गणेशोत्सव : बुद्धि के अधिष्ठाता गणपति की स्थापना, पूजा-विधि, श्वेतार्क गणपति, गणपति यंत्र , श्रीगणेश चालीसा...

श्री गणेश सहस्त्रनामावली, विशेष उपाय, गणपति के जन्म की लोककथा 
व्रकतुंड महाकाय, कोटिसूर्य समप्रभाः

निर्वघ्नं कुरु मे देव, सर्वकार्येरुषु सवर्दा।।
हम गलत बोलते हैं- सूर्य कोटि। जबकि बोलना चाहिए "कोटि सूर्य।" श्लोक में कोटि सूर्य का अर्थ है- करोड़ों सूर्य के समान। मुख्य रूप से विवाह आदि में प्रिंटेड विवाह के कार्ड में "गलत छपने के कारण" हुआ है... 

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 -राजेश पाठक (अवैतनिक संपादक) 

सनातन हिन्दू धर्म में भगवान गणेश को विद्या-बुद्धि के प्रदाता, विघ्न-विनाशक, मंगलकारी, सिद्धिदायक, सुख-समृद्धि और यश-कीर्ति देने वाले देवता माना गया है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ‘ॐ’और स्वास्तिक को भी साक्षात गणेश जी का स्वरूप माना गया है। तभी तो कोई भी शुभ कार्य की शुरुआत इनसे ही होती है। देवाधिदेव महादेव के दूसरे पुत्र गणेशजी देवताओं में प्रथम पूज्य हैं। किसी भी कार्य के प्रारंभ से पूर्व उनकी पूजा अनिवार्य है। ऐसा करने से कार्य निर्विध्न पूर्ण हो जाता है। 

भगवान गणेश के भाई कार्तिकेय और बहन अशोक सुंदरी हैं। गजानन की दो पत्नियां हैं- रिद्धि और सिद्धि। गणेश जी को रिद्धि से क्षेम और सिद्धि से लाभ नाम के दो पुत्र हैं। जब कार्तिकेय दक्षिण में असुरों से संग्राम के लिए गए थे और उन्होंने युद्ध में असुरों को पराजित किया था, तब भगवान शिव ने गणेशजी के पुत्र का नाम क्षेम रखा। माता पार्वती उनको प्रेम से लाभ नाम से पुकारती थीं। इस तरह से गणेश जी के दो पुत्रों का नाम शुभ और लाभ हुआ।

भगवान गणेश बुद्धि के अधिष्ठाता हैं। वे साक्षात प्रणव रूप हैं। उनके श्रीविग्रह का ध्यान, उनके मंगलमय नाम का जप, उनकी आराधना मेधा-शक्ति (स्मरण शक्ति) को तीव्र करती है। महाभारत के यदि वे लेखक न बनते, तो भगवान व्यास के इस "पंचम वेद" से हम सब वंचित ही रह जाते। पंच देवोपासना में भगवान गणपति मुख्य हैं। प्रत्येक कार्य का प्रारम्भ 'श्रीगणेश' अर्थात् उनके स्मरण-वन्दन से ही होता है। उनकी नैष्ठिक उपासना करने वाला सम्प्रदाय भी था। दक्षिण भारत में भगवान गणपति की उपासना बहुत धूम-धाम से होती है। 'कलौ चण्डीविनायकौ।' जिन लोगों को कोई भौतिक सिद्धि चाहिये, वे इस युग में गणेश जी को शीघ्र प्रसन्न कर पाते हैं। वे मंगल-मूर्ति सिद्धि-सदन बहुत अल्प श्रम से द्रवित होते हैं।

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गणेश और हनुमान ही कलियुग के ऐसे देवता हैं, जो अपने भक्तों से कभी रुठते नहीं, अत: इनकी आराधना करने वालों से ग़लतियां भी होती हैं, तो वह क्षम्य होती हैं। साधना चाहे सात्विक हो या तामसिक, मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण या फिर मोक्ष की साधना हो अग्रपूजा गणेशजी की ही होती है। भगवान गणेश संगीत के स्वर 'धैवत' से भी मुख्य रूप से जुड़े हुए हैं। गणपति ही ऐसे देव हैं, जिनकी पूजा घास-फूस अपितु पेड़-पौधों की पत्तियों से भी करके उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। इनकी पूजा के लिए इनके प्रधान 21 नामों से 21 पत्ते अर्पण करने का विधान मिलता है।

आंकड़े की जड़ में गणपति का वास-
गणपति की साधना में उनकी विभिन्न प्रकार की प्रतिमाओं का अपना अलग ही महत्व है। इनमें श्वेतार्क गणेशजी की प्रतिमा अत्यंत ही शुभ फल प्रदान करने वाली होती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, श्वेतार्क की जड़ में गणेश जी का वास होता है। यदि इस जड़ को अपने घर या दुकान में विधि-विधान से स्थापित किया जाये, तो घर में सुख-समृद्धि का वास सदैव बना रहता है। शास्त्रानुसार, श्वेतार्क गणेशजी आंकड़े के पौधे की जड़ में प्रकट होते हैं। आंकड़े को आक का पौधा भी कहा जाता है। इस पौधे के फूलों को शिवलिंग पर भी अर्पित किया जाता है। आंकडे के पौधे की एक दुर्लभ प्रजाति है सफेद आंकड़ा। इसी सफेद आंकड़े की जड़ में श्वेतार्क गणपति की प्रतिकृति निर्मित होती है। किसी भी पौधे की जड़ में गणपति की प्रतिकृति बनने में कई वर्षों का समय लगता है।

मान्यता है, यदि श्वेतार्क गणपति को अपने घर में स्थापित करके प्रतिदिन पूजा-अर्चना की जाए, तो यह प्रतिमा सिद्ध हो जाती है और इसमें गणपति का वास हो जाता है। जिस परिवार में आंकड़े के गणेश की प्रतिदिन पूजा होती है, वहां दरिद्रता, रोग व समस्या से मुक्त हो जाता है। इस तरह की गणेश प्रतिमा की पूजा करने से सुख व सफलता के साथ ही धन-वैभव प्राप्त होता है। श्वेतार्क गणपति की पूजा से सभी प्रकार की दैविक बाधाओं से रक्षा होती है, भूत-प्रेत, नजर दोष, जादू-टोना और तंत्र-मंत्र आदि का भय नहीं रहता है।

गणपति की स्थापना व मुहूर्त-
दस दिनों तक चलने वाला गणेशोत्सव हिन्दुओं की आस्था का एक ऐसा अद्भुत प्रमाण है, जिसमें शिव-पार्वती के नंदन श्रीगणेश की प्रतिमा को घरों, मन्दिरों अथवा पंडालों में साज-श्रृंगार के साथ चतुर्थी को स्थापित किया जाता है। गणेश चतुर्थी (भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी) 7 सितंबर 2024 से 10 दिन तक चलने वाले इस गणेश महोत्सव में गणपति को सर्वाधिक लोग 10 दिन तक घर में स्थापित करते है
। कोई चाहे तो 1.5 दिन, 3 दिन, 7 दिन के लिए भी बप्पा को रखा सकता है। गणपति बप्पा का विसर्जन अनंत चतुर्दशी (17 सितंबर) के दिन होगा। विघ्नहर्ता गणेश की स्थापना शुभ मुहूर्त के अनुसार की जाती है।

गणेश चतुर्थी तिथि शनिवार (7 सितंबर) सायंकाल 5:37 बजे तक रहेगी। अतः इससे पूर्व मूर्ति की स्थापना करना चाहिए। गणपति का प्राकट्य भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी, सोमवार, स्वाति नक्षत्र, सिंह लग्न में हुआ था।  

गणेश की प्रतिष्ठा सम्पूर्ण भारत में समान रूप में व्याप्त है। महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगल-मूर्ति के नाम से पूजता है। दक्षिण भारत में इनकी विशेष लोकप्रियता ‘कला शिरोमणि’ के रूप में है। मैसूर तथा तंजौर के मंदिरों में गणेश की नृत्य-मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं हैं। गणेश हिन्दुओं के आदि आराध्य देव हैं। हिन्दू धर्म में गणेश को एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है। कोई भी धार्मिक उत्सव हो, यज्ञ, पूजन इत्यादि सत्कर्म हो या फिर विवाहोत्सव हो, निर्विघ्न कार्य सम्पन्न हो, इसलिए शुभ के रूप में गणेश की पूजा सबसे पहले की जाती है।

शैव, वैष्णव सभी के बीच गणेश एक सर्वमान्य देवता है। शिव मंदिर में तो गणेश की मूर्ति होना अनिवार्य है। भारतीय मूर्तिकला और चित्रकला में गणेश के पांच सिर और तीन दाँत भी चित्रित मिलते हैं। आरंभ में दो भुजाओं की मूर्तियां बनीं, पर बाद में सोलह भुजाओं तक की मूर्तियों का निर्माण हुआ। उत्तर भारत में अकेले गणेश के मंदिर विरले ही मिलेंगे, किन्तु महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में उनका बाहुल्य है। ‘तिलक’ के समय से महाराष्ट्र के गणेश उत्सव ने धार्मिक के साथ राजनीतिक महत्व भी प्राप्त कर लिया।

कहीं-कहीं तो ये प्रतिमाएँ बहुत बड़ी तथा बहुत उँची होती हैं। दस दिनों तक गणेश प्रतिमा का नित्य विधि-पूर्वक पूजन करते हैं और ग्यारहवें दिन इस प्रतिमा का बड़े धूम-धाम से विसर्जन किया जाता है। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेशजी के "सिद्धि विनायक" स्वरूप की पूजा होती है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन गणेश जी दोपहर में अवतरित हुए थे। इसलिए यह 'गणेश चतुर्थी' विशेष फलदायी होती है। पूरे देश में यह त्योहार 'गणेशोत्सव' के नाम से प्रसिद्ध है। 

भारत में यह त्यौहार प्राचीन काल से ही हिन्दू परिवारों में मनाया जाता है। इस दौरान देश में वैदिक सनातन पूजा पद्धति से अर्चना के साथ-साथ अनेक लोक सांस्कृतिक रंगारंग कार्यक्रम भी होते हैं, जिनमें नृत्य नाटिका, रंगोली, चित्रकला प्रतियोगिता, हल्दी उत्सव आदि प्रमुख होते हैं। गणेशोत्सव में प्रतिष्ठा से विसर्जन तक विधि-विधान से की जाने वाली पूजा एक विशेष अनुष्ठान की तरह होती है, जिसमें वैदिक एवं पौराणिक मंत्रों से की जाने वाली पूजा दर्शनीय होती है। महाआरती और पुष्पांजलि का दृश्य तो देखने योग्य होता है।

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मूर्ति स्थापना में ध्यान रखें-
- भगवान गणेश की मूर्ति घर लाते समय इसका ध्यान रखें, कि उनकी सूंड आपके बाएं हाथ की ओर हो। घर के लिए बप्पा के बैठे हुए स्वरूप की मूर्ति का चुनाव सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इससे घर में सदा धन-धान्य और सुख-समृद्धि बनी रहती है।
- कभी भी फर्श पर या सीधे चौकी पर गणपति की मूर्ति को विराजित न करें। गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की मूर्ति स्थापना से पूर्व पूजा-स्थल को अच्छी तरह साफ करके वहां एक चौकी बिछाएं। फिर चौकी के ऊपर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर, 
उस पर गणपति जी की प्रतिमा स्थापित करें।
- शास्त्रों के अनुसार गणेश स्थापना में दिशाओं का भी ध्यान रखना आवश्यक है। गणपति की स्थापना सदैव उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) या पूर्व दिशा में स्थापित करना चाहिए। मूर्ति की स्थापना दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम में भूलकर भी नहीं करनी चाहिए।
- घर या ऑफिस में भगवान गणेश की एक साथ दो मूर्ति नहीं रखनी चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार, ऐसा करने से ऊर्जा का आपस में टकराव होता है। जिससे धन हानि होती है।
- भगवान गणेश की स्थापना के समय ध्यान रखें,  कि मूर्ति का मुख दरवाजे की ओर नहीं हो। कहते हैं, कि भगवान गणेश के मुख की ओर सौभाग्य, सिद्धि और सुख होता है।
- भगवान गणेश के सामने सम्भव हो तो अखंड ज्योति विसर्जन वाले दिन तक जलाएं।

पूजन विधि-
गणेशोत्सव की अवधि में प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर 'मम सर्व कर्मसिद्धये सिद्धि विनायक पूजनमहं करिष्ये' मंत्र से संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद सोने, तांबे, मिट्टी अथवा गोबर से गणेशजी की प्रतिमा बनाई जाती है।
गणेश की प्रतिमा को कोरे कलश में जल भरकर मुंह पर कोरा कपड़ा बांधकर उस पर स्थापित करते हैं। इसके पश्चात मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाकर उनका पूजन और आरती करनी चाहिए।
दक्षिणा अर्पित करके 21 लड्डुओं का भोग लगाया जाता है। इनमें से पांच लड्डू गणेशजी की प्रतिमा के पास रखकर शेष ब्राह्मणों में बांट देना चाहिए।
पूजन से पहले नित्यादि क्रियाओं से निवृत्त होकर शुद्ध आसन में बैठकर सभी पूजन सामग्री को एकत्रित कर पुष्प, धूप, दीपक, कपूर, रोली, मौली लाल, चंदन, मोदक आदि एकत्रित कर क्रमश: पूजा करनी चाहिए।
पूजा के समय यह स्मरण रखें कि भगवान गणेश को तुलसी दल और तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए। उन्हें, शुद्ध स्थान से चुनी हुई दूर्वा को धोकर ही चढ़ाना चाहिए
श्रीगणेश को मोदक यानी लड्डू अधिक प्रिय होते हैं। इसलिए उन्हें देशी घी से बने मोदक का प्रसाद ही चढ़ाना चाहिए। ऐसा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
भगवान गणेश के अतिरिक्त शिव और पार्वती, नन्दी, कार्तिकेय सहित सम्पूर्ण शिव परिवार की पूजा षोड़षोपचार विधि रूप से करना सर्वोत्तम माना जाता है।
शास्त्रों के अनुसार गणेश की पार्थिव प्रतिमा बनाकर उसे प्राण-प्रति‍ष्ठित कर पूजन-अर्चन के बाद विसर्जित कर देना चाहिए। अतः भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक आयोजनों के बाद प्रतिमा का विसर्जन करना नहीं भूलें।

जीवन में सुख, शांति,सरलता, विद्या आदि की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को गणपति पूजन अवश्य करना चाहिए
 ऐसा करने से मानसिक शांति के साथ आपके मनोरथ भी पूर्ण होंगे। श्रद्धालु भक्तों को गणेश वंदना, गणेश अर्थवशीर्ष, गणेश आरती नियमित करनी चाहिए। साथ ही गणेशजी को नियमित पुष्प, मिष्ठान, धूप-दीप मंत्रोच्चारण सहित अर्पित करने चाहिए हरी वस्तुओं का दान व गणेशजी को दूर्वा अर्पित अवश्य करनी चाहिए। ऐसा करते हुए श्री गणेशजी से अपनी मनोकामना निश्चल भाव से कहनी चाहिए। मान्यता है, कि संकटनाशक श्री गणेश स्त्रोत का पाठ करने वाले जातक की गणपति देव सदैव मनोकामना पूर्ण करते हैं।

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संबंधित लेख- पढ़ें / देखें-
गणेशोत्सव : छत्रपति शिवाजी महाराज के समय पुनः आरंभ हुआ "गणेश चतुर्थी उत्सव"
http://www.dharmnagari.com/2024/09/Ganesh-Utsav-1st-time-celebrated-271-B-during-the-rule-of-Chalukya-Satvahan-Rashtrakut-dynasty.html

गणपति आरती, भजन, गीत Ganapati Aarati, Bhajan, Songs 
https://www.youtube.com/watch?v=6ho2hg34zBM&t=1274s

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गणपति पूजा-
गणपति की पूजा करते हुए (प्रसन्न करने के लिए) निम्न पत्तों को अर्पण करें और उनके इन नामों को साथ ही बोलते भी रहें-
सुमुखायनम: स्वाहा कहते  हुए  शमी पत्र चढ़ाएं,
गणाधीशाय नम: स्वाहा भंगरैया का पत्ता चढ़ाएं,
साथ ही उमापुत्राय नम: बिल्वपत्र,
गज मुखायनम: दूर्वादल,
लम्बोदराय नम: बेर के पत्ते से,
हरसूनवे नम: धतूरे के पत्ते से,
शूर्पकर्णाय नम: तुलसी दल से,
वक्रतुण्डाय नम: सेम के पत्ते से,
गुहाग्रजाय नम: अपामार्ग के पत्तो से,
एक दंतायनम: भटकटैया के पत्ते से,
हेरम्बाय नम: सिंदूर वृक्ष के पत्ते से,
चतुर्होत्रे नम: तेजपात के पत्ते से,
सर्वेश्वराय नम: अगस्त के पत्ते चढ़ावें।
विकराय नम: कनेर के पत्ते,
इभतुण्डाय नम: अश्मात के पत्ते से,
विनायकाय नम: मदार के पत्ते से,
कपिलाय नम: अर्जुन के पत्ते से,
बटवे नम: देवदारु के पत्ते से,
भालचंद्राय नम: मरुआ के पत्ते से,
सुराग्रजाय नम: गांधारी के पत्ते से और
सिद्धि विनायकाय नम: केतकी के पत्ते से अर्पण करें।

गणेशजी की आराधना बाज़ार के महंगे सामान के स्थान पर औषधियों से भी होती है। पत्रं पुष्पं फलं तोयं यों मे भक्त्या प्रच्छति अर्थात् पत्र, पुष्प, फल और जल के द्वारा भक्ति भाव से की गई पूजा लाभदायी रहती है। षोड़षोपचार विधि से इनकी पूजा की जाती है। गणेश की पूजा अगर विधिवत की जाए, तो इनकी पतिव्रता पत्नियां रिद्धि-सिद्धि और बुद्धि भी प्रसन्न होकर घर-परिवार में सुख शांति और संतान को निर्मल विद्या-बुद्धि देती है।

पूजन की शास्त्रीय विधि-
भगवान गणेश की शास्त्रीय विधि भी इस प्रकार है। इनके क्रमों की संख्या 16 है। आह्वान, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमनीय, स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंधपुष्प, पुष्पमाला, धूप-दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, आरती-प्रदक्षिणा और पुष्पांजलि आदि। गणेश गायत्री मन्त्र से ही इनकी आराधना कर सकते हैं। भगवान गणेश की पूजा के लिए ऋग्वेद के गणेश अथर्व सूत्र में कहा गया है कि रक्त पुष्पै सुपूजितम अर्थात् लाल फूल से विनायक की पूजा का विशेष महत्त्व है। स्नानादि करके सामग्री के साथ अपने घर के मंदिर में बैठे, अपने आपको पवित्रीकरण मन्त्र पढ़कर घी का दीप जलाएं और दीपस्थ देवतायै नम: कहकर उन्हें अग्निकोण में स्थापित कर दें। इसके बाद गणेशजी की पूजा करें। अगर कोई मन्त्र न आता हो, तो 'गं गणपतये नम:' मन्त्र को पढ़ते हुए पूजन में लाई गई सामग्री गणपति पर चढाएं, यहीं से आपकी पूजा स्वीकार होगी और आपको शुभ-लाभ की अनुभूति मिलेगी। गणेश जी की आरती और पूजा किसी कार्य को प्रारम्भ करने से पहले की जाती है और प्रार्थना करते हैं कि कार्य निर्विघ्न पूरा हो।

[विशेष- पूजा या पाठ करते समय "लाल रंग" से छपे अक्षरों का विशेष महत्व (तांत्रिक) होता है, अतः हम मंत्र, श्लोक, आरती, चालीसा आदि को लाल रंग करते हैं - संपादक  "धर्म नगरी" / DNNews 9752404020] 

श्री गणेश पुराण- 
शास्त्रों और पुराणों में सिंह, मयूर और मूषक को गणेश जी का वाहन बताया गया है। गणेश पुराण के क्रीडाखण्ड में उल्लेख है-
सतयुग में गणेशजी का वाहन सिंह है। वे दस भुजाओं वाले, तेजस्वरूप तथा सबको वर देने वाले हैं और उनका नाम विनायक है।
त्रेता युग में उनका वाहन मयूर है, वर्णन श्वेत है तथा तीनों लोकों में वे मयूरेश्वर-नाम से विख्यात हैं और 6 भुजाओं वाले हैं।
द्वापर युग में उनका वर्ण लाल है। वे चार भुजाओं वाले, मूषक वाहन हैं तथा गजानन नाम से प्रसिद्ध हैं।
कलियुग में उनका धूम्रवर्ण है। वे घोड़े पर आरूढ़ रहते हैं, उनके दो हाथ है, उनका नाम धूम्रकेतु है।
मोदकप्रिय श्रीगणेश जी विद्या-बुद्धि और समस्त सिद्धियों के दाता तथा थोड़ी उपासना से प्रसन्न हो जाते हैं। उनके जप का मन्त्र ॐ गं गणपतये नम: है।

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गणपति यंत्र का महत्व-
गणेश-पूजन के दस दिनों के दौरान गणपति यंत्र के पूजन का विशेष महत्व है। जीवन को सुख-समृद्धि एवं सौभाग्य से परिपूर्ण करने के लिए इस यंत्र के पूजन का विशेष महत्व है। चाहे किसी नए व्यापार की शुरुआत हो, भवन-निर्माण का आरम्भ हो या किसी किताब, पेन्टिंग या यात्रा का शुभारम्भ हो, गणपति यन्त्र आपके कार्य में आने वाली हर प्रकार की बाधा से रक्षा करता है। जो इस यन्त्र का पूजन करता है, वह अपने हर कार्य में सफल रहता है।

गणेशजी की आरती
श्लोक
व्रकतुंड  महाकाय, कोटिसूर्य  समप्रभाः

निर्वघ्नं कुरु मे देव, सर्वकार्येरुषु सवर्दा
आरती- (सुनें #Shemaroo Bhakti)-
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥ जय गणेश देवा...

एक  दन्त  दयावन्त  चार  भुजाधारी
माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी।।

अन्धन को आँख देत, कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ।। जय गणेश देवा...

पान  चढ़े  फल चढ़े  और  चढ़े मेवा
लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा॥

'सूर' श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा॥
दोहा
श्री गणेश   यह चालीसा पाठ करें  धर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै लहे जगत् सन्मान॥
सम्वत् अपन सहस्र दश ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो मंगल मूर्ति गणेश॥


स्तुति
गणपति की सेवा मंगल मेवा सेवा से सब विघ्न टरें।
तीन लोक तैंतीस देवता द्वार खड़े सब अर्ज करे ॥

ऋद्धि-सिद्धि दक्षिण वाम विरजे आनन्द सौं चंवर दुरें ।
धूप दीप और लिए आरती भक्त खड़े जयकार करें ॥

गुड़ के मोदक भोग लगत है मूषक वाहन चढ़े सरें ।
सौम्य सेवा गणपति की विघ्न भागजा दूर परें ॥

भादों मास शुक्ल चतुर्थी दोपारा भर पूर परें ।
लियो जन्म गणपति प्रभु ने दुर्गा मन आनन्द भरें ॥

श्री शंकर के आनन्द उपज्यो, नाम सुमरयां सब विघ्न टरें ।
आन विधाता बैठे आसन इन्द्र अप्सरा नृत्य करें ॥

देखि वेद ब्रह्माजी जाको विघ्न विनाशन रूप अनूप करें।
पग खम्बा सा उदर पुष्ट है चन्द्रमा हास्य करें ।
दे श्राप चन्द्र्देव को कलाहीन तत्काल करें ॥

चौदह लोक में फिरें गणपति तीन लोक में राज करें ।
उठ प्रभात जो आरती गावे ताके सिर यश छत्र फिरें ।

गणपति जी की पूजा पहले करनी काम सभी निर्विध्न करें ।
श्री गणपति जी की हाथ जोड़कर स्तुति करें ॥


श्री गणेश चालीसा का महत्व-
गणेश चालीसा सर्वप्रथम पूजनीय भगवान श्रीगणेश की कृपा पाने का एक माध्यम या एक ऐसा मार्ग है, जो किसी भी कार्य को पूर्ण करने में सहायक है। किसी भी कार्य की शुरूआत भगवान श्रीगणेश के पूजन से ही की जाती है। ऐसा करने पर हर शुभ कार्य में सफलता प्राप्त होती है। भगवान शिव द्वारा गणेश जी को सबसे पहले पूजने का वरदान प्राप्त है। अत: सभी मांगलिक और शुभ कार्यों में गणेश जी की आराधना और उनके प्रतीक चिन्हों का पूजन किया जाता है।
 
गणेश जी को परिवार का देवता भी माना जाता है। इनकी पूजा से घर-परिवार की हर समस्या का निराकरण हो जाता है। भगवान श्रीगणेश रिद्धि और सिद्धि के दाता है, इनकी कृपा से भक्तों को लाभ प्राप्त होता है और शुभ समय का आगमन होता है। प्रतिदिन 'गणेश चालिसा' का पाठ करने वाले भक्तों को जीवन भर किसी भी वस्तु की कमी नहीं होती है। इसके अलावा इन भक्तों के घर-परिवार में सदैव सुख-शांति बनी रहती है।

श्रीगणेश चालीसा
जय गणपति सद्गुण सदन कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण जय जय गिरिजालाल॥
जय जय जय गणपति राजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥
जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्धि विधाता॥
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजित मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विधाता॥
ऋद्धि सिद्धि तव चँवर सुधारे। मूषक वाहन सोहत द्वारे॥
कहौं जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगल कारी॥
एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुँच्यो तुम धरि द्विज रूपा।
अतिथि जानि कै गौरी सुखारी। बहु विधि सेवा करी तुम्हारी॥
अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥
मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण यहि काला॥
गणनायक गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम रूप भगवाना॥
अस कहि अन्तर्धान रूप ह्वै। पलना पर बालक स्वरूप ह्वै॥
बनि शिशु रुदन जबहि तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥
सकल मगन सुख मंगल गावहिं। नभ ते सुरन सुमन वर्षावहिं॥
शम्भु उमा बहुदान लुटावहिं। सुर मुनि जन सुत देखन आवहिं॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आये शनि राजा॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक देखन चाहत नाहीं॥
गिरजा कछु मन भेद बढ़ायो। उत्सव मोर न शनि तुहि भायो॥
कहन लगे शनि मन सकुचाई। का करिहौ शिशु मोहि दिखाई॥
नहिं विश्वास उमा कर भयऊ। शनि सों बालक देखन कह्यऊ॥
पड़तहिं शनि दृग कोण प्रकाशा। बालक शिर इड़ि गयो आकाशा॥
गिरजा गिरीं विकल ह्वै धरणी। सो दु:ख दशा गयो नहिं वरणी॥
हाहाकार मच्यो कैलाशा। शनि कीन्ह्यों लखि सुत को नाशा॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाये। काटि चक्र सो गज शिर लाये॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण मन्त्र पढ़ शंकर डारयो॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे॥
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी की प्रदक्षिणा लीन्हा॥
चले षडानन भरमि भुलाई। रची बैठ तुम बुद्धि उपाई॥
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥
धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई। शेष सहस मुख सकै न गाई॥
मैं मति हीन मलीन दुखारी। करहुँ कौन बिधि विनय तुम्हारी॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। लख प्रयाग ककरा दुर्वासा॥
अब प्रभु दया दीन पर कीजै। अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥

दोहा
श्री गणेश  यह चालीसा   पाठ करें धर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै लहे जगत् सन्मान॥
सम्वत् अपन सहस्र दश ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण   चालीसा  भयो  मंगल  मूर्ति  गणेश॥


श्री गणेश सहस्त्रनामावली
ॐ गणपतये नमः ॥ ॐ गणेश्वराय नमः ॥ ॐ गणक्रीडाय नमः ॥ ॐ गणनाथाय नमः ॥
ॐ गणाधिपाय नमः ॥ ॐ एकदंष्ट्राय नमः ॥ ॐ वक्रतुण्डाय नमः ॥ ॐ गजवक्त्राय नमः ॥
ॐ मदोदराय नमः ॥ ॐ लम्बोदराय नमः ॥ ॐ धूम्रवर्णाय नमः ॥ ॐ विकटाय नमः ॥
ॐ विघ्ननायकाय नमः ॥ ॐ सुमुखाय नमः ॥ ॐ दुर्मुखाय नमः ॥ ॐ बुद्धाय नमः ॥
ॐ विघ्नराजाय नमः ॥ ॐ गजाननाय नमः ॥ ॐ भीमाय नमः ॥ ॐ प्रमोदाय नमः ॥
ॐ आनन्दाय नमः ॥ ॐ सुरानन्दाय नमः ॥ ॐ मदोत्कटाय नमः ॥ ॐ हेरम्बाय नमः ॥
ॐ शम्बराय नमः ॥ ॐ शम्भवे नमः ॥ ॐ लम्बकर्णाय नमः ॥ ॐ महाबलाय नमः ॥
ॐ नन्दनाय नमः ॥ ॐ अलम्पटाय नमः ॥ ॐ भीमाय नमः ॥ ॐ मेघनादाय नमः ॥
ॐ गणञ्जयाय नमः ॥ ॐ विनायकाय नमः ॥ ॐ विरूपाक्षाय नमः ॥ ॐ धीराय नमः ॥
ॐ शूराय नमः ॥ ॐ वरप्रदाय नमः ॥ ॐ महागणपतये नमः ॥ ॐ बुद्धिप्रियाय नमः ॥
ॐ क्षिप्रप्रसादनाय नमः ॥ ॐ रुद्रप्रियाय नमः ॥ ॐ गणाध्यक्षाय नमः ॥ ॐ उमापुत्राय नमः ॥
ॐ अघनाशनाय नमः ॥ ॐ कुमारगुरवे नमः ॥ ॐ ईशानपुत्राय नमः ॥ ॐ मूषकवाहनाय नः ॥
ॐ सिद्धिप्रदाय नमः ॥ ॐ सिद्धिपतये नमः ॥ ॐ सिद्ध्यै नमः ॥ ॐ सिद्धिविनायकाय नमः ॥
ॐ विघ्नाय नमः ॥ ॐ तुङ्गभुजाय नमः ॥ ॐ सिंहवाहनाय नमः ॥ ॐ मोहिनीप्रियाय नमः ॥
ॐ कटिंकटाय नमः ॥ ॐ राजपूत्राय नमः ॥ ॐ शकलाय नमः ॥ ॐ सम्मिताय नमः ॥
ॐ अमिताय नमः ॥ ॐ कूश्माण्डगणसम्भूताय नमः ॥ ॐ दुर्जयाय नमः ॥ ॐ धूर्जयाय नमः ॥
ॐ अजयाय नमः ॥ ॐ भूपतये नमः ॥ ॐ भुवनेशाय नमः ॥ ॐ भूतानां पतये नमः ॥
ॐ अव्ययाय नमः ॥ ॐ विश्वकर्त्रे नमः ॥ ॐ विश्वमुखाय नमः ॥ ॐ विश्वरूपाय नमः ॥
ॐ निधये नमः ॥ ॐ घृणये नमः ॥ ॐ कवये नमः ॥ ॐ कवीनामृषभाय नमः ॥
ॐ ब्रह्मण्याय नमः ॥ ॐ ब्रह्मणस्पतये नमः ॥ ॐ ज्येष्ठराजाय नमः ॥ ॐ निधिपतये नमः ॥
ॐ निधिप्रियपतिप्रियाय नमः ॥ ॐ हिरण्मयपुरान्तस्थाय नमः ॥ ॐ सूर्यमण्डलमध्यगाय नमः ॥
ॐ कराहतिध्वस्तसिन्धुसलिलाय नमः ॥ ॐ पूषदन्तभृते नमः ॥ ॐ उमाङ्गकेळिकुतुकिने नमः ॥
ॐ मुक्तिदाय नमः ॥ ॐ कुलपालकाय नमः ॥ ॐ किरीटिने नमः ॥ ॐ कुण्डलिने नमः ॥
ॐ हारिणे नमः ॥ ॐ वनमालिने नमः ॥ ॐ मनोमयाय नमः ॥ ॐ वैमुख्यहतदृश्यश्रियै नमः ॥
ॐ पादाहत्याजितक्षितये नमः ॥ ॐ सद्योजाताय नमः॥ ॐ स्वर्णभुजाय नमः॥ ॐ मेखलिन नमः॥
ॐ दुर्निमित्तहृते नमः ॥ ॐ दुस्स्वप्नहृते नमः ॥ ॐ प्रहसनाय नमः ॥ ॐ गुणिने नमः ॥
ॐ नादप्रतिष्ठिताय नमः॥ ॐ सुरूपाय नमः॥ ॐ सर्वनेत्राधिवासाय नमः॥ ॐ वीरासनाश्रयाय नमः॥
ॐ पीताम्बराय नमः॥ ॐ खड्गधराय नमः ॥ ॐ खण्डेन्दुकृतशेखराय नमः ॥ ॐ चित्राङ्कश्याम दशनाय नमः ॥
ॐ फालचन्द्राय नमः ॥ ॐ चतुर्भुजाय नमः ॥ ॐ योगाधिपाय नमः ॥ ॐ तारकस्थाय नमः ॥
ॐ पुरुषाय नमः ॥ ॐ गजकर्णकाय नमः ॥ ॐ गणाधिराजाय नमः ॥ ॐ विजयस्थिराय नमः ॥
ॐ गणपतये नमः ॥ ॐ ध्वजिने नमः ॥ ॐ देवदेवाय नमः॥ ॐ स्मरप्राणदीपकाय नमः॥
ॐ वायुकीलकाय नमः॥ ॐ विपश्चिद्वरदाय नमः॥ ॐ नादाय नमः॥ ॐ नादभिन्नवलाहकाय नमः॥
ॐ वराहवदनाय नमः॥ ॐ मृत्युञ्जयाय नमः॥ ॐ व्याघ्राजिनाम्बराय नमः॥ ॐ इच्छाशक्तिधराय नमः ॥
ॐ देवत्रात्रे नमः ॥ ॐ दैत्यविमर्दनाय नमः ॥ ॐ शम्भुवक्त्रोद्भवाय नमः ॥ ॐ शम्भुकोपघ्ने नमः॥
ॐ शम्भुहास्यभुवे नमः॥ ॐ शम्भुतेजसे नमः॥ ॐ शिवाशोकहारिणे नमः॥ ॐ गौरीसुखावहाय नमः॥
ॐ उमाङ्गमलजाय नमः॥ ॐ गौरीतेजोभुवे नमः॥ ॐ स्वर्धुनीभवाय नमः॥ ॐ यज्ञकायाय नमः ॥
ॐ महानादाय नमः ॥ ॐ गिरिवर्ष्मणे नमः ॥ ॐ शुभाननाय नमः ॥ ॐ सर्वात्मने नमः ॥
ॐ सर्वदेवात्मने नमः ॥ ॐ ब्रह्ममूर्ध्ने नमः ॥ ॐ ककुप्छ्रुतये नमः ॥ ॐ ब्रह्माण्डकुम्भाय नमः ॥
ॐ चिद्व्योमफालाय नमः॥ ॐ सत्यशिरोरुहाय नमः॥ ॐ जगज्जन्मलयोन्मेषनिमेषाय नमः॥ ॐ अग्न्यर्कसोमदृशे नमः॥
ॐ गिरीन्द्रैकरदाय नमः॥ ॐ धर्माय नमः ॥ ॐ धर्मिष्ठाय नमः ॥ ॐ सामबृंहिताय नमः ॥
ॐ ग्रहर्क्षदशनाय नमः॥ ॐ वाणीजिह्वाय नमः॥ ॐ वासवनासिकाय नमः॥ ॐ कुलाचलांसाय नमः॥
ॐ सोमार्कघण्टाय नमः॥ ॐ रुद्रशिरोधराय नमः॥ ॐ नदीनदभुजाय नमः॥ ॐ सर्पाङ्गुळिकाय नमः॥
ॐ तारकानखाय नमः॥ ॐ भ्रूमध्यसंस्थतकराय नमः॥ ॐ ब्रह्मविद्यामदोत्कटाय नमः॥ ॐ व्योमनाभाय नमः॥
ॐ श्रीहृदयाय नमः॥ ॐ मेरुपृष्ठाय नमः॥ ॐ अर्णवोदराय नमः॥ ॐ कुक्षिस्थयक्षगन्धर्वरक्षः किन्नरमानुषाय नमः॥

विशेष उपाय-
बुधवार की रात को गणेशजी का विधि-पूर्वक पूजन करने के बाद 12 नामों का जप 108 बार मोती या लाल चंदन की माला से करें। ऐसे करने से भगवान गणेश प्रसन्न होंगे और उनकी कृपा से आपकी समस्याओं को दूर होगी। नारद संहिता के अनुसार, गणेशजी के इन 12 नामों का  ध्यान करने से वे अपने भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और गणेश की कृपा से हर कामनाएं पूरी होने लगती है।
12 नाम हैं- सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र और गजानन

अगर कोई व्यक्ति आर्थिक तंगी से पीड़ित हैं, तो बुधवार के दिन भगवान गणेश को गाय का घी और गुड़ दोनों को मिलाकर पूर्ण श्रद्धा के साथ भोग लगाएं। ऐसा करने से घर परिवार में धन वृद्धि होने लगती है और गणेश जी की कृपा से सारे कार्य भी निर्विघ्न रूप से संपन्न होने लगते हैं।

गणपति के जन्म की लोककथा
एक लोककथा के अनुसार- "एक बार देवी पार्वती स्नान करने के लिए भोगावती नदी गयीं। उन्होंने अपने तन के मैल से एक जीवंत मूर्ति बनायी और उसका नाम 'गणेश' रखा। पार्वती ने उससे कहा- 'हे पुत्र! तुम द्वार पर बैठ जाओ और किसी पुरुष को अंदर मत आने देना।' कुछ देर बाद भगवान शिव वहाँ आए। द्वार पर पहरा दे रहे गणेश ने उन्हें देखा तो रोक दिया। इसे शिव ने अपना अपमान समझा। क्रोधित होकर उन्होंने गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया और भीतर चले गए। 

महादेव को नाराज़ देखकर पार्वती ने समझा कि भोजन में विलम्ब के कारण शायद वे नाराज हैं। उन्होंने तत्काल दो थालियों में भोजन परोसकर शिव को बुलाया। तब दूसरी थाली देखकर शिव ने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि दूसरी थाली किसके लिए है? पार्वती बोलीं, दूसरी थाली मेरे पुत्र गणेश के लिए है, जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है। क्या आपने आते वक्त उसे नहीं देखा? यह बात सुनकर शिव बहुत हैरान हुए। उन्होंने कहा, देखा तो था मैंने, लेकिन उसने मेरा रास्ता रोका था। इस कारण मैंने उसे उद्दंड बालक समझकर उसका सिर काट दिया। यह सुनकर पार्वती विलाप करने लगीं। तब पार्वती को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर बालक के धड़ से जोड़ दिया। 
इस प्रकार पार्वती पुत्र गणेश को पाकर प्रसन्न हो गयीं। उन्होंने पति तथा पुत्र को भोजन परोस कर स्वयं भोजन किया। यह घटना भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर घटित हुई थी, इसलिए यह तिथि पुण्य पर्व के रूप में मनाई जाती है।
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गणेश चतुर्थी के शुभारंभ के साथ घर औऱ पंडालों पर श्रीगणेश की स्थापना के बाद पूजन किया जाएगा। घरों में तो कई तरह से लोग सज्जा 
करते हैं, परन्तु बाहर गणेश पंडालों में अलग ही धूम देखने के लिए मिलती हैं। भारत के महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की धूम देखने के लिए मिलती हैं, तो वहीं पर देश के कई राज्यों में विशेष स्थान हैं, जहां पर गणेश उत्सव की अत्यधिक धूम होती है।

महाराष्ट्र
गणेश जी का उत्सव सर्वाधिक महाराष्ट्र में सबसे मनाया जाता हैं। हर घरों में बप्पा विराजे जाते हैं। अनेक कलात्मक तरीकों से पंडाल सजाए जाते हैं। महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में लालबागचा राजा, जीजे विद्यापीठ, और दादर गणेश पंडाल सर्वाधिक प्रसिद्ध है, जहां गणेशजी की विशाल प्रतिमाएं विराजी जाती हैं।

गुजरात
गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में गणेशोत्सव की धूम सबसे ज्यादा रहती हैं महाराष्ट्र से लगा हुआ यह राज्य गणेश उत्सव के लिए भी जाना जाता है। यहां पर सबसे मशहूर पंडालों में शाहपुर का राजा, त्रिकोण बाग का राजा शामिल हैं। सूरत के गणेश पंडाल की भव्यता और भी अनोखी होती है।

गोवा -इस राज्य में भी गणेश उत्सव का पर्व देखते ही बनता हैं यहां पर राज्य के पारंपरिक गोवाई शैली की झलक पंडालों में नजर आती हैं। पंडालों में गोवा की संस्कृति और परंपराओं की झलक देखने के लिए कई भक्त पहुंचते है। यहां पर मशहूर पंडालों में गणेशपुरी और खंडोला प्रसिद्ध है।

कर्नाटक
दक्षिण भारत में भी गणेश उत्सव की झलक देखने के लिए मिलती हैं। कर्नाटक की राजधानी बंगलुरु में विभिन्न थीम पर पंडाल सजाए जाते है। सबसे अधिक पंडालों में बेसवानगुड़ी और हुबली के गणेश पंडालों की भव्यता इस समय देखते ही बनती है।

तमिलनाडु
इस राज्य की राजधानी चेन्नई में गणेश उत्सव की अच्छी खासी धूम देखने के लिए मिलती है। यहां पर गणेश पंडालों का निर्माण पारंपरिक तमिल शैली में किया जाता है तो वहीं पर संस्कृति और परंपराओं का प्रदर्शन किया जाता है।

हैदराबाद
गणेशोत्सव की विशेष उत्साह हैदराबाद में भी देखने के लिए मिलती हैं, जहाँ सबसे बड़े पंडालों में सम्मिलित खैरताबाद पंडाल है। इसके अलावा अन्य अनेक स्थानों पर गणेश पंडाल लगाए जाते हैं, जिनकी भव्यता आप देखते ही रह जाएंगे। चैत्नयपुरी, नई नागोल और दुर्गम चेरुवू में भी धूम होती है।

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ॐ गं गणपतये नमः
ऐसा शास्त्रोक्त वचन हैं, गणेशजी का यह मंत्र चमत्कारिक और तत्काल फल देने वाला मंत्र हैं। इस मंत्र का पूर्ण भक्तिपूर्वक जप करने से समस्त बाधाएं दूर होती हैं। षडाक्षरी का जप आर्थिक प्रगति व समृद्धि दायक है।

ॐ वक्रतुण्डाय हुम्
किसी के द्वारा की गई तांत्रिक क्रिया को नष्ट करने के लिए, विविध कामनाओं कि शीघ्र पूर्ति के लिए उच्छिष्ट गणपति की साधना कि जाती हैं। उच्छिष्ट गणपति के मंत्र का जाप अक्षय भंडार प्रदान करने वाला है।

ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा
आलस्य, निराशा, कलह, विघ्न दूर करने के लिए विघ्नराज रूप की आराधना का यह मंत्र जपे ।

ॐ गं क्षिप्रप्रसादनाय नम:
मंत्र जाप से कर्म बंधन, रोग निवारण, कुबुद्धि, कुसंगति, दुर्भाग्य, से मुक्ति होती हैं। समस्त विघ्न दूर होकर धन, आध्यात्मिक चेतना के विकास एवं आत्मबल की प्राप्ति के लिए हेरम्ब गणपति का मंत्र जपे।

ॐ गूं नम:
रोजगार की प्राप्ति व आर्थिक समृद्धि प्राप्त होकर सुख सौभाग्य प्राप्त होता है।

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरदे नमः। 
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात
लक्ष्मी प्राप्ति एवं व्यवसाय बाधाएं दूर करने हेतु उत्तम माना गया है।

ॐ गीः गूं गणपतये नमः स्वाहा
इस मंत्र के जाप से समस्त प्रकार के विघ्नों एवं संकटों का नाश होता है।

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देश में बदलते राजनितिक-आर्थिक नीतियों एवं भविष्य के संभावित चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए प्रोजेक्ट के उद्देश्य हैं। सहयोग अथवा प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी हेतु इच्छुक धर्मनिष्ठ संत, सम्पन्न-सक्षम व्यक्ति आदि संपर्क करें +91-8109107075 वाट्सएप
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ॐ श्री गं सौभाग्य गणपत्ये वर वरद सर्वजनं में वशमानय स्वाहा
विवाह में आने वाले दोषों को दूर करने वालों को त्रैलोक्य मोहन गणेश मंत्र का जप करने से शीघ्र विवाह व अनुकूल जीवनसाथी की प्राप्ति होती है ।

ॐ वक्रतुण्डेक द्रष्टाय क्लींहीं श्रीं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मं दशमानय स्वाहा ।
इस मंत्रों के अतिरिक्त गणपति अथर्वशीर्ष संकटनाशक, गणेश स्त्रोत, गणेश कवच, संतान गणपति स्तोत्र, ऋणहर्ता गणपति स्त्रोत मयूरेश स्त्रोत, गणेश चालीसा का पाठ करने से गणेश जी की शीघ्र कृपा प्राप्त होती है ।

ॐ वर वरदाय विजय गणपतये नमः
इस मंत्र के जाप से मुकदमे में सफलता प्राप्त होती हैं।

ॐ गं गणपतये सर्वविघ्न हराय सर्वाय सर्वगुरवे लम्बोदराय ह्रीं गं नमः
वाद-विवाद, कोर्ट कचहरी में विजय प्राप्ति, शत्रु भय से छुटकारा पाने हेतु उत्तम।

ॐ नमः सिद्धिविनायकाय सर्वकार्यकर्त्रे सर्वविघ्न प्रशमनाय सर्व राज्य वश्यकारनाय सर्वजन सर्व स्त्री पुरुषाकर्षणाय श्री ॐ स्वाहा

इस मंत्र के जाप को यात्रा में सफलता प्राप्ति हेतु प्रयोग किया जाता हैं।

ॐ हुं गं ग्लौं हरिद्रा गणपत्ये वरद वरद सर्वजन हृदये स्तम्भय स्वाहा
यह हरिद्रा गणेश साधना का चमत्कारी मंत्र हैं।

ॐ ग्लौं गं गणपतये नमः
गृह क्लेश (घर में लड़ाई-झगड़ा) निवारण एवं घर में सुखशान्ति कि प्राप्ति हेतु।

ॐ गं लक्ष्म्यौ आगच्छ आगच्छ फट्
इस मंत्र के जाप से दरिद्रता का नाश होकर, धन प्राप्ति के प्रबल योग बनने लगते हैं।

ॐ गणेश महालक्ष्म्यै नमः
व्यापार से सम्बन्धित बाधाएं एवं परेशानियां निवारण एवं व्यापर में निरंतर उन्नति हेतु।

ॐ गं रोग मुक्तये फट्
भयानक असाध्य रोगों से परेशानी होने पर उचित ईलाज कराने पर भी लाभ प्राप्त नहीं हो रहा हो, तो पूर्ण विश्वास सें मंत्र का जाप करने से या जानकार व्यक्ति से जाप करवाने से धीरे-धीरे रोगी को रोग से छुटकारा मिलता हैं।

ॐ अन्तरिक्षाय स्वाहा

इस मंत्र के जाप से मनोकामना पूर्ति के अवसर प्राप्त होने लगते हैं।

गं गणपत्ये पुत्र वरदाय नमः
इस मंत्र के जाप से उत्तम संतान कि प्राप्ति होती हैं।

ॐ वर वरदाय विजय गणपतये नमः
इस मंत्र के जाप से मुकदमे में सफलता प्राप्त होती हैं।

ॐ श्री गणेश ऋण छिन्धि वरेण्य हुं नमः फट

यह ऋण हर्ता मंत्र हैं। इस मंत्र का नियमित जाप करना चाहिए। इससे गणेश जी प्रसन्न होते है और साधक का ऋण चुकता होता है। कहा जाता है कि जिसके घर में एक बार भी इस मंत्र का उच्चारण हो जाता है उसके घर में कभी भी ऋण या दरिद्रता नहीं आ सकती।

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जप विधि
प्रात: स्नानादि शुद्ध होकर कुश या ऊन के आसन पर पूर्व की और मुख होकर बैठें। सामने गणेशजी का चित्र, यंत्र या मूर्ति स्थापित करें फिर षोडशोपचार या पंचोपचार से भगवान गजानन का पूजन कर प्रथम दिन संकल्प करें।
इसके पश्चात, भगवान गणेश का एकाग्रचित्त से ध्यान करें। 
नैवेद्य में यदि संभव हो तो बूंदी या बेसन के लड्डू का भोग लगाये नहीं तो गुड़ का भोग लगाये। 
गणेशजी के चित्र या मूर्ति के सम्मुख शुद्ध घी का दीपक जलाएं। 
प्रतिदिन न्यूनतम 108 माला का जाप करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती हैं। यदि एक दिन में 108 माला संभव न हो तो 54, 27, 18 या 9 मालाओं का भी जाप किया जा सकता है। मंत्र जाप करने में यदि आप असमर्थ हो, तो किसी ब्राह्मण को उचित दक्षिणा देकर उनसे जाप करवाया जा सकता हैं।
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