श्राद्ध - पितृ पक्ष विशेष : श्राद्ध का आशय है श्रद्धा से किया गया कृत्य या कार्य, इसमें
(W.app- 8109107075 -न्यूज़, कवरेज, विज्ञापन व सदस्यों हेतु)
हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार केवल पितृ पक्ष में ही नहीं, बल्कि अन्य अवसरों पर भी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। "धर्म सिंधु" के अनुसार श्राद्ध करने के 96 अवसर बताए गए हैं। एक साल की 12 अमावस्याएं, चार पुणादि तिथियां, 14 मन्वादि तिथियां, 12 संक्रांतियां, 12 वैधृति योग, 12 व्यतिपात योग, 16 पितृपक्ष, पांच अष्टका श्राद्ध, पांच अन्वष्टका श्राद्ध तथा पांच पूर्वेद्युः श्राद्ध।
कुल मिलाकर श्राद्ध के ये 96 अवसर हैं। इसके अतिरिक्त हमारे धर्मशास्त्रों में श्राद्ध के अनेक भेद बताए गए हैं। उनमें "मत्स्य पुराण" में तीन प्रकार के श्राद्ध, "यम स्मृति" में पांच प्रकार के श्राद्ध तथा "भविष्य पुराण" में बारह प्रकार के श्राद्धों का उल्लेख मिलता है। ये बारह श्राद्ध हैं-
कुल मिलाकर श्राद्ध के ये 96 अवसर हैं। इसके अतिरिक्त हमारे धर्मशास्त्रों में श्राद्ध के अनेक भेद बताए गए हैं। उनमें "मत्स्य पुराण" में तीन प्रकार के श्राद्ध, "यम स्मृति" में पांच प्रकार के श्राद्ध तथा "भविष्य पुराण" में बारह प्रकार के श्राद्धों का उल्लेख मिलता है। ये बारह श्राद्ध हैं-
----------------------------------------------
प्रयागराज महाकुंभ-2025 में "सूचना केंद्र, हेल्प-लाइन सेवा" के संचालन, "धर्म नगरी" के विशेष अंकों के प्रकाशन, धर्मनिष्ठ व राष्ट्रवादी साधु-संतों धर्माचार्यं आदि को मीडिया-पीआर से जुडी सेवा देने हेतु एक बड़े प्रोजेक्ट / सेवा-कार्य हेतु हमें सहयोग की आवश्यकता है। देश में बदलते राजनितिक-आर्थिक नीतियों एवं भविष्य के संभावित चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए प्रोजेक्ट के उद्देश्य हैं। सहयोग अथवा प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी हेतु इच्छुक धर्मनिष्ठ संत, सम्पन्न-सक्षम व्यक्ति कृपया निःसंकोच संपर्क करें +91-8109107075 वाट्सएप
----------------------------------------------
नैमित्तिक श्राद्ध- पितृपक्ष में किया जाने वाला श्राद्ध 'नैमित्तिक श्राद्ध' कहलाता है।
काम्य श्राद्ध- अपनी किसी विशिष्ट कामना की मूर्ति के लिए किए जाने वाला श्राद्ध 'काम्य श्राद्ध' की श्रेणी में आता है।
वृद्धि श्राद्ध- मुंडन, उपनयन, विवाह आदि के अवसर पर किया जानेवाला श्राद्ध 'वृद्धि श्राद्ध' कहलाता है। इसे नान्दीमुख भी कहते हैं।
पार्वण श्राद्ध- अमावस्या या पर्व के दिन किए जानेवाले श्राद्ध को 'पार्वण श्राद्ध' कहा जाता है।
सपिंडन श्राद्ध- मृत्यु के बाद प्रेतगति से मुक्ति के लिए मृतक के पिंड को पितरों के पिंड में मिलाना 'सपिंडन श्राद्ध' है।
गोष्ठी श्राद्ध- गौशाला में वंशवृद्धि के लिए किया जाने वाला श्राद्ध 'गोष्ठी श्राद्ध' है।
शुद्धयर्थ श्राद्ध- प्रायश्चित के रूप में अपनी शुद्धि के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराना 'शुद्धयर्थ श्राद्ध' कहलाता है।
कर्माग श्राद्ध- गर्भाधान, सीमंत, पुंसवन संस्कार के समय किया जाने वाला श्राद्ध कर्म 'कर्माग श्राद्ध' की श्रेणी में आता है।
दैविक श्राद्ध- सप्तमी तिथियों में हविष्यान्न से देवताओं के लिए किया जाने वाला श्राद्ध 'दैविक श्राद्ध' होता है।
यात्रार्थ श्राद्ध- तीर्थयात्रा पर जाने से पहले और वहां पर किये जाने वाले श्राद्ध को 'यात्रार्थं श्राद्ध' कहते हैं।
पुष्ट्यर्थ श्राद्ध- अपने वंश और व्यापार आदि . की वृद्धि के लिए किया जाने वाला 'पुष्ट्यर्थ श्राद्ध' कहलाता है।
---------------------------------------------
संबंधित लेख / ये भी पढ़ें-
श्राद्ध या पितृ पक्ष में ध्यान रखें... श्राद्ध के प्रकार, पितृ-पक्ष की सावधानियां...
☟
http://www.dharmnagari.com/2021/09/Sraddh-Paksha-Me-Inka-Rakhen-Dhyan.html
श्राद्ध के प्रकार, पितृ-पक्ष की सावधानियां...
☟
http://www.dharmnagari.com/2021/09/Sraddh-Paksha-Me-Inka-Rakhen-Dhyan.html
राष्ट्रवादी हिन्दुओं से- अपने जिले से "धर्म नगरी" से जुड़ें। पार्ट-टाइम अपनी सुविधानुसार सप्ताह में केवल 3-4 दिन 1-2 घंटे काम करें और नियमानुसार कमीशन या वेतन पाएं। नौकरी, व्यापार करने वाले हिन्दुत्व-प्रेमी एवं राष्ट्रवादी विचारधारा वाले भी स्वेच्छा जुड़ें। योग्यता- राष्ट्रवाद एवं सक्रियता। सम्पर्क करें 6261868110 प्रबंध सम्पादक
---------------------------------------------
भविष्य पुराण में मुनि विश्वामित्र का दृष्टांत देकर 12 प्रकार के श्राद्धों का वर्णन किया गया है। विष्णु पुराण और गरुड़ पुराण में भी श्राद्ध संबंधी संदर्भ हैं। ऐसी भी मान्यता है कि पितरों की तृप्ति और मुक्ति के निमित्त दो यज्ञ किए जाते हैं, जो पिंड पितृयज्ञ तथा श्राद्ध कहलाते हैं।
इसके अलावा पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करने के साथ-साथ 'पंचबलि' या 'पंच ग्रास' देने का भी विधान है, जिसमें ब्राह्मण भोज के साथ गाय, कुत्ता, कौआ, चींटी और देवताओं के निमित्त भी भोजन निकाला जाता है। इनमें-
गाय 'पृथ्वी' तत्व,
कुत्ता 'जल' तत्व,
कौआ 'वायु तत्व',
चींटी 'अग्नि' तत्व और
देवता 'आकाश' तत्व के प्रतीक हैं।
इस प्रकार इन पांचों को आहार देकर हम प्रकृति के पाँच तत्वों के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं। पितृपक्ष में अपने पितरों के नाम से उनकी तिथि पर श्रीमद् भागवत गीता का पाठ करना चाहिए।
---------------------------------------------
राष्ट्रवादी हिन्दुओं से- अपने जिले से "धर्म नगरी" से जुड़ें। पार्ट-टाइम अपनी सुविधानुसार सप्ताह में केवल 3-4 दिन 1-2 घंटे काम करें और नियमानुसार कमीशन या वेतन पाएं। नौकरी, व्यापार करने वाले हिन्दुत्व-प्रेमी एवं राष्ट्रवादी विचारधारा वाले भी स्वेच्छा जुड़ें। योग्यता- राष्ट्रवाद एवं सक्रियता। सम्पर्क करें 6261868110 प्रबंध सम्पादक
☞ "धर्म नगरी" को मिलने वाले शुभकामना या किसी प्रकार के सहयोग / विज्ञापन से हम संबंधित व्यक्ति, आश्रम, संस्था के नाम से प्रतियां भेजते हैं, क्योंकि "धर्म नगरी" का प्रकाशन पूर्णतः अव्यावसायिक है।
☞ प्रकाशन में आर्थिक है, इसलिए हमें राष्ट्रवादी व सनातन-प्रेमियों से आर्थिक सहयोग की अपेक्षा है। "धर्मं नगरी" तथा "DN News" के विस्तार एवं अयोध्या, वृन्दावन, हरिद्वार में स्थाई कार्यालय खोलना एवं स्थानीय रिपोर्टर / प्रतिनिधि नियुक्त करना है।
Post a Comment