#Social_Media : कैसा भाई ? भाई या इज्जत का... ! #rakshabandhan2024 से जुडी इतिहास की फर्जी कहानी...


ये कहानी नहीं, सच्चाई है बदलते सामाजिक आज परिवेश की...
जब पढ़ा तो आंखों से आंसू नहीं रुक रहे थे…
धर्म नगरी / DN News 
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ये कोई कहानी नही बल्कि आँखों देखी सच्ची घटना है..!
मेरी छोटी बुआ….!!!!
रक्षाबंधन का त्यौहार पास आते ही मुझे सबसे ज्यादा जमशेदपुर (झारखण्ड) वाली बुआ जी की राखी के कूरियर की प्रतीक्षा रहती थी।  कितना बड़ा पार्सल भेजती थी बुआ जी। तरह-तरह के विदेशी ब्रांड वाले चॉकलेट,गेम्स, मेरे लिए कलर फूल ड्रेस , मम्मी के लिए साड़ी, पापाजी के लिए कोई ब्रांडेड शर्ट.
इस बार भी बहुत सारा सामान भेजा था उन्होंने। 

पटना और रामगढ़ वाली दोनों बुआ जी ने भी रंग बिरंगी राखीयों के साथ बहुत सारे गिफ्टस भेजे थे। 
बस रोहतास वाली जया बुआ की राखी हर साल की तरह एक साधारण से लिफाफे में आयी थी। पांच राखियाँ, कागज के टुकड़े में लपेटे हुए रोली चावल और पचास का एक नोट। 

मम्मी ने चारों बुआ जी के पैकेट डायनिंग टेबल पर रख दिए थे ताकि पापा ऑफिस से लौटकर एक नजर अपनी बहनों की भेजी राखियां और उपहार देख लें... पापा रोज की तरह आते ही टी टेबल पर लंच बॉक्स का थैला और लैपटॉप की बैग रखकर सोफ़े पर पसर गए थे। 

"चारो दीदी की राखियाँ आ गयी है...
मम्मी ने पापा के लिए किचन में चाय चढ़ाते हुए आवाज लगायी थी...
"जया का लिफाफा दिखाना जरा...
पापा जया बुआ की राखी का सबसे अधिक प्रतीक्षा करते थे और सबसे पहले उन्हीं की भेजी राखी कलाई में बांधते थे। जया बुआ सारे भाई बहनो में सबसे छोटी थी, पर एक वही थीं, जिन्होंने विवाह के बाद से शायद कभी सुख नहीं देखा था। विवाह के तुरंत बाद देवर ने सारा व्यापार हड़प कर घर से बेदखल कर दिया था। 

तब से फ़ूफा जी की मानसिक हालत बहुत अच्छी नहीं थी। मामूली सी नौकरी कर थोड़ा बहुत कमाते थे। बहुत कठिनाइयों से बुआ घर चलाती थी। इकलौते बेटे श्याम को भी मोहल्ले के साधारण से स्कूल में डाल रखा था। बस एक उम्मीद सी लेकर बुआ जी किसी तरह जिये जा रहीं थीं...

जया बुआ के भेजे लिफ़ाफ़े को देखकर पापा कुछ सोचने लगे थे...

"गायत्री इस बार रक्षाबंधन के दिन हम सब सुबह वाली पैसेंजर ट्रेन से जया के घर रोहतास (बिहार) उसे बगैर बताए जाएंगे...
"जया दीदी के घर..!!
मम्मी तो पापा की बात पर एकदम से चौंक गयी थी ! 
"आपको पता है न कि उनके घर मे कितनी तंगी है...!
हम तीन लोगों का नास्ता-खाना भी जया दीदी के लिए कितना भारी हो जाएगा ? वो कैसे सबकुछ मैनेज कर पाएगी ? पर पापा की चुप्पी बता रहीं थी, कि उन्होंने जया बुआ के घर जाने का मन बना लिया है और घर मे ये सब को पता था, कि पापा के निश्चय को बदलना बहुत मुश्किल होता है...

रक्षाबंधन के दिन सुबह वाली धनबाद-टू-डेहरी ऑन सोन पैसेंजर से हम सब रोहतास पहुँच गए। 
बुआ घर के बाहर बने बरामदे में लगी नल के नीचे कपड़े धो रहीं थीं। बुआ उम्र में सबसे छोटी थी, पर तंगहाली और रोज की चिंता ने उसे सबसे उम्रदराज बना दिया था....

एकदम पतली दुबली कमजोर सी काया। इतनी कम उम्र में चेहरे की त्वचा पर सिलवटें साफ़ दिख रहीं थीं... बुआ की शादी का फोटो एल्बम मैंने कई बार देखा था। शादी में बुआ की खूबसूरती का कोई ज़वाब नहीं था। शादी के बाद के ग्यारह वर्षो की परेशानियों ने बुआ जी को कितना बदल दिया था। 

बेहद पुरानी घिसी सी साड़ी में बुआ को दूर से ही पापा मम्मी कुछ क्षण देखे जा रहे थे...
पापा की आंखे डब-डबा सी गयी थी...

हम सब पर नजर पड़ते ही बुआ जी एकदम चौंक गयी। उन्हें समझ नहीं आ रहा था, कि वो कैसे और क्या प्रतिक्रिया दे ! अपने बिखरे बालों को सम्भाले या अस्त-व्यस्त पड़े घर को दुरुस्त करे। उसके घर तो वर्षों से कोई मेहमान नहीं आया था। वो तो जैसे जमाने पहले भूल चुकी थी, कि मेहमानों को घर के अंदर आने को कैसे कहा जाता है!

बुआ जी के बारे मे सब बताते है, कि बचपन से उन्हें साफ-सफ़ाई और सजने सँवरने का बेहद शौक रहा था.... पर आज दिख रहा था, कि अभाव और चिंता कैसे व्यक्ति को अंदर से दीमक की तरह खा जाती है। अक्सर बुआ जी को छोटी मोटी जरुरतों के लिए कभी किसी के सामने, तो कभी किसी के सामने हाथ फैलाना होता था। हालात ये हो गए थे, कि ज्यादातर रिश्तेदार उनका फोन उठाना बंद कर चुके थे। 

एक बस पापा ही थे, जो अपनी सीमित सेलरी होने के बावजूद कुछ न कुछ बुआ को दिया करते थे...
पापा ने आगे बढ़कर सहम सी गयी अपनी बहन को गले से लगा लिया था...

"भैया भाभी मन्नू तुम सब अचानक आज ? सब ठीक है न...? बुआ ने कांपती सी आवाज में पूछा था...
"आज वर्षों बाद मन हुआ राखी में तुम्हारे घर आने का..
तो बस आ गए हम सब...
पापा ने बुआ को सहज करते हुए कहा था...
"भाभी आओ न अंदर... मैं चाय नास्ता लेकर आती हूं...
अपने भैया के पास बैठी थीं भाभी...  जया बुआ ने मम्मी के हाथों को अपनी ठण्डी हथेलियों में लेते हुए कहा था। 
"जया तुम बस बैठो मेरे पास। चाय नास्ता गायत्री देख लेगी।"
हम लोग बुआ जी के घर जाते समय रास्ते मे रुक कर बहुत सारी मिठाइयाँ और नमकीन ले गए थे...
मम्मी किचन में जाकर सबके लिए प्लेट लगाने लगी थी... उधर बुआ कमरे में पुरानी फटी चादर बिछे खटिया पर अपने भैया के पास बैठी थीं... बुआ जी का बेटा श्याम दौड़ कर फूफा जी को बुला लाया था.

राखी बांधने का मुहूर्त शाम सात बजे तक का था। मम्मी अपनी ननद को लेकर मॉल चली गयी थी सबके लिए नए ड्रेसेस खरीदने और बुआ जी के घर के लिए किराने का सामान लेने के लिए...

शाम होते होते पूरे घर का हुलिया बदल गया था। नए पर्दे, बिस्तर पर नई चादर, रंग बिरंगे डोर मेट, और सारा परिवार नए ड्रेसेस पहनकर जंच रहा था। न जाने कितने सालों बाद आज जया बुआ की रसोई का भंडार घर लबालब भरा हुआ था....

धीरे-धीरे एक आत्मविश्वास सा लौटता दिख रहा था बुआ के चेहरे पर... पर सच तो ये था कि उसे अभी भी सब कुछ स्वप्न सा लग रहा था। बुआ जी ने थाली में राखियाँ सज़ा ली। मिठाई का डब्बा रख लिया। 
जैसे ही पापा को तिलक करने लगी, पापा ने बुआ को रुकने को कहा।  सभी आश्चर्यचकित थे...

"दस मिनट रुक जाओ तुम्हारी दूसरी बहनें भी बस पहुँचने वाली है।" पापा ने मुस्कुराते हुए कहा तो सभी पापा को देखते रह गए... तभी बाहर दरवाजे पर गाड़ियां के हॉर्न की आवाज सुनकर बुआ, मम्मी और फूफाजी दौड़ कर बाहर आए, तो तीनों बुआ का पूरा परिवार सामने था। 

जया बुआ का घर मेहमानों से खचाखच भर गया था। 
महराजगंज वाली नीलम बुआ बताने लगी, कि कुछ समय पहले उन्होंने पापा को कहा था, कि क्यों न सब मिलकर चारो धाम की यात्रा पर निकलते है। बस पापा ने उस दिन तीनों बहनों को फोन किया, कि अब चार-धाम की यात्रा का समय आ गया है..

पापा की बात पर तीनों बुआ सहमत थी।  सबने तय किया, कि इस बार जया के घर सब जमा होंगे और थोड़े-थोड़े पैसे मिलाकर उसकी सहायता करेंगे। 

जया बुआ तो बस एकटक अपनी बहनों और भाई के परिवार को देखे जा रहीं थीं... 
कितना बड़ा सरप्राइस दिया था आज सबने उसे... सारी बहनों से वो गले मिलती जा रहीं थीं...
सबने पापा को राखी बांधी।  
ऐसा रक्षाबन्धन शायद पहली बार था सबके लिए...
रात एक बड़े रेस्त्रां में हम सभी ने डिनर किया। फिर गप्पे करते जाने कब काफी रात हो चुकी थी। अभी भी जया बुआ ज्यादा बोल नहीं रहीं थीं। वो तो बस बीच-बीच में छलक आते अपने आंसू पोंछ लेती थी। बीच आंगन में ही सब चादर बिछा कर लेट गए थे। जया बुआ पापा से किसी छोटी बच्ची की तरह चिपकी हुई थी। मानो इस प्यार और दुलार का उसे वर्षों से प्रतीक्षा था उन्हें।  

बातें करते करते अचानक पापा को बुआ का शरीर एकदम ठंडा सा लगा, तो पापा घबरा गए। सारे लोग जाग गए, पर जया बुआ हमेशा के लिए सो गयी...
पापा की गोद में एक बच्ची की तरह लेटे लेटे वो विदा हो चुकी थी...
पता नही कितने दिनों से बीमार थीं... और आज तक किसी से कहा भी नही। आज सबसे मिलने का ही आशा लिये जिन्दा थीं शायद...!! 
😥😥😥😥😩
#साभार - लक्ष्मीकांत पाण्डेय जी की वॉल  
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कैसा भाई ? भाई या इज्जत का... ! 
एक महिला के भाई नहीं था रक्षाबंधन के दिन वह राखी, नारियल और मिठाई लाई।
पति बोला- तुम्हारा कोई भाई तो है नहीं फिर ये सब क्यों लाई हो..?
पत्नी बोली- मेरा कोई भाई नहीं है, इसलिए मैंने बाजू वाले सलीम भाई को अपना धर्म भाई बनाया है।

पति- बोला ठीक है पर राखी बांधने से पहले तुम सलीम से ये पूंछकर आओ, कि शादी से पहले उसकी बीवी उसकी क्या लगती थी ?

उस महिला ने सलीम से जाकर पूंछा कि तुम्हारी पत्नी रेहाना शादी से पहले तुम्हारी क्या लगती थी ?
सलीम बोला- बोला रेहाना शादी से पहले मेरे चाचा की बेटी मेरी चचेरी बहन थी।

पत्नी ने घर आकर अपने पति को बताया। 
अब पति बोला- जब उसने अपनी सगी बहन को नहीं छोड़ा, तो वह राखी बांधने से तुम्हें छोड़ देगा क्या ?

पत्नी को अब सारी बात समझ में आ गई थी...

बात-बात पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगाने वाले और हिंदू-मुसलमान (फर्जी) भाई-भाई मानने वाले ये पोस्ट या संवाद सभी सेक्युलर भाई-बहनों को समर्पित है। याद रखें, कोई भी मुसलमान हिन्दू के किसी देवी-देवता का प्रसाद नहीं लेता। यहाँ तक, किसी हिन्दू त्यौहार पर शुभकामना (मुबारकबाद) भी देना इस्लाम में मना है। इसे प्रत्येक हिन्दू समझे और सनातन धर्म प्रति वही भाव या कटटरता रखे, जैसा एक मुसलमान का छोटा बच्चा भी रखता हैं। 
कश्मीर में भी सैकड़ों हिन्दू लड़कियों एवं महिलाओं ने मुसलमानों को राखी बाँधी थी, लेकिन जनवरी 1990 में उनके साथ ही रेप किया, जिसकी शुरुवात खुलेआम मस्जिदों में लगे लाउडस्पीकर पर अनाउंसमेंट- सभी हिन्दू घात छोड़कर भाग जाओ, केवल अपनी लड़की, जवान औरतों, महिलाओं को छोड़कर, वर्ना तुम भी मौत के घात उतर दिए जाओगे। इसे लेकर जगह-जगह रातों-रात 
19-20 जनवरी नोटिस भी लगाया था। लगभग साढ़े सात लाख कश्मीरी हिन्दू आग भी अपने पुश्तैनी घर, जमीन, फलों के बाघ, सरकारी नौकरी, बिजनेस आदि से वंचित है और शररार्थी शिविरों, कैम्पों में रहने को मजबूर हैं। 1990 में कश्मीरियों की दुर्दशा पर विश्वास न हो तो सच्ची घटनाओं पर बनी "कश्मीरी फाइल" फ़िल्म देखें या बीते दिनों बांग्लादेश, ढाका में हिन्दू लड़कियों-औरतों के रेप, हिन्दू मर्दों की नृशसहं हत्या के फोटो ट्वीटर "X" या फेसबुक, यूट्यूब पर आप स्वयं देखें। 
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वैदिक ब्राह्मणों, कर्मकांडी विद्वानों की दक्षिणा नहीं, तो...
उनके द्वारा किए या करवाए गए अनुष्ठान, पूजा, जाप, कुंडली विश्लेषण आदि के लिए उनको आप ससम्मान दक्षिणा दीजिए,  पारिश्रमिक या फीस समझिए, क्योंकि पंडितजी भी 6-8 साल से लेकर 12-15 साल तक कर्मकाण्ड, ज्योतिष आदि के अध्ययन (study) या सीखने में लगाते हैं, जिस प्रकार डॉक्टर, वकील, आर्किटेक्ट आदि डाक्टरी / वकालत / इंजीनियरिंग सीखने में अनेक साल लगाते है, फिर उसके योग्य बनते हैं - @DharmNagari #Dharm_Nagari_     

देखें- प्रायः कम आयु से ही कर्मकांड, ज्योतिष, व्याकरण आदि की शिक्षा प्राप्त करने हेतु विद्याध्ययन करने लगते हैं... 
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रक्षाबंधन की फर्जी कहानी-
कर्णावती ने कोई राखी नहीं भेजी थे हुमायूँ को
ये फर्जी हमारे देश के झूठे इतिहास का  है, केवल हिन्दुओं को मूर्ख बनाने के लिए 
रक्षाबंधन की फर्जी कहानी और चित्तौड़ का वो जौहर
बहादुर शाह ने पत्र लिख कर हुमायूँ को बताया था कि वो 'काफिरों' को मार रहा है। बदले में हुमायूँ ने भी लिखा- उसके दिल का दर्द ये  सोच कर खून में बदल गया है, कि एक होने के बावजूद हम दो हैं। ये दोनों आपस में पत्राचार कर रहे थे और उधर महारानी कर्णावती को जौहर करना पड़ा।

बचपन से हम पढ़ते आ रहे हैं- युद्ध की विपत्ति के दौरान मेवाड़ की रानी कर्णावती ने मुग़ल शासक हुमायूँ को पत्र और राखी भेजी थी, जिसके बाद वो तुरंत उनकी मदद के लिए निकल पड़ा था। मुगलों को महान बनाने के लिए हर तरह तिकड़मों का जाल बुना गया, भारत का फर्जी इतिहास भी लिखा गया, यह उसमे एक है। उस समय के इतिहास में ऐसी किसी घटना का उल्लेख नहीं मिलता। ठीक ऐसी प्रकार शक्तिपीठ ज्वाला देवी में अकबर द्वारा छत्र चढ़ाने की झूठी और फर्जी कखानी लिखी गई, जिसका भी उल्लेख नहीं मिलता। परन्तु, उस फर्जी कहानी पर फिल्म बनने के बाद भारतीय,  विशेषकर सनातनी भ्रमित हुए।  

अब सर्वप्रथम बात करते हैं, प्रचलित कहानी क्या है और कहाँ से आई ? कहानी कुछ यूँ है- गुजरात पर शासन कर रहे कुतुबुद्दीन बहादुर शाह ने मेवाड़ पर आक्रमण किया। इसी दौरान महारानी कर्णावती ने मुग़ल शासक हुमायूँ को पत्र भेजा। साथ में उन्होंने एक राखी भी भेजी और मदद के लिए गुहार लगाई। इसके बाद हुमायूँ तुरंत उनकी मदद के लिए निकल पड़ा था। इस घटना को फर्जी तरह रक्षाबंधन से भी जोड़ दिया गया।

प्रश्न उठता है, फिर ये कहानी आई कहाँ से ? असल में, 19वीं शताब्दी में मेवाड़ की अदालत में कर्नल जेम्स टॉड नाम का एक अंग्रेज था। उसने ‘Annals and Antiquities of Rajast’han’ नाम की एक पुस्तक लिखी थी। इसी पुस्तक में इस कहानी का उल्लेख था। ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ के जेम्स टॉड ने ही सन् 1535 की इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा था- कि राखी पाकर हुमायूँ तुरंत मदद के लिए निकल पड़ा था। टॉड लिखता है- जब बहुत ज्यादा ज़रूरत हो या फिर खतरा हो, तभी राखी भेजी जाती थी। इसके बाद राखी प्राप्त करने वाला ‘राखीबंद भाई’ बन जाता था। उन्होंने लिखा- “अपनी उस बहन के लिए वो राखीबंद भाई अपने जीवन को भी खतरे में डाल सकता है। बदले में उसकी अपनी ‘बहन’ की मुस्कराहट मिल सकती है, जिसकी उसने रक्षा की हो।” 

टॉड ने आगे लिखा- ब्रेसलेट पाकर हुमायूँ काफी खुश हुआ था। टॉड ने (मनगढ़ंत कहानी बनाते हुए) लिखा- हुमायूँ ने खुद को एक ‘सच्चा शूरवीर’ साबित किया और पश्चिम बंगाल में अपने आक्रमण को छोड़ कर चित्तौर को बचाने के लिए निकल पड़ा, राणा सांगा की विधवा और बच्चों की रक्षा के लिए निकल पड़ा। जबकि वास्तविकता ये थी, कि हुमायूँ के पहुँचने से पहले ही चित्तौर पर बहादुर शाह का कब्ज़ा हो चुका था और रानी ने कई महिलाओं समेत जौहर कर लिया था। फिर भी टॉड लिखलिखता है- "...इसके बावजूद आक्रांता को भगा कर हुमायूँ ने वादा पूरा किया।" 

टॉड की इस झूठी कहानी को इतिहास की दृष्टिकोण से समझिए- महारानी कर्णावती, राणा सांगा की पत्नी थीं। महाराणा संग्राम सिंह "राणा सांगा" ने राजपूतों को एकजुट कर मुग़ल शासक बाबर के खिलाफ एक मोर्चा बनाया और सन् 1527 में खानवा (राजस्थान के भरतपुर में) के युद्ध में बाबर से भिड़े। परन्तु, बाबर की तोपों, फौज में जिहाद की भूख भरना और युद्ध में नई तकनीकों का इस्तेमाल मुगलों के काम आया। राणा सांगा बुरी तरह घायल हो गए और कुछ दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई। 

राणा सांगा की मृत्यु के बाद बड़े बेटे विक्रमादित्य को सिंहासन पर बिठा कर महारानी कर्णावती ने शासन शुरू किया। उनका एक छोटा बेटा भी था, जिसका नाम था- राणा उदय सिंह। वही राणा उदय सिंह, जिन्होंने 30 वर्ष से भी अधिक समय तक मेवाड़ पर राज किया और उदयपुर शहर की स्थापना की। उनके ही बेटे महाराणा प्रताप थे, जिन्होंने अकबर की नाक में दम किया था।

दूसरी ओर बाबर की मौत के बाद 1530 में हुमायूँ गद्दी पर बैठा। उस समय गुजरात पर वहाँ की सल्तनत के बहादुर शाह का राज था। बहादुर शाह ने अपने राज्य के विस्तार के लिए कई युद्ध लड़े। हुमायूँ के आक्रमण के बाद ही उसके राज़ का अंत हुआ था। बाद में समुद्र में पुर्तगालियों के साथ एक बैठक के दौरान बात बिगड़ गई और वो मारा गया। ये वही बहादुर शाह था, जो कभी अपने अब्बा शमशुद्दीन मुजफ्फर शाह II और भाई सिकंदर शाह के डर से चित्तौर में छिपा था। बाद में बहादुर शाह ने मालवा को जीता और फिर उसने चित्तौर पर ही धावा बोल दिया। ये तो था इन किरदारों का परिचय। 

इतिहासकार सतीश चंद्रा अपनी पुस्तक ‘History Of Medieval India‘ में लिखते हैं- किसी भी तत्कालीन लेखक ने कर्णावती द्वारा हुमायूँ को राखी भेजने की घटना का जिक्र नहीं किया है और ये झूठ हो सकती है। तो फिर सच्चाई क्या थी? असल में हुआ क्या था, जो हमसे छिपाया गया ?

पुस्तक ‘The History of India for Children (Vol. 2): FROM THE MUGHALS TO THE PRESENT’ में अर्चना गरोदिया गुप्ता और और श्रुति गरोदिया लिखती हैं- हुमायूँ तो चित्तौड़ पर सुल्तान बहादुर शाह के कब्जे के कुछ महीनों बाद चित्तौर पहुँचा था। वो तो इंतजार कर रहा था, कि कब मेवाड़ का साम्राज्य ध्वस्त हो। इस दौरान बहादुर शाह भी खुलेआम चित्तौड़ में मारकाट और लूटपाट मचाता रहा। उसके मंत्रियों ने उसे कह रखा था, कि वो एक काफिर से लड़ रहा है, इसीलिए मुस्लिम होने के नाते हुमायूँ उसे नुकसान नहीं पहुँचाएगा। लेकिन, हुमायूँ ने चित्तौड़ के उसके कब्जे में जाने का इंतजार किया और फिर हमला बोला। शुरू में तो उसकी हार हो रही थी, लेकिन अंत में किसी तरह उसने गुजरात और मालवा पर कब्ज़ा जमा लिया। 

इस तरह बहादुर शाह के सल्तनत का अंत हो गया। बहादुर शाह की सेना भी विशाल थी और उसके पास बड़े संसाधन थे। चित्तौड़ हमले के दौरान हुमायूँ और बहादुर शाह के बीच पत्राचार भी हुआ था, जिसका उल्लेख इतिहासकर एसके बनर्जी ने अपनी पुस्तक ‘हुमायूँ बादशाह‘ में किया है। बहादुर शाह ने पत्र लिख कर हुमायूँ को बताया था, कि वो ‘काफिरों’ को मार रहा है। बदले में हुमायूँ ने भी लिखा था, कि उसके दिल का दर्द ये सोच कर खून में बदल गया है कि एक होने के बावजूद हम दो हैं। और इस कहानी को एक हिन्दू त्यौहार से जोड़ कर रक्षाबंधन को बर्बाद करने की कोशिश की गई।

रानी कर्णावती का क्या हुआ ? चित्तौड़ में जो तीन जौहर हुए, उनमें से एक ये भी था। जहाँ पुरुषों को केसरिया वस्त्र पहन कर युद्ध के लिए निकलना पड़ा, अंदर किले में रानियों ने अन्य महिलाओं के साथ जौहर किया। 8 मार्च, 1934 को इन महिलाओं ने इस्लामी शासकों के हाथों में जाने के बदले मृत्यु का वरन किया। राजकुमारों को एक सुरक्षित जगह पर रखा गया था, इसीलिए वो बच गए। इस्लामी फ़ौज ने कई बच्चों की भी हत्या की थी।

कर्णावती के राखी भेजने पर हुमायूँ द्वारा मदद करने की खबर उतनी ही फर्जी है, जितनी जोधा-अकबर की। आज तक कई फ़िल्में और सीरियल बन चुके, लेकिन किसी ने भी जोधा-अकबर की प्रमाणिकता के विश्व में रिसर्च करने की कोशिश नहीं की। जेम्स टॉड ने ही जोधा के नाम का भी जिक्र किया था। उससे पहले कहीं नहीं लिखा है, कि अकबर की किसी पत्नी का नाम जोधा था। ये भी एक बनावटी कहानी भर है।

रक्षाबंधन से व्यवहारिक शिक्षा
रक्षाबंधन भाइयों को अपनी बहनों की सुरक्षा व संरक्षण का दायित्व और जिम्मेदारी लेने को प्रेरित करता है। यह पर्व दायित्व और जिम्मेदारी के महत्व के बारे में सिखाता है।
- रक्षाबंधन भाई-बहन के प्यार और स्नेह का प्रतीक है। यह पर्व हमें भाई-बहन के प्यार की महत्ता के बारे में सिखाता है।
- रक्षाबंधन में बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और भाइयों को सुरक्षा और संरक्षण का वचन देती हैं। अर्थात यह पर्व सुरक्षा और संरक्षण के महत्व के बारे में सिखाता है।
- रक्षाबंधन हमारी परंपरा और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हम सबको अपनी परंपरा और संस्कृति के बारे में सिखाता है।

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प्रयागराज महाकुंभ-2025 में "सूचना केंद्र, हेल्प-लाइन सेवा" के संचालन, "धर्म नगरी" के विशेष अंकों के प्रकाशन, धर्मनिष्ठ व राष्ट्रवादी साधु-संतों धर्माचार्यं आदि को मीडिया-पीआर से जुडी सेवा देने हेतु एक बड़े प्रोजेक्ट / सेवा-कार्य हेतु हमें सहयोग की आवश्यकता होगी। देश में बदलते राजनितिक-आर्थिक नीतियों एवं भविष्य के संभावित चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए प्रोजेक्ट के कार्य होंगे। सहयोग हेतु इच्छुक धर्मनिष्ठ संत, सम्पन्न-सक्षम व्यक्ति आदि संपर्क करें, जिससे उनसे संपर्क किया जा सकें, प्रोजेक्ट के बारे में विस्तार से बताया जा सकें +91-8109107075 वाट्सएप
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रक्षाबंधन पर कब तक है भद्रा का साया, राशि अनुरूप बांधें राखी, करने योग्य विशेष उपाय,
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मुख्यमंत्री ने छात्राओं से बढ़वाई राखी, खाते में योजना के भेजे 57.18 करोड़ रु  
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 अपने "राष्ट्रपिता" की स्टैचू पर चढ़कर पेशाब करते हुए ! क्या पाकिस्तान भूलेगा...! 
- दुनिया के क्रूरतम नरसंहार और अत्याचारों में एक 1971 में हुआ। बुजुगों, महिलाओं को बेटियों और बहुओं के साथ बलात्कार होते देखने को मजबूर किया। बच्चों को हवा में उछाला और बंदूक में लगे चाकू से छेद दिया
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...मस्जिद में लहराया लाल झंडा, अब क्या होगा ? इजराइल के धरोहर मंत्री बोले- 
"दुनिया में गंदगी साफ करने का यही तरीका है"
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ऐसे ही धर्मांतरण होता रहा, तो एक दिन भारत की बहुसंख्यक आबादी हो जायेगी "अल्पसंख्यक" हाईकोर्ट 
http://www.dharmnagari.com/2024/07/If-conversion-continues-like-this-then-majority-population-of-India-will-become-a-minority-HC.html

हिन्दू न रोएं बेरोजगारी का रोना...! 
http://www.dharmnagari.com/2022/06/Aaj-ke-selected-Posts-Tweets-Comments-day-14-June.html

संविधान धर्मांतरण की अनुमति नहीं देता : हाईकोर्ट
http://www.dharmnagari.com/2024/07/Constitution-do-not-conversion-High-Court-Allahabad.html
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