पितृ पक्ष : श्राद्ध करना भूल गए या पितरों की तिथि पता नहीं ! तो सर्वपितृ अमावस्या को ये करें

सर्वपितृ अमावस्या को भूलकर भी किसी का न करें अपमान  

भोजन पकाते व खिलाते समय लोहे के पात्र का प्रयोग न करें  
 इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा अवश्य करें, निर्धन को भोजन कराएं

धर्म नगरी / DN News 
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सर्वपितृ अमावस्या (दो अक्टूबर) पर उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु तिथि के बारे में पता नहीं हो, अपने पितरों की तिथि पर श्राद्ध करना भूल गए हों या किसी कारणवश पितृपक्ष के अन्य दिनों में श्राद्ध न किया जा सका हो। आश्विन माह की कृष्ण अमावस्या को "सर्वपितृ मोक्ष श्राद्ध अमावस्या" अथवा महालय विसर्जन या महालय समापन के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन पितृपक्ष का अंतिम दिन होता है। 

इस दिन पितरों के नाम का श्राद्ध और तर्पण करने का विशेष महत्व है, ऐसा करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और सुख-शांति और समृद्धि में निरंतर वृद्धि होती रहती है। इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा अवश्य करनी चाहिए। मान्यता है, अमावस्या के दिन पीपल में पितरों का वास होता है। इसलिए इस दिन पीपल के पेड़ के नीचे दीपक अवश्य जलाना चाहिए।

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पितृ पक्ष के अंतिम दिन(सर्वपितृ अमावस्या को) सूर्य ग्रहण भी लगेगा। सर्वपितृ अमावस्या के दिन तर्पण करने का विशेष महत्व है, ऐसा करने से पितर प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि और सफलता का आशीर्वाद देते हैं, व्यक्ति को पितृ दोष (अगर है) से भी मुक्ति मिलती है। आप सूर्य ग्रहण के कारण किसी पवित्र नदी के पास नहीं जा पा रहे हैं, तो इस विधि के साथ घर पर ही तर्पण कर सकते हैं।

दो अक्टूबर के दिन साल का अंतिम सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है। सूर्य ग्रहण बुधवार (दो अक्टूबर) रात 9:13 बजे लगेगा और इसका समापन सुबह 3:17 बजे पर होगा। यद्यपि, यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, इसलिए इस ग्रहण का सूतक काल भी मान्य नहीं होगा। साथ ही इस ग्रहण का कोई भी धार्मिक महत्व नहीं होगा, मंदिरों के पट भी बंद नहीं किए जाएंगे। साथ ही श्राद्ध कर्म, पिंडदान, तर्पण पर इस ग्रहण का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ने वाला है। अतः आप जिस तरह सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध करते हैं, वैसे ही सब कार्य करें। 

अमावस्या तिथि एक अक्टूबर 2024 रात्रि 9:39 बजे लगेगी एवं समापन तीन अक्टूबर को रात 12:18 बजे होगी। ऐसे में सर्वपितृ अमावस्या बुधवार (दो अक्टूबर) को होगी। इस दिन शुभ मुहूर्त इस प्रकार रहने वाले हैं-
कुतुप मुहूर्त- प्रातः 11:46 बजे से 12:34 बजे तक
रौहिण मुहूर्त- दोपहर 12:34 बजे से 1:21 बजे तक
अपराह्न काल- दोपहर 1:21 बजे से दोपहर 3:43 बजे तक
कर्मकांडी विद्वानों के अनुसार, इस दिन पितरों को तर्पण करने प्रातः 6:30 बजे से 7:30 बजे तक का समय शुभ माना जाता है। वहीं, आप पितरों का श्राद्ध 12 से लेकर 1 बजे तक के बीच में कर सकते हैं।
 
सर्वपितृ अमावस्या पर पितरों को विदाई करते समय तर्पण करने का विशेष महत्व है। जिस तरह भोजन करने के बाद पानी की आवश्यकता होती है, उसी तरह पितरों को पानी पिलाने की प्रक्रिया को तर्पण कहा जाता है। तर्पण के लिए प्रायः लोग गया, ब्रह्मकपाल, हरिद्वार, प्रयागराज आदि जगहों पर जाते हैं, लेकिन सूर्य ग्रहण होने की वजह से अगर आप इन पवित्र स्थलों पर नहीं जा पा रहे हैं तो अपने शहर या गांव की पवित्र नदी या सरोवर के पास भी आप तर्पण कर सकते हैं। अगर आप वहां जाने में भी असमर्थ हैं तो घर पर भी तर्पण विधि को संपन्न किया जा सकता है।

इस विधि से घर पर करें तर्पण
सर्वपितृ अमावस्या पर पितरों पर को तर्पण करने के लिए पीतल या स्टील की परात लेकर उसमें जल, थोड़े काले तिल और दूध भी डाल लें। परात और अन्य खाली बर्तन को अपने पास रख लें। इसके बाद दोनों हाथों के अंगूठे और तर्जनी उंगली के मध्यम दूर्वा या कुश लेकर अंजलि बना लें यानी दोनों हाथों को मिलाकर उसमें जल को भर लें। अब अंजलि से भरा हुए जल को खाली बर्तन में डाल दें। खाली बर्तन में जल डालते समय पितरों के लिए कम से कम तीन बार अंजलि से तर्पण करें। इस तरह आप सर्वपितृ अमावस्या पर घर पर ही तर्पण कर सकते हैं।

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अगर आप पितृपक्ष में श्राद्ध कर चुके हैं तो भी सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण करना जरूरी होता। सभी ज्ञात-अज्ञात पितरों हेतु इस दिन निश्चित ही श्राद्ध करना चाहिए। इस दिन आप अपने पितरों से क्षमा मांगते हुए उनका आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु पाठ कर सकते हैं।

पितृदोष निवारण में "पितृ सूक्तम् पाठ" अत्यंत चमत्कारी मंत्र पाठ है। सर्वपितृ अमावस्या के दिन विधिवत रूप से श्राद्ध करें और यह पाठ पढ़ें। श्राद्ध पक्ष में पितृ-सूक्त का पाठ संध्या के समय तेल का दीपक जलाकर करने से पितृदोष की शांति होती है, शुभ फल की प्राप्ति होती है और सर्वबाधा दूर होकर उन्नति की प्राप्ति होती है। इसे ही पितृ शांति पाठ भी कहते हैं। संपूर्व श्राद्ध पक्ष या सर्वपितृ अमावस्या को रूचि कृत "पितृ स्तोत्र" का पाठ भी किया जाता है। इसे ही पितृ स्तोत्र का पाठ भी कहते हैं। अथ पितृस्तोत्र-

सर्वपितृ अमावस्या पर ये न करें  
सर्वपितृ अमावस्या के दिन घर आए किसी भी व्यक्ति व जानवर को खाली हाथ नहीं लौटाना चाहिए। निर्धन एवं जरूरतमंद को इस दिन खाना खिलाना चाहिए। भूलकर भी किसी का भी अपमान नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से पितर रुष्ट हो जाते हैं और पितृ-दोष भी लगता है। इस दिन तामसिक भोजन करने से बचना चाहिए। मसूर दाल, अलसी आदि चीजों का सेवन भी नहीं करना चाहिए।

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पितृ दोष के संकेत-
- घर में अकस्मात मृत्यु हो रही है, तो इसका कारण पित्तरों का श्राद्धवत तर्पण न होना होता है।
- वंशवृद्धि नहीं हो रही है, तो इसका कारण पित्तरों की विस्मृति होता है।
- भूमि की हानि हो रही है, तो इसका कारण पूर्वजों के द्वारा किये शुभ कामों की आपके द्वारा निंदा होती है।
- रोजगार में समस्या आ रही है, तो यह धर्म विरुद्ध आचरण पितृ दोष की श्रेणी में आता है।
- मान-सम्मान में कमी हो रही है, तो यह गौ हत्या समरूप पितृदोष है।
- लगातार बीमार रहते हैं, तो यह नदी / कूप जल में मलमूत्र विसर्जन पितृदोष है।
- अपमान का सामना करना पड़ रहा है, तो यह अमावस्या संभोग पितृदोष का कारण है।
- घर में किसी भी प्रकार की वृद्धि नहीं होती है, तो यह भ्रूण हत्या पितृदोष का कारण है।

पितृ दोष निवारण के उपाय- 
किसी व्यक्ति की कुंडली में प्रबल पितृ-दोष हो, तो उन्हें पितरों का तर्पण अवश्य करना चाहिए। तर्पण मात्र से ही हमारे पितृ प्रसन्न होते हैं। वे हमारे घरों में आते हैं और हमको आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

कुंडली में यदि पितृ दोष हो, तो इन 16 दिनों में तीन बार एक उपाय करिए। सोलह बताशे लीजिए। उन पर दही रखिए और पीपल के वृक्ष पर रख आइये। इससे पितृ दोष में राहत मिलेगी। यह उपाय पितृ पक्ष में तीन बार करना है।

दूरदराज में रहने वाले, सामग्री उपलब्ध नहीं होने, तर्पण की व्यवस्था नहीं हो पाने पर एक सरल उपाय के माध्यम से पितरों को तृप्त किया जा सकता है। दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके खड़े हो जाइए। अपने दाएं हाथ के अंगूठे को पृथ्वी की ओर करिए। 11 बार पढ़ें ‘ऊं पितृदेवताभ्यो नम:। ऊं मातृ देवताभ्यो नम:।।’


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क्या करें,  क्या नहीं 
- श्राद्ध के निमित्त आये ब्राह्मणों को भोजन पकाते व खिलाते समय लोहे के पात्र का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- श्राद्ध पक्ष में मांस एवं मदिरा का सेवन कदापि न करें

गाय का दान श्राद्ध-पक्ष में श्रेष्ठ माना गया है। यदि पितृों के निमित्त इस अवधि में गो दान किया जाये तो पितृगणों को विष्णु-लोक प्राप्त होता है।
- पितृ पक्ष में "पितृसूक्त" का पाठ करने से पितृगण अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। ब्राह्मण भोजन के समय पितृसूक्त का पाठ करने से इसका तुरन्त फल प्राप्त होता है। पितृ-पक्ष में निम्न (मंत्र"पितृ गायत्री" नित्य पाठ करना चाहिए।
ऊँ देवताभ्य: पितृभ्यच्क्ष महायोगिभ्य एव च।
नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:।।

- शास्त्रनुसार, पितृगणों का मुख सुई की नोक के बराबर  है। अतः पितृ गण अधिकांशत: असंतिृप्त व भूखे-प्यासे रहते हैं। श्राद्ध पक्ष में, नान्दी श्राद्ध के समय पितृगणों का मुख ऊखल के समान बड़ा हो जाता है। ऐसे समय में उनके निमित्त जो भी भोज्य सामग्री प्रदान की जाती है, वह पूर्णरूपेण उन्हें प्राप्त होती है।
- यदि किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु हुई हो या अपने पितरों के मोक्ष हेतु पितृ-पक्ष सर्वश्रेष्ठ है।
पिता का श्राद्ध ज्येष्ठ पुत्र को ही करना चाहिए। स्मृति ग्रन्थों के अनुसार पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र, दौहित्र, पत्नी, भाई, भतीजा, पिता, माता, पुत्र-वधु, बहन, भांजा तथा सपिण्डजनों को श्राद्ध करने का अधिकार है। यथासम्भव पुरूष को ही श्राद्ध करना चाहिए।
- श्राद्ध से सम्बन्धित पूजा एवं कार्यों में चन्दन, खस और कपूर की गंध को उत्तम बताया गया है, परन्तु लाल चन्दन का प्रयोग कदापि नहीं करना चाहिए। इसके स्थान पर सफेद चन्दन का प्रयोग करना चाहिए। गंधहीन पुष्पों, उग्र-गंध वाले पुष्पों, काले या नीले रंग के पुष्पों अथवा किसी अशुद्ध स्थान पर उत्पन्न हुये पुष्पों का प्रयोग कदापि नहीं करना चाहिए।

- सब्जी या सलाद आदि बनाते समय (श्राद्ध में) बैंगन का निषेध है। इसके अतिरिक्त उड़द, मसूर, अरहर, गाजर, लौकी, शलजम, हींग, प्याज, लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिंघाड़ा, जामुन, कुल्थी, महुआ, अल्सी एवं चना यह वस्तुयें भी श्राद्ध में वर्जित होती हैं।

- श्राद्ध से केवल पितृगण ही प्रसन्न नहीं होते बल्कि जो व्यक्ति श्राद्ध करता है, वह चराचर रूप में विद्यमान सभी सूक्ष्म देवताओं को भी प्रसन्न करता है। श्रद्धापूर्वक किये श्राद्ध से ब्रह्मा इन्द्र, रूद्र, अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, वायु, पशुगण, समस्त भूतगण, सर्पगण, वायु देव एवं दिव्य रूप में स्थित ऋषिगण भी प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

- सर्वपितृ अमावस्या के दिन तर्पण के पश्चात ब्राह्मणों को दक्षिणा में बर्तन, ऋतु फल, कच्ची सब्जी, अनाज, मिष्ठान, धोती-कुरता, धन आदि देना चाहिए। वहीं, पुरोहित विवाहित हैं, तो उनकी पत्नी के लिए साड़ी, शृंगार की सामग्री और क्षमता हो तो कोई जेवर भी दे सकते हैं। मान्यता है, इस तिथि पर इन चीजों के दान से व्यक्ति का सौभाग्य बढ़ता है और घर में समृद्धि आती है। यही नहीं इससे पितृ देव भी प्रसन्न होते हैं।

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