#नवरात्रि : चमत्कारी है "सिद्ध कुंजिका स्तोत्र", इसके पाठ से दूर होती हैं समस्याएं


श्रीरुद्रयामल के शिव-पार्वती संवाद से "स्तोत्र" के मन्त्र हैं स्वतः सिद्ध
- सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के पाठ के हैं चमत्कारी प्रभाव
- भूलवश व्रत टूट जाए, तो क्या करें ?
धर्म नगरी / DN News 
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श्रीरुद्रयामल के गौरी तंत्र में शिव-पार्वती संवाद संवाद है, जिनमें "सिद्ध कुंजिका स्तोत्र" हैं। स्तोत्र के मन्त्र स्वतः सिद्ध हैं। इसलिए इन्हें अलग से सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। यह अद्भुत स्तोत्र है, जिसका प्रभाव बहुत चमत्कारी है।  

कुंजिका स्तोत्र पाठ : सरल व  प्रभावशाली
श्रीरुद्रयामल के गौरी तंत्र में शिव पार्वती संवाद के नाम से यह स्तोत्र उदधृत है. श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ थोड़ा कठिन है, परन्तु कुंजिका स्तोत्र का पाठ सरल भी है और अधिक प्रभावशाली भी है। मात्र कुंजिका स्तोत्र के पाठ से सप्तशती के सम्पूर्ण पाठ का फल मिल जाता है।

"सिद्ध कुंजिका स्तोत्र" के मंत्र स्वतः सिद्ध किए हुए हैं, इसलिए इन्हें अलग से सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है।स्तोत्र के प्रभाव बहुत चमत्कारी है। इसके नियमित रूप से पाठ से समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है। नवरात्र में यदि इसका पाठ किया जाए तो और शुभ होगा।
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सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के लाभ-
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ बहुत प्रभावी है. व्यक्ति को वाणी और मन की शक्ति मिलती है. व्यक्ति के अंदर असीम ऊर्जा का संचार होता है. व्यक्ति को खराब ग्रहों के प्रभाव से छुटकारा मिलता है
 जीवन में धन समृद्धि मिलती है. तंत्र-मंत्र की नकारात्मक ऊर्जा का असर नहीं होता है

कैसे 
करें सिद्ध कुंजिका स्तोत्र -
सायंकाल या रात्रि के समय इसका पाठ करें तो उत्तम होगा देवी के समक्ष एक दीपक जलाएं इसके बाद लाल आसन पर बैठें लाल वस्त्र धारण कर सकें तो और भी उत्तम होगा इसके बाद देवी को प्रणाम करके संकल्प लें, फिर कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने वाले साधक को पवित्रता का पालन करना चाहिए। अंत में देवीजी से किसी प्रकार की त्रुटि या गलती हेतु क्षमा मांगते हुए "क्षमा प्रार्थना" अवश्य करें।  #Dharm_Nagari_  
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सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ परम कल्याणकारी है। इस सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ मनुष्य के जीवन में आ रही समस्या और विघ्नों को दूर करने वाला है। माँ दुर्गा के इस पाठ का जो मनुष्य विषम परिस्थितियों में वाचन करता है उसके समस्त कष्टों का अंत होता है। भगवान शिव ने पार्वती से कहा है- दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ का जो फल है वह मात्र कुंजिकास्तोत्र के पाठ करने से प्राप्त हो जाता है। 

सिद्ध कुंजिकास्तोत्र का मंत्र सिद्ध किया हुआ है इसलिए इसे सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती है। जो भी साधक संकल्प लेकर इसके मंत्रों का जप करते हुए दुर्गा मां की आराधना करते हैं मां उनकी इच्छित मनोकामना पूर्ण करती हैं। इसमें ध्यान रखने योग्य बात यह है कि कुंजिकास्तोत्र के मंत्रों का जप किसी को हानि पहुंचाने के लिए नहीं करना चाहिए। किसी को क्षति पहुंचाने के लिए सिद्ध कुंजिकास्तोत्र के मंत्र की साधना करने पर साधक स्वयं का ही अहित करता है। श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र-

प्रथम शिव उवाच- 
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्। येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: भवेत्।।1।। 
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्। न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।2।। 
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्। अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।3।। 
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति। मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्। पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।4।। 

अथ मंत्र- 
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।" 
।।इति मंत्र:।। 

नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि। 
नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन।।1।। 

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन।।2।। 

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे। 
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।3।। 

क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते। 
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।।4।। 

विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण।।5।। 

धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी। क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।। 

हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी। भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7।। 

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।। पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।। 8।। 

सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे।। इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।।9।। 
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति। यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्। न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।। 
।।इति श्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्।।
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सुनें- श्री सिद्ध कुंजिका स्तोत्र  

भूलवश कभी व्रत टूट जाए, तो क्या करें ?
कई बार संकल्प लेने के पश्चात भूलवश व्रत टूट जाने की स्थिति में भक्त चिंतित हो जाते हैं उन्हें लगता है, उनकी आराधना अधूरी रह गई अगर आप से भी भूलवश ऐसा हो जाए, तो आप चिंतित न हों। पुराणों में इसके उपाय बताए गए हैं, जिनका पालन करके आप पर देवी-देवता की कृपा बनी रहेगी भूलवश या किसी कारण से व्रत टूट जाने की स्थिति में क्या करें- 

- अगर व्रत काल में आपका व्रत टूट जाता है या भूलवश कोई गलती हो जाती है, तो सबसे पहले उस देवी-देवता से क्षमा मांग लें, जिनके भी लिए आपने व्रत रखा है,

- ग्रंथों के अनुसार, व्रत टूट जाने की स्थिति में हवन करवाना चाहिए इस काल में उन देवी-देवता से क्षमा मांगनी चाहिए, जिनके लिए आपने व्रत रखा था,

- देवी-देवता की मूर्ति को दूध, दही, शहद और शक्कर से स्नान करना चाहिए इसके बाद 16 तरह की सामग्रियों के साथ मूर्ति की पूजा करनी चाहिए,

- व्रत टूटने की स्थिति में दान-पुण्य अवश्य करें। इसके लिए पहले किसी पंडितजी से सुझाव अवश्य ले लें
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