32 बजे से दोपहर 1:31 बजे तक) पाताल में लोक में होगा और धरती पर इसका प्रभाव नहीं होगा। इसलिए यदि अति आवश्यक हो, तब आप रक्षाबंधन के दिन सुबह भी राखी बांध सकते हैं, क्योंकि पाताल में भद्रा होना मांगलिक कार्यों के लिए अशुभ नहीं होता। 

भद्राकाल को हमारे शास्त्रों ने अशुभ एवं त्याज्य माना है। पंजाब, हरियाणा जम्मू आदि प्रांतों में कहीं-कहीं कुछ लोग रक्षाबंधन के दिन प्रातःकाल से ही (भद्रा आदि किसी अशुभ समय का विचार न करते हुए) रक्षाबंधन मना लेते हैं, जो कि किसी भी रूप में शास्त्र सम्मत नहीं है। 

उल्लेखनीय है, केवल अति आवश्यक परिस्थितियों में भद्रा मुख काल को छोड़कर, भद्रा पुच्छ काल में रक्षाबंधन आदि शुभ कार्य करने की आज्ञा धर्मशास्त्रों में दी गई है। भविष्य पुराण के अनुसार भद्रा पुच्छ काल में किए गए कृत्य में सिद्धि और विजय प्राप्त होती है, जबकि भद्रा मुख में कार्य का नाश होता है। इस संदर्भ में भविष्य पुराण का यह श्लोक अक्सर विद्वानों के मुख से कहते सुना जाता है- ‘पुच्छे जयावहाः मुखे कार्य विनाशाय’
 
भद्रा व रक्षाबन्धन को लेकर... 
मुहूर्त एवं ज्योतिष के संहिता ग्रंथों में जो भद्रा के मुख को अशुभ और पूंछ को शुभ लिखा गया है और भद्रा की पूंछ में रक्षाबंधन करने की आज्ञा दी गई है, वह केवल आपात स्थिति यानि भद्रा के कारण श्रवण पूर्णिमा न निकल जाए। ऐसी परिथिति में जब अन्य विकल्प उपलब्ध न हो, केवल उसी समय के लिए कहा गया है। शास्त्रों में भद्रा रहित काल में ही राखी बांधने की परंपरा है, क्योंकि प्राचीन मान्यतानुसार, भद्रा रहित काल में राखी बांधने से सौभाग्य में बढ़ोत्तरी होती है। 

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संबंधित लेख-
रक्षा बंधन पर्व का उल्लेख रामायण व महाभारत काल में भी मिलता है 
https://www.dharmnagari.com/2023/08/Raksha-Bandhan-Bhai-ke-sath-kare-Pujan-Muhurt-Bhadra-nirnay-Vishesh-upaay-special-remedy.html

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तीनों लोकों में विचरण करती है भद्रा
भद्रा तीनों लोकों में विचरण करती है, शास्त्रों के अनुसार स्वर्गलोक में निवास करने वाली भद्रा शुभफलदायक, पाताल लोक में निवास करने वाली भद्रा धन संचय कारक एवं मृत्युलोक अर्थात् पृथ्वी पर निवास करने वाली भद्रा समस्त कार्यों की विनाशक होती है। 
स्वर्गेभद्रा शुभम्कुरयात, पाताले च धनागमन, 
मृत्यु लोके   यदा  भद्रा सर्व  कार्ये विनाशनी।

रक्षाबंधन पर भद्रा का समय
रक्षाबंधन के दिन (सोमवार, 19 अगस्त 2024) सुबह 5:32 बजे भद्राकाल आरंभ हो जाएगा और दोपहर 1:31 बजे तक भद्रा रहेगी। परन्तु,  इस दिन सुबह से भद्रा होने पर भी भद्रा अशुभ फल नहीं देंगी। ऐसा इसलिए, कि भद्रा का वास अलग-अलग लोकों में होने पर वह अलग-अलग प्रभाव डालती है। यहां विशेष उल्लेखनीय है, हिंदू पंचांग के पांच प्रमुख अंग होते हैं- तिथि, फिर नक्षत्र, वार, योग और करण। इसमें भी करण को तिथि का आधा भाग माना जाता है। करण कुल 11 होते हैं। इसमें से 7 स्थिर चर होते हैं और 4 करण स्थिर होते हैं। 7वें करण का नाम ही वष्टि या भद्रा है।

भद्रा का विचार इन 4 स्थिति पर होता हैं-
- पहला स्वर्ग या पाताल में भद्रा का वास
- प्रतिकूल काल वाली भद्रा हो
- दिनार्द्ध के अंतर वाली भद्रा
- भद्रा का पुच्छ काल

भद्रा के शुभ अशुभ परिणाम का पता लगाने के लिए इन सभी का विचार किया जाता है। भद्रा का वास कब कहां होगा इसका पता चंद्रमा के गोचर से चलता है। जब भद्राकाल के दौरान चंद्रमा मेष, वृषभ, मिथुन और वृश्चिक राशि में होते हैं तो उस समय भद्रा का वास स्वर्ग में माना जाता है। वहीं, जिस समय चंद्रमा कन्या, तुला, धनु और मकर राशियों में हो तो भद्रा पाताल में वास करती है। जिस समय चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि में होते हैं तो उस समय भद्रा का वास मृत्यु लोक यानी धरती पर होता है। भद्रा जिस लोक में होती है वहां पर ही अशुभ परिणाम देती हैं। धरती पर भद्रा का होने दोषकारक माना गया है। जबकि भद्रा के स्वर्ग और पाताल में होने पर यह शुभ रहती है। इसलिए भद्राकाल का समय जब भी चंद्रमा मेष, वृष, मिथुन, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु और मकर राशि में हो तो भद्रा स्वर्ग या पाताल में वासी करेगी और ऐसे होना मांगलिक कार्यों के लिए शुभ है। साथ ही भद्रा पुच्छ में भी शुभ कार्य किए जा सकते हैं। जो अलग-अलग तिथियों में अलग तरह से निर्धारित किए जाते हैं।

ऐसे भाई की कलाई में बांधें राखी
रक्षाबंधन को सुबह उठकर स्नान करें और शुद्ध कपड़े पहनने के पश्चात घर को साफ करें। चावल के आटे का चौक पूरकर मिट्टी के छोटे से घड़े की स्थापना करें। भद्रा रहित काल दोपहर में राखी बचने से पहले चावल, कच्चे सूत का कपड़ा, सरसों, रोली को एकसाथ मिलाएं। पूजा की थाली तैयार कर दीप जलाएं। थाली में मिठाई रखें। अब पूजा की थाली सबसे पहले भगवान को समर्पित करें।

इसके बाद भाई को पीढ़े पर बिठाएं। अगर पीढ़ा आम की लकड़ी का बना हो तो सर्वश्रेष्ठ है। रक्षा सूत्र बांधते समय भाई को पूर्व दिशा की ओर बिठाएं। अर्थात भाई को तिलक लगाते समय बहन का मुंह पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए। इसके बाद भाई के माथ पर टीका लगाकर दाहिने हाथ पर रक्षा सूत्र बांधें। राखी बांधने के बाद भाई की आरती उतारें फिर उसको मिठाई खिलाएं। अगर बहन बड़ी हो, तो छोटे भाई को आशीर्वाद दें और छोटी हो तो बड़े भाई को प्रणाम करें। रक्षासूत्र बांधने के समय भाई और बहन का सर खुला नहीं होना चाहिए। 

राखी बांधते समय ये मंत्र पढ़ें-
येन बद्धो बलि: राजा दानवेंद्रो महाबल:,
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।
(मंत्र का अर्थ है- जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं। हे रक्षे (राखी) ! तुम अडिग रहना। अपने रक्षा के संकल्प से कभी भी विचलित मत होना। 

रक्षाबंधन पर्व का धार्मिक महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा बलि को वचन देकर जब विष्णु पाताल जा पहुंचे तो श्रावण माह की पूर्णिमा को ही लक्ष्मी ने रक्षा सूत्र बांधकर विष्णु को मांगा था। एक अन्य कथानुसार राजसूय यज्ञ के समय भगवान कृष्ण को द्रौपदी ने रक्षा सूत्र के रूप में अपने आंचल का टुकड़ा बांधा था। इसके पश्चात से बहनों द्वारा भाई को राखी बांधने की परंपरा आरंभ हो गई। रक्षाबंधन के दिन ब्राह्मणों द्वारा भी अपने यजमानों को राखी बांधकर उनकी मंगलकामना की जाती है। इस दिन विद्या आरंभ करना भी शुभ माना जाता है।

इनसे करें भाई को तिलक
हल्दी का का तिलक
पूजा के समय या शुभ कार्यों में हल्दी का तिलक लगाते हुए आपने देखा होगा
 हल्दी को शुभता, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है ऐसे में अपने भाई के माथे पर जब आप हल्दी का तिलक लगाती हैं, तो जीवन में सुख-समृद्धि आती है हल्दी को स्वास्थ्यवर्धक भी माना जाता है
केसर का तिलक
केसर का उपयोग अनेक शुभ कार्यों में होता है। केसर को सम्मान और शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। रक्षाबंधन को आप अपने भाई को केसर तिलक करें। इससे घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है
। केसर को गुरु ग्रह से जोड़कर भी देखा जाता है, इसलिए जब आप केसर से तिलक करती हैं तो भाई पर गुरु ग्रह की कृपा बनी रहती है
कुमकुम का तिलक 
कुमकुम को विजय का प्रतीक भी माना जाता है अतः जब आप इससे अपने भाई का तिलक लगाकर उसके जीवन में विजय की कामना करती हैं, तो उसका प्रभाव होता है। उसके जीवन में प्रगति मार्ग प्रशस्त होते है। कुमकुम आदि शक्ति माता को भी प्रिय है। कुमकुम का तिलक लगाकर मातारानी से अपने भाई के जीवन में उन्नति की प्रार्थना कर सकती हैं। 

राशि के अनुसार बांधे राखी
जब भद्रा समाप्त हो जाए, उसके पश्चात राखी बांधनी चाहिए। विधि-विधानपूर्वक, पहले राखी सहित पूजा की थाली भगवान को चढ़ाने के साथ अपने कुलदेवी या कुलदेवता (जो भी आपके कुल या परिवार के हों) उनका स्मरण करते हुए, भाई के शुभ-मंगल एवं जीवम में सुख-समृद्धि की कामना करते हुए रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाइयों को राशियों के अनुसार बांधती हैं, तो इसका भाई-बहन के भाग्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा-

मेष व वृश्चिक
यदि आपके भाई की राशि मेष या वृश्चिक है, तो आप इस रक्षाबंधन उनको लाल रंग की राखी बांधें।  लाल रंग मेष और वृश्चिक के लिए शुभ होता है, क्योंकि इनका स्वामी ग्रह मंगल है। लाल के अतिरिक्त आप मैरून रंग की राखी भी बांध सकती हैं। मेष राशि का स्वामी मंगल होने से प्रायः इस राशि के जातक ऊर्जावान एवं साहसी होते हैं। जबकि वृश्चिक राशि का नेतृत्व भी मंगल करते हैं, वृश्चिक राशि के अधिकांश जातक प्रायः भावुक और रहस्यमयी होते हैं। 

वृषभ व तुला
इन दोनों राशियों के स्वामी ग्रह शुक्र है। इसलिए इनके लिए सफेद और गुलाबी रंग शुभ माना जाता है। रक्षाबंधन को अपने भाई को सफेद और गुलाबी रंग की राखी बांधने इससे उनके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आ सकती है। वृषभ राशि के अधिकांश जातक स्थिर और भौतिक सुखों के शौकीन होते हैं। जबकि तुला राशि के अधिकांश जातक प्रायः सुंदरता और सामंजस्य को अधिक प्रेमी होते हैं। 

मिथुन व कन्या
अगर आपके भाई की राशि मिथुन या कन्या है, तो उनके लिए हरे रंग की राखी अत्यंत शुभ हो सकती है, क्योंकि इन दोनों ही राशियों का स्वामी ग्रह बुध है, जिनका शुभ रंग हरा है। मिथुन राशि वालों को हरे रंग और कन्या राशि वालों को हरे या हल्के पीले रंग की राखी बांध सकती हैं। राशि के स्वामी बुध होने से देखा गया है, कि मिथुन राशि जातक के अधिकांशतः बुद्धिमान एवं जिज्ञासु प्रवृत्ति वाले होते हैं। वहीं, कन्या राशि के जातक कुशल होने के साथ व्यवहारिक होते हैं।

कर्क
कर्क राशि का स्वामी ग्रह चंद्रमा है, अतः शुभ रंग सफेद है। इस राशि के जातकों के लिए सफेद या चांदी के रंग वाली राखियां शुभ साबित होंगी। आप चाहें तो भाई को चांदी की बनी राखी भी बांध सकती हैं। राशि का स्वामी ग्रह चंद्रमा होने से जातक भावुक और संवेदनशील होते हैं। 

सिंह
इस राशि का स्वामी ग्रह सूर्य है, जिसका शुभ रंग लाल, सुनहरा और नारंगी होता है। रक्षाबंधन पर अपने भाई को सुनहरे, लाल और नारंगी में से कोई भी एक रंग की राखी बांध सकती हैं। यह आपके भाई के भविष्य / करियर में उन्नति में सहायक हो सकता है। सिंह राशि के जातक प्रायः आत्मविश्वासी और नेतृत्व करने की क्षमता वाले होते हैं।  

धनु व मीन
धनु और मीन दोनों ही राशियों का स्वामी ग्रह गुरु है। चूँकि गुरु के लिए शुभ रंग पीला है, इसलिए अगर आपके भाई की राशि धनु या मीन है, तो रक्षाबंधन पर भाई को पीले रंग की राखी बांधते हुए उसके सुख-समृद्धि एवं सौभाग्य में बढ़ोत्तरी की कामना करें। धनु राशि के जातक अधिकांशतः आशावादी और जिज्ञासु होते हैं, क्योंकि राशि के स्वामी गुरु या बृहस्पति होते हैं। वहीं, मीन राशि के जातक अधिकांशतः भावुक होने के साथ-साथ कलात्मक भी होते हैं।  

मकर व कुंभ
मकर और कुंभ राशियां न्याय के देवता शनि देव से जुड़ी हैं।  दोनों के स्वामी ग्रह शनि हैं। अतः इनका शुभ रंग नीला, भूरा और काला माना जाता है। चूँकि काला रंग वर्जित है, इसलिए आप अपने भाई को नीले या भूरे रंग की राखी बांध सकती हैं। मकर राशि वाले जातक प्रायः महत्वाकांक्षी और परिश्रमी होते हैं। जबकि, कुंभ राशि वाले जातक अधिकांशतः अनोखे या अलग स्वाभाव वाले एवं प्रायः स्वतंत्र होते हैं।  

रक्षाबंधन को करें विशेष उपाय 
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, प्रतिवर्ष सावन की पूर्णिमा तिथि को रक्षाबंधन का पर्व धन-धान्य की देवी माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने का भी एक स्वर्णिम अवसर है। इसलिए रक्षाबंधन पर कुछ विशेष उपाय करने के प्रभाव से आपकी आर्थिक स्थिति को प्रबल हो सकती हैं। रक्षाबंधन पर्व आर्थिक समृद्धि के लिए भी शुभ माना जाता है। इस दिन दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है, गरीबों को भोजन कराने से मिलने वाले पुण्य से आपके सौभाग्य में वृद्धि होती है। इस दिन आप सकारात्मक विचार ही रखें और अपने भविष्य के लिए अच्छे लक्ष्य निर्धारित करें। रक्षाबंधन के दिन श्रद्धा-विश्वासपूर्वक इन अचूक उपाय को कर आप भी माता लक्ष्मी की कृपा से आर्थिक उन्नति प्राप्त कर सकते हैं या चल रही समस्याओं को कम कर सकते हैं- 

खीर का भोग- रक्षाबंधन को मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु को खीर का भोग लगाएं। मान्यता है, इससे मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, जिससे आर्थिक संकट दूर होते हैं।
 
मंदिर में दीपक जलाएं- रक्षाबंधन की सुबह और शाम को घर के मंदिर में घी का दीपक जलाएं और मां लक्ष्मी का स्मरण करें। ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं, घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है।
 
चांदी का सिक्का- भाई अपनी बहन के हाथ से गुलाबी रंग के कपड़े में अक्षत, सुपारी और एक चांदी का सिक्का लेकर उसकी गांठ लगा लें और इस पोटली को तिजोरी में रखें, ऐसा करने से धन में वृद्धि होती है।

कुलदेवी-कुलदेवता की पूजा- इस दिन विशेषकर अपने इष्ट देव की पूजा करने से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं।
 
नारियल का दान- रक्षाबंधन को एक नारियल को लाल मिट्टी के घड़े में रखकर बहते हुए पानी में प्रवाहित करें। इससे धन संबंधी समस्याएं कम होने में सहायता मिलती है।
 
सूर्य को जल अर्पित करें- सुबह उठकर सूर्य देव को जल अर्पित करें। इससे भाग्य मजबूत होता है और आर्थिक संकट दूर होते हैं।

रक्षाबंधन को सावन का आखिरी सोमवारी व्रत
इस बार सावन में 4 नहीं, पांच सोमवार पड़ने के कारण रक्षाबंधन 19 अगस्त को सावन का आखिरी सोमवार है। ऐसे में कुछ लोगों के मन में प्रश्न होगा- क्या रक्षाबंधन के दिन भी सोमवार का व्रत रखना होगा या नहीं ! सावन के महीने में सभी शिवभक्त शिवजी की आराधना करते हैं। कुंवारी कन्याएं और महिलाएं समेत अपने सुहाग के लिए सावन के सोमवार के व्रत करती हैं। इस साल सोमवार 22 जुलाई को सावन का माह आरम्भ और सावन का अंतिम सोमवार 19 अगस्त को पड़ेगा।  


श्रावण (सावन) मास की समाप्ति सावन पूर्णिमा के दिन होती है। इस दिन (श्रावण पूर्णिमा) रक्षाबंधन, संस्कृत दिवस, नारली पूर्णिमा और गायत्री जयंती का पर्व भी पड़ेगा। इस बार ये दुर्लभ संयोग बन रहा है कि सावन का महीने का समापन भी सोमवार के दिन हो रहा है। जो लोग सावन सोमवारी व्रत या 16 सोमवार का व्रत रख रहे हैं, उन्हें रक्षाबंधन के दिन भी सोमवार का व्रत रखना होगा। अगर आप रक्षाबंधन के दिन पड़ने वाले सोमवार का व्रत नहीं करते हैं, तो सावन के सोमवार का व्रत रखने का संकल्प जो अपने लिया था, वह अधूरा रह जाएगा। इसके अलावा श्रावण मास के आखिरी दिन व्रत रखने के बाद व्रत का उद्यापन जरूर करें, तभी आपको व्रत का संपूर्ण फल मिल पाएगा। 

उल्लेखनीय है, सावन के सोमवार का व्रत का संबंध भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ा है।  पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस महीने में माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए कठोर व्रत किया था। तप के फलस्वरूप ही इस माह में माता पार्वती और शिवजी का मिलन हुआ। सावन का महीना भगवान शिव का अत्यंत प्रिय है। इस पूरे महीने सभी भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं। धार्मिक मान्यतानुसार, सावन में भगवान शिव अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। 

सोमवार व्रत में इनका रखें ध्यान 
पूजा के समय, शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव को तुलसी दल, हल्दी और केतकी का फूल अर्पित करना निषेध माना गया है। इसके अलावा सावन व्रत में गेंहू, मैदा, आटा, बेसन, सत्तू जैसे अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए। वहीं, सावन के महीने में बैंगन, प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा, सादा नमक के सेवन को भी वर्जित माना गया है। सावन के व्रत में कुंवारी कन्याएं मौसमी फलों, कुट्टू के आटे, साबूदाना, दूध, दही, पनीर, सेंधा नमक आदि का सेवन कर सकती हैं। मान्यता है, सोमवार के व्रत में 108 बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप बहुत फलदायी होता है।

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रक्षाबंधन की फर्जी कहानी और चित्तौड़ का वो जौहर
बहादुर शाह ने पत्र लिख कर हुमायूँ को बताया था कि वो 'काफिरों' को मार रहा है। बदले में हुमायूँ ने भी लिखा- उसके दिल का दर्द ये  सोच कर खून में बदल गया है, कि एक होने के बावजूद हम दो हैं। ये दोनों आपस में पत्राचार कर रहे थे और उधर महारानी कर्णावती को जौहर करना पड़ा।

बचपन से हम पढ़ते आ रहे हैं- युद्ध की विपत्ति के दौरान मेवाड़ की रानी कर्णावती ने मुग़ल शासक हुमायूँ को पत्र और राखी भेजी थी, जिसके बाद वो तुरंत उनकी मदद के लिए निकल पड़ा था। मुगलों को महान बनाने के लिए हर तरह तिकड़मों का जाल बुना गया, भारत का फर्जी इतिहास भी लिखा गया, यह उसमे एक है। उस समय के इतिहास में ऐसी किसी घटना का उल्लेख नहीं मिलता। ठीक ऐसी प्रकार शक्तिपीठ ज्वाला देवी में अकबर द्वारा छत्र चढ़ाने की झूठी और फर्जी कखानी लिखी गई, जिसका भी उल्लेख नहीं मिलता। परन्तु, उस फर्जी कहानी पर फिल्म बनने के बाद भारतीय,  विशेषकर सनातनी भ्रमित हुए।  

अब सर्वप्रथम बात करते हैं, प्रचलित कहानी क्या है और कहाँ से आई ? कहानी कुछ यूँ है- गुजरात पर शासन कर रहे कुतुबुद्दीन बहादुर शाह ने मेवाड़ पर आक्रमण किया। इसी दौरान महारानी कर्णावती ने मुग़ल शासक हुमायूँ को पत्र भेजा। साथ में उन्होंने एक राखी भी भेजी और मदद के लिए गुहार लगाई। इसके बाद हुमायूँ तुरंत उनकी मदद के लिए निकल पड़ा था। इस घटना को फर्जी तरह रक्षाबंधन से भी जोड़ दिया गया।

प्रश्न उठता है, फिर ये कहानी आई कहाँ से ? असल में, 19वीं शताब्दी में मेवाड़ की अदालत में कर्नल जेम्स टॉड नाम का एक अंग्रेज था। उसने ‘Annals and Antiquities of Rajast’han’ नाम की एक पुस्तक लिखी थी। इसी पुस्तक में इस कहानी का उल्लेख था। ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ के जेम्स टॉड ने ही सन् 1535 की इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा था- कि राखी पाकर हुमायूँ तुरंत मदद के लिए निकल पड़ा था। टॉड लिखता है- जब बहुत ज्यादा ज़रूरत हो या फिर खतरा हो, तभी राखी भेजी जाती थी। इसके बाद राखी प्राप्त करने वाला ‘राखीबंद भाई’ बन जाता था। उन्होंने लिखा- “अपनी उस बहन के लिए वो राखीबंद भाई अपने जीवन को भी खतरे में डाल सकता है। बदले में उसकी अपनी ‘बहन’ की मुस्कराहट मिल सकती है, जिसकी उसने रक्षा की हो।” 

टॉड ने आगे लिखा- ब्रेसलेट पाकर हुमायूँ काफी खुश हुआ था। टॉड ने (मनगढ़ंत कहानी बनाते हुए) लिखा- हुमायूँ ने खुद को एक ‘सच्चा शूरवीर’ साबित किया और पश्चिम बंगाल में अपने आक्रमण को छोड़ कर चित्तौर को बचाने के लिए निकल पड़ा, राणा सांगा की विधवा और बच्चों की रक्षा के लिए निकल पड़ा। जबकि वास्तविकता ये थी, कि हुमायूँ के पहुँचने से पहले ही चित्तौर पर बहादुर शाह का कब्ज़ा हो चुका था और रानी ने कई महिलाओं समेत जौहर कर लिया था। फिर भी टॉड लिखलिखता है- "...इसके बावजूद आक्रांता को भगा कर हुमायूँ ने वादा पूरा किया।" 

टॉड की इस झूठी कहानी को इतिहास की दृष्टिकोण से समझिए- महारानी कर्णावती, राणा सांगा की पत्नी थीं। महाराणा संग्राम सिंह "राणा सांगा" ने राजपूतों को एकजुट कर मुग़ल शासक बाबर के खिलाफ एक मोर्चा बनाया और सन् 1527 में खानवा (राजस्थान के भरतपुर में) के युद्ध में बाबर से भिड़े। परन्तु, बाबर की तोपों, फौज में जिहाद की भूख भरना और युद्ध में नई तकनीकों का इस्तेमाल मुगलों के काम आया। राणा सांगा बुरी तरह घायल हो गए और कुछ दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई। 

राणा सांगा की मृत्यु के बाद बड़े बेटे विक्रमादित्य को सिंहासन पर बिठा कर महारानी कर्णावती ने शासन शुरू किया। उनका एक छोटा बेटा भी था, जिसका नाम था- राणा उदय सिंह। वही राणा उदय सिंह, जिन्होंने 30 वर्ष से भी अधिक समय तक मेवाड़ पर राज किया और उदयपुर शहर की स्थापना की। उनके ही बेटे महाराणा प्रताप थे, जिन्होंने अकबर की नाक में दम किया था।

दूसरी ओर बाबर की मौत के बाद 1530 में हुमायूँ गद्दी पर बैठा। उस समय गुजरात पर वहाँ की सल्तनत के बहादुर शाह का राज था। बहादुर शाह ने अपने राज्य के विस्तार के लिए कई युद्ध लड़े। हुमायूँ के आक्रमण के बाद ही उसके राज़ का अंत हुआ था। बाद में समुद्र में पुर्तगालियों के साथ एक बैठक के दौरान बात बिगड़ गई और वो मारा गया। ये वही बहादुर शाह था, जो कभी अपने अब्बा शमशुद्दीन मुजफ्फर शाह II और भाई सिकंदर शाह के डर से चित्तौर में छिपा था। बाद में बहादुर शाह ने मालवा को जीता और फिर उसने चित्तौर पर ही धावा बोल दिया। ये तो था इन किरदारों का परिचय। 

इतिहासकार सतीश चंद्रा अपनी पुस्तक ‘History Of Medieval India‘ में लिखते हैं- किसी भी तत्कालीन लेखक ने कर्णावती द्वारा हुमायूँ को राखी भेजने की घटना का जिक्र नहीं किया है और ये झूठ हो सकती है। तो फिर सच्चाई क्या थी? असल में हुआ क्या था, जो हमसे छिपाया गया ?

पुस्तक ‘The History of India for Children (Vol. 2): FROM THE MUGHALS TO THE PRESENT’ में अर्चना गरोदिया गुप्ता और और श्रुति गरोदिया लिखती हैं- हुमायूँ तो चित्तौड़ पर सुल्तान बहादुर शाह के कब्जे के कुछ महीनों बाद चित्तौर पहुँचा था। वो तो इंतजार कर रहा था, कि कब मेवाड़ का साम्राज्य ध्वस्त हो। इस दौरान बहादुर शाह भी खुलेआम चित्तौड़ में मारकाट और लूटपाट मचाता रहा। उसके मंत्रियों ने उसे कह रखा था, कि वो एक काफिर से लड़ रहा है, इसीलिए मुस्लिम होने के नाते हुमायूँ उसे नुकसान नहीं पहुँचाएगा। लेकिन, हुमायूँ ने चित्तौड़ के उसके कब्जे में जाने का इंतजार किया और फिर हमला बोला। शुरू में तो उसकी हार हो रही थी, लेकिन अंत में किसी तरह उसने गुजरात और मालवा पर कब्ज़ा जमा लिया। 

इस तरह बहादुर शाह के सल्तनत का अंत हो गया। बहादुर शाह की सेना भी विशाल थी और उसके पास बड़े संसाधन थे। चित्तौड़ हमले के दौरान हुमायूँ और बहादुर शाह के बीच पत्राचार भी हुआ था, जिसका उल्लेख इतिहासकर एसके बनर्जी ने अपनी पुस्तक ‘हुमायूँ बादशाह‘ में किया है। बहादुर शाह ने पत्र लिख कर हुमायूँ को बताया था, कि वो ‘काफिरों’ को मार रहा है। बदले में हुमायूँ ने भी लिखा था, कि उसके दिल का दर्द ये सोच कर खून में बदल गया है कि एक होने के बावजूद हम दो हैं। और इस कहानी को एक हिन्दू त्यौहार से जोड़ कर रक्षाबंधन को बर्बाद करने की कोशिश की गई।

रानी कर्णावती का क्या हुआ ? चित्तौड़ में जो तीन जौहर हुए, उनमें से एक ये भी था। जहाँ पुरुषों को केसरिया वस्त्र पहन कर युद्ध के लिए निकलना पड़ा, अंदर किले में रानियों ने अन्य महिलाओं के साथ जौहर किया। 8 मार्च, 1934 को इन महिलाओं ने इस्लामी शासकों के हाथों में जाने के बदले मृत्यु का वरन किया। राजकुमारों को एक सुरक्षित जगह पर रखा गया था, इसीलिए वो बच गए। इस्लामी फ़ौज ने कई बच्चों की भी हत्या की थी।

कर्णावती के राखी भेजने पर हुमायूँ द्वारा मदद करने की खबर उतनी ही फर्जी है, जितनी जोधा-अकबर की। आज तक कई फ़िल्में और सीरियल बन चुके, लेकिन किसी ने भी जोधा-अकबर की प्रमाणिकता के विश्व में रिसर्च करने की कोशिश नहीं की। जेम्स टॉड ने ही जोधा के नाम का भी जिक्र किया था। उससे पहले कहीं नहीं लिखा है, कि अकबर की किसी पत्नी का नाम जोधा था। ये भी एक बनावटी कहानी भर है।

रक्षाबंधन से व्यवहारिक शिक्षा
रक्षाबंधन भाइयों को अपनी बहनों की सुरक्षा व संरक्षण का दायित्व और जिम्मेदारी लेने को प्रेरित करता है। यह पर्व दायित्व और जिम्मेदारी के महत्व के बारे में सिखाता है।
- रक्षाबंधन भाई-बहन के प्यार और स्नेह का प्रतीक है। यह पर्व हमें भाई-बहन के प्यार की महत्ता के बारे में सिखाता है।
- रक्षाबंधन में बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और भाइयों को सुरक्षा और संरक्षण का वचन देती हैं। अर्थात यह पर्व सुरक्षा और संरक्षण के महत्व के बारे में सिखाता है।
- रक्षाबंधन हमारी परंपरा और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हम सबको अपनी परंपरा और संस्कृति के बारे में सिखाता है।

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