देवोत्थान एकादशी : तुलसी-विवाह, भोग पूजा-विधि मंत्र मुहूर्त, आरती कथा, तुलसी-शालिग्राम का...

...विवाह करने पर मिलता है कन्यादान के बराबर का पुण्य 

देवउठनी एकादशी मंत्र-
उत्तिष्ठो उत्तिष्ठ गोविंदो, उत्तिष्ठो गरुणध्वज।
उत्तिष्ठो कमलाकांत, जगताम मंगलम कुरु।।
अर्थात,
देव उठो, देव उठो ! कुंआरे बियहे (विवाह हो) जाएं; बीहउती (विवाहित) के गोद भरै।।
देवशयनी से देवउठनी एकादशी तिथि (लगने से पूर्व) तक नहीं होते मांगलिक कार्य

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-रा. पाठक  

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवउठनी एकादशी पर भगवान शालिग्राम संग तुलसी विवाह का बहुत ही विशेष महत्व होता है। चार महीने की योगनिद्रा के बाद जब प्रभु उठते हैं, तो उस दिन सभी देवी-देवता मिलकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। भगवान विष्णु के जागने पर चार महीने से रुके हुए सभी तरह के मांगलिक कार्य फिर से आरंभ हो जाते हैं। इस दिन भगवान शालिग्राम संग तुलसी विवाह करने से वैवाहिक जीवन में आ रही बाधाएं समाप्त होती है, जिन लोगों के विवाह में रुकावटें आती हैं वह भी दूरी हो जाती है। शास्त्रों के अनुसार तुलसी-शालिग्राम का विवाह करने पर कन्यादान के बराबर का पुण्य लाभ मिलता है। अगर किसी के विवाह में तरह-तरह की अड़चनें आती हैं या फिर विवाह बार-बार टूटता है तो इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन शुभ माना गया है। 

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है, जो इस वर्ष 12 नवंबर मंगलवार को है। देवउत्थान एकादशी को हरिप्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी या देव प्रबोधिनी या हरिप्रबोधिनी एकादशी एकादशी भी कहते है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु योग निद्रा से निवृत होकर स्वयं को लोक कल्याण लिए समर्पित करते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन चतुर्मास का अंत हो जाता है। 
इस दिन सभी देवता योग निद्रा से जग जाते हैं और देवशयनी एकादशी (आषाढ़ शुक्ल एकादशी, 17 जुलाई 2024) से रुके समस्त मांगलिक कार्य प्रारंभ होते हैं। 

देवउठनी एकादशी के दिन देवी वृंदा को भगवान विष्णु ने अपने शालिग्राम स्वरूप में तुलसी से विवाह किया था। इसी कारण इस तिथि को माता तुलसी और भगवान शालिग्राम के विवाह का विधान है 
एवं "तुलसी विवाहोत्सव" मनाया जाता है। मान्यता है, तुलसी विवाह कराने से साधक को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता तुलसी और भगवान शालिग्राम की श्रद्धा-विश्वासपूर्वक पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं, उनके वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि आती है। साथ ही पति-पत्नी के बीच उत्पन्न होने वाली समस्याएं भी दूर हो जाती हैं।

यह दिन इतना पवित्र होता है, कि इस दिन से (चतुर्मास में रुके हुए कार्य) सभी शुभ कार्य, यथा- परिणय-संस्कार (विवाह), गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत, नामकरण संस्कार, नए प्रतिष्ठान का शुभारंभ जैसे आदि मांगलिक कार्यक्रम आरम्भ हो जाते हैं, चातुर्मास से लगे शुभ कार्यों पर रोक समाप्त हो जाती है।

सभी एकादशियों के व्रत में देवोत्थान एकादशी का विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यता है, चूँकि इस दिन नारायण निद्रा से जागते हैं, इसलिए उपासक इस दिन व्रत रखते हुए रात्रि जागरण करते हैं। इस दिन की गई पूजा का विशेष महत्व होता है। मान्यता यह भी है, जो भी भक्त श्रद्धापूर्वक इस दिन व्रत रखते हुए भगवान की पूजा करते हैं, उन्हें बैकुंठ की प्राप्ति होती है, सभी पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही चन्द्रमा के प्रतिकूल प्रभाव कम होते हैं।

तुलसी के पौधे को माँ लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। इसकी पूजा अर्चना करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती हैं। मान्यता है, तुलसी के पौधे के पास सुबह-शाम दीपक जलाने से परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है। साथ ही धन-लाभ के योग भी बनते हैं। सनातन धर्म में कार्तिक माह को तुलसी माता की पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि यह माह उनके विवाह का भी होता है।

देवउठनी एकादशी मुहूर्त-
पंचांग के अनुसार  कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 11 नवंबर शाम 6:46 बजे लगेगी और तिथि का समापन 12 नवंबर को शाम 4:04 बजे होगा। उदयव्यापनी एकादशी 12 नवंबर को होने से देवउठनी एकादशी इसी दिन मनाई जाती है। इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाएगा। 
तुलसी विवाह का (12 नवंबर 2024 को) शुभ मुहूर्त-
प्रदोष काल में शाम 5:29 बजे से लेकर शाम 7:53 बजे तक रहेगा।

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भोग, पूजा-विधि-
चार माह की योग निद्रा के पश्चात भगवान श्रीहरि विष्णु को जगाने के लिए घंटा, शंख, मृदंग आदि वाद्यों की मांगलिक ध्वनि के साथ श्लोकों का उच्चारण करते हैं। तभी पृथ्वी पर विवाह, नया व्यापार आदि आरंभ करते हैं। इस दिन आंवला, सिंघाड़े, गन्ने और मौसमी फलों का भोग लगाते हैं।

नारद पुराण के अनुसार, ब्रह्म मुहूर्त में स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान श्रीहरि विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेना चाहिए। फिर घी का दीपक जलाकर, धूप करके, घट-स्थापना करना चाहिए। अब भगवान पर गंगाजल के छींटें दें, रोली एवं अक्षत लगाएं। अब भगवान फिर विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। आरती उतारें एवं मंत्रों का जप करें। फिर भगवान को भोग लगाकर ब्राह्मण को भोजन कराकर दान-दक्षिणा दें, क्योंकि इस 
दिन दान का भी विशेष महत्व है।  

तुलसी विवाह के दिन देवउठनी एकादशी भी होती हैं। पूजा सदैव संपूर्ण सामग्रियों के साथ संपन्न करनी चाहिए। इससे देवी-देव की कृपा प्राप्त होती है। तुलसी विवाह हेतु संपूर्ण पूजन-सामग्री की सूची (list)- 
आंवला
माला
लाल चुनरी
तुलसी का पौधा
भगवान शालिग्राम जी की प्रतिमा
पूजा के लिए चौकी
गन्ना
मूली
साड़ी
हल्दी
चूड़ियां 
बेर
शकरकंदी
सिंघाड़ा
धूप
दीपक
वस्त्र
फूल
सीताफल
मौसमी फल
अगरबत्ती
धूप
आसन
मिट्टी के दीए
शालिग्राम-तुलसी विवाह पूजा विधि 
प्रातःकल उठकर सबसे पहले स्नान आदि करके शुद्ध हो जाए,
फिर भगवान विष्णु की पूजा का संकल्प लें,
घर के आंगन में भगवान के चरणों की आकृति बनाएं,
मान्यता है कि भगवान इसी रास्ते आएंगे,
फल, फूल, मिठाई इत्यादि को एक डलिया में रखें,
रात्रि में पूरे परिवार के साथ भगवान विष्णु का पूजन करें,
सायंकाल श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ कर शंख बाजाकर भगवान को आमंत्रण दें,
पूरी रात्रि श्रद्धानुसार भगवान के विभिन्न नामों का जप करें,
भगवान का संकीर्तन करें।


➯ देवोत्थान एकादशी पर भगवान शालिग्राम अथवा लड्डू गोपाल की मूर्ति को फूलों से जगाएं। फिर पंचामृत से अभिषेक करके पूजन करें। उन्हें मिष्ठान, सिंघाड़ा, गन्ना रस अर्पित करके शंख, घंटा-घड़ियाल, थाली बजाकर आनंद मनाना चाहिए,

➯ भगवान शालिग्राम से तुलसी विवाह कराना शुभ होता है। तुलसी का शालिग्राम से विवाह कराने वाले भगवान विष्णु की कृपा के पात्र बनते हैं। जिन दंपत्तियों के कन्या नहीं हैं, वह तुलसी को कन्यादान करके पुण्य अर्जित कर सकते हैं। उक्त तिथि पर भगवान विष्णु के नाम का कीर्तन व निर्धन एवं गाय को भोजन कराना चाहिए,

➯ चार माह के लंबे समय के बाद भगवान विष्णु योग निद्रा से बाहर आते हैं। ऐसे में हमे दोपहर में नहीं सोना चहिए और प्रभु का कीर्तन भजन करना चहिए। इससे माता लक्ष्मी प्रसन्ना होती हैं और धन लाभ होता है, जबकि शयन करना (सोना) अशुभ और भगवान का अनादर माना जाता है,

➯ एकादशी के दिन भूल कर तुलसी का पत्ता नहीं तोड़ें। तुलसी भगवान विष्णु को अत्यन्त प्रिय है ऐसे में भूलकर भी इस दिन तुलसी की पत्ती नहीं तोड़ें, अन्यथा भगवान विष्णु रूष्ट हो जाते हैं,

➯ इस तिथि को गोभी, पालक, शलजम व चावल का सेवन न करें। किसी पेड़-पौधों की पत्तियों को न तोड़े। भूलकर भी किसी को कड़वे शब्द न बोलें। दूसरे से मिले भोजन को ग्रहण न करें,
सुनें-

कार्तिक माह की देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु के रूप शालिग्राम और विष्णुप्रिया तुलसी का विवाह संपन्न किया जाता है, तो देश के कुछ हिस्सों में तुलसी-शालिग्राम का विवाह कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भी करते हैं। इस दिन महिलाएं परंपरानुसार तुलसी वृक्ष से शालिग्राम जी के संग एक सुन्दर मंडप के नीचे फेरे किए जाते हैं। विवाह में गीत, भजनतुलसी नामाष्टक सहित विष्णुसहस्त्रनाम के पाठ किए जाने का विधान है । 

धार्मिक मान्यता है, निद्रा से जागने के बाद भगवान विष्णु सबसे पहले तुलसी की पुकार सुनते हैं। इस कारण लोग इस दिन तुलसी का भी पूजन करते हैं और मनोकामना मांगते हैं। अतः तुलसी विवाह को देव जागरण के पवित्र मुहूर्त के स्वागत का आयोजन माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, तुलसी-शालिग्राम विवाह कराने से पुण्य की प्राप्ति होती है,दांपत्य जीवन में प्रेम बना रहता है ।

तुलसी मंत्र
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः।
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये ।।
ॐ सुभद्राय नम:, मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी,नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते।।
महाप्रसादजननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।।

ॐ श्री तुलस्यै विद्महे।
विष्णु प्रियायै धीमहि।
तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।।

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करें विशेष उपाय-
✔ माँ लक्ष्मी का ही दूसरा स्वरूप तुलसी जी हैं। कार्तिक माह में तुलसी पूजा और खासकर देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी पूजा करने से भगवान विष्णु के साथ माँ लक्ष्मी भी प्रसन्न होती है। यदि आपने पूरे महीने तुलसी की सेवा नहीं की, तो एकादशी से पूर्णिमा तक घी का दीपक जलाकर मां तुलसी को प्रसन्न करना चाहिए। ऐसा करने घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती।  

✔ पुराणों के अनुसार, जिस स्थान पर शालिग्राम और तुलसी होते हैं, वहां भगवान श्री हरि विराजते हैं और वहीं सम्पूर्ण तीर्थों को साथ लेकर भगवती लक्ष्मी भी निवास करती हैं। पदमपुराण के अनुसार जहां शालिग्राम शिलारूपी भगवान केशव विराजमान हैं, वहां सम्पूर्ण देवता,असुर, यक्ष और चौदह भुवन मौजूद हैं। जो शालिग्राम शिला के जल से अपना अभिषेक करता है,उसे सम्पूर्ण तीर्थों में स्न्नान के बराबर और समस्त यज्ञों को करने समान ही फल प्राप्त होता है।

✔ एकादशी के दिन पीपल वृक्ष को छूकर प्रणाम करें और उसकी मिट्टी को माथे पर लगाएं और अपना कार्य पूर्ण होने के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना करें, इससे कार्य में सफलता मिलेगी और आपके मनोरथ पूर्ण होंगे।  

✔ देवोत्थान एकादशी का दिन सुखी दांपत्य के लिए अत्यंत शुभ है। यदि पति-पत्नी के बीच बहुत कलह रहती है, किसी प्रकार का मनमुटाव रहता हो, तो इस समस्या को दूर करने आप इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए तुलसी के तने पर सात बार मौली या हल्दी में लपेट कर सूत का धागा लपेटें और इसके बाद घी का दीपक प्रज्वलित कर सुखी दांपत्य के लिए माता तुलसी से प्रार्थना करें।  

✔ देवउठनी एकादशी के दिन अन्न और धन के अलावा लोगों को ऋतुफल, धान, मक्का, गेहूं, बाजरा, गुड़, उड़द और वस्त्र का दान अवश्य करना चाहिए। इसके साथ ही अगर इस दिन सिंघाड़ा, शकरकंदी और गन्ने का दान किया जाए तो काफी श्रेष्ठ माना जाता है। इससे घर में सुख-शांति का वास होता है, ग्रह दोष ठीक होते हैं।

✔ देवउठनी एकादशी पर तुलसी पूजन अवश्य करें। इस शुभ दिन पर तुलसी के पौधे में गन्ने का रस मिलाकर चढ़ाएं। इसके बाद उसके समक्ष देसी घी का दीपक जलाएं। साथ ही परिवार के सभी सदस्यों के साथ आरती करें। मान्यता है, ऐसा करने से व्यक्ति को कभी धन की कमी नहीं होती है एवं जीवन में अचानक आ रही धन की समस्या का समाधान निकलता है।

✔ विवाह से जुड़ी किसी भी समस्या का सामना करना पड़ रहा है अथवा किसी की कुंडली में विवाह देरी का योग है, तो देवउठनी एकादशी के दिन श्रीहरि विष्णु की विधिवत पूजा करें। उन्हें केसर, हल्दी व गोपी चंदन का तिलक लगाना चाहिए। इसके पश्चात विष्णुजी को पीले रंग के फूल अर्पित करें। श्रद्धा-भक्तिपूर्वक ऐसा करने से विवाह का शीघ्र योग बनेगा एवं विवाह से जुड़ी समस्या हैं, तो उनका भी समाधान मिलेगा।

✔ अगर आपके करियर में लगातार बाधा आ रही हैं, तो देवउठनी एकादशी के दिन पर भगवान विष्णु का केसर वाले दूध से अभिषेक करें। फिर उनके वैदिक मंत्रों का जाप करें। इस उपाय को करने से कार्यक्षेत्र में आ रही समस्याओं का समाधान निकलेगा एवं करियर में अपेक्षित सफलता प्राप्त करने का मार्ग भी सहज होने लगेगा।

श्री विष्णुसहस्त्रनाम-
मंत्र विद्या सनातन हिन्दू धर्म की अलौकिक खोज एवं दुनिया को (सनातन धर्म में आस्था रखने वाले) अलौकिक देन है। पंच तत्व का सबसे सूक्ष्म तत्व आकाश है, जो परम शक्तिशाली तत्व है। हमारे मंत्रों का संबंध भी आकाश तत्व से होता है। मंत्र आकाश तत्व से निकट का संबंध रखते हैं और शरीर में स्थित शक्ति केन्द्रों को जागृत करते हैं।

श्रीहरि विष्णु की सबसे बड़ी स्तुति श्री विष्णु सहस्त्रनाम मानी जाती है, जिसमें भगवान के 1,000 नामों का वर्णन है। यह भगवान विष्णु के हजार नामों से युक्त एक प्रमुख स्तोत्र है। इसके अलग-अलग संस्करण महाभारत, पद्म पुराण व मत्स्य पुराण में उपलब्ध हैं।

महाभारत में अनुशासन पर्व के 149वें अध्याय के अनुसार, कुरुक्षेत्र मे बाणों की शय्या पर लेटे हुए पितामह भीष्म ने उस समय जब युधिष्ठिर ने उनसे पूछा कि, कौन ऐसा है, जो सर्व व्याप्त है और सर्व शक्तिमान है? तब उन्होंने बताया कि ऐसे महापुरुष भगवान विष्णु हैं और उनके एक हजार नामों की जानकारी दी। भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया, कि हर युग में इन नामों को पढ़ने या सुनने से लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

प्रतिदिन इन एक हजार नामों का जाप करने से विभिन्न समस्याओं का समाधान निकलता है, समस्या समाप्त होने लगती हैं। वैदिक परंपरा में मंत्रोच्चारण का विशेष महत्व माना गया है, और सही रूप से मंत्रों का उच्चारण जीवन की दिशा ही बदल सकते हैं। विष्णु सहस्रनाम को अन्य नामों से जाना जाता है जैसे, शम्भु, शिव, ईशान और रुद्र, इससे ये भी प्रमाणित होता है कि शिव और विष्णु में कोई अंतर नहीं है ये एक समान हैं।

स्तोत्र में दिया गया प्रत्येक नाम श्री विष्णु के अनगिनत गुणों में से कुछ को सूचित करता है। विष्णु जी के भक्त प्रात: पूजन में इसका पठन करते है। मान्यता है कि इसके सुनने या पाठ करने से मनुष्य की मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।

शास्त्रानुसार, उनकी उपासना से जीवन का निर्वाह सहज हो जाता है, वृहस्पति ग्रह मजबूत होता हैं एवं इसके श्लोक से प्रत्येक ग्रह एवं नक्षत्र को नियंत्रित किया जा सकता है। ज्योतिर्विदों के अनुसार, वृहस्पति दुर्बल (कमजोर) होने से पेट से संबंधित समस्या होती है। संतान उत्पत्ति में बाधा आ रही हो, तो इसका पाठ करना शुभ होता है। वैवाहिक जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए भी इस स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। प्रत्येक गुरुवार को पाठ आरंभ में (यदि आप प्रतिदिन करते हों तो भी) एवं पाठ के पूर्ण होने पर भगवान विष्णु का ध्यान करें। मंत्र सभी को पता है-

शांताकारं  भुजग  शयनं  पद्मनाभं  सुरेशं,
विश्वाधारं  गगनसदृशं  मेघवर्णं  शुभांगम।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिध्र्यानगम्यम्,
वन्दे विष्णुं भव  भयहरं सर्व लोकैकनाथम्।।


यथासंभव पीले वस्त्र पहनकर या पीली चादर ओढ़कर श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
भोग में गुड़ एवं चने या पीली मिठाई का प्रयोग करें। वैसे श्री विष्णु सस्त्रनाम का पाठ वृहस्पतिवार को शुभ है एवं सायंकाल नमक का सेवर नहीं करना चाहिए।

देवउठनी एकादशी व्रत कथा
देवउठनी एकादशी के दिन व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। कहते हैं,  पाठ के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। कथा-

एक समय एक राजा था। उसके राज्य में सभी एकादशी का व्रत करते थे। एकादशी के दिन पूरे राज्य में किसी को अन्न नहीं दिया जाता था। एक दिन एक व्यक्ति नौकरी मांगने के उद्देश्य से राजा के दरबार में आया। उसकी बातें सुनने के बाद राजा ने कहा कि नौकरी तो मिल जाएगी, लेकिन एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाएगा। नौकरह मिलने के आनंद में उस व्यक्ति ने राजा की बात मान ली।
एकादशी का व्रत आया। सभी व्रत थे। उसने भी फलाहार किया, लेकिन भूख नहीं मिटी। वह राजा के पास अन्न मांगने गया। उसने राजा से कहा- फलाहार से उनकी भूख नहीं मिटी है, वह भूखों मर जाएगा। उसे खाने के लिए अन्न दिया जाए। इस पर राजा ने अपनी शर्त वाली बात दोहराई।
उस व्यक्ति ने कहा कि वह भूख से मर जाएगा, उसे अन्न जरूरी है। तब राजा ने उसे भोजन के लिए आटा, दाल, चावल दिलवा दिया। वह नदी किनारे स्नान किया और भोजन बनाया। उसने भोजन निकाला और भगवान को निमंत्रण दिया। तब भगवान विष्णु वहां आए और भोजन किए। फिर चले गए। वह भी अपने काम में लग गया।

फिर दूसरे मास की एकादशी आई। इस बार उसने अधिक अनाज मांगा। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि पिछली बार भगवान भोजन कर लिए, इससे वह भूखा रह गया। इतने अनाज से दोनों का पेट नहीं भरता। राजा चकित थे, उनको उस व्यक्ति की बात पर विश्वास नहीं हुआ। तब वह राजा को अपने साथ लेकर गया। उसने स्नान करके भोजन बनाया और भगवान को निमंत्रण दिया। लेकिन इस बार भगवान नहीं आए। वह शाम तक भगवान की प्रतीक्षा करता रहा। राजा पेड़ के पीछे छिपकर सब देख रहे थे। अंत में उसने कहा- हे भगवान! यदि आप भोजन करने नहीं आएंगे तो नदी में कूदकर जान दे देगा। भगवान के न आने पर उस नदी की ओर जाने लग, तब भगवान प्रकट हुए। उन्होंने भोजन किया। फिर उस पर भगवत कृपा हुई और वह प्रभु के साथ उनके धाम चला गया।

राजा को ज्ञान हो गया कि भगवान को भक्ति का आडंबर नहीं चाहिए। वे सच्ची भावना से प्रसन्न होते हैं और दर्शन देते हैं। इसके बाद से राजा भी सच्चे मन से एकादशी का व्रत करने लगे। अंतिम समय में उनको भी स्वर्ग की प्राप्ति हो गई।

(डिस्क्लेमर- उक्त समस्त जानकारी मान्यताओं, पौराणिक कथाओं, ज्योतिर्विदों एवं कर्मकांडियों के मतानुसार हैं।)

 

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